नाम - अवनीश तिवारी
सम्प्रति -
बहुराष्ट्रीय कंपनी में वरिष्ठ सॉफ्टवेयर अभियंता के पद पर कार्यरत ।
अंतरजाल पर अपनी रचनाओं और लेखन के साथ हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय ।
निवास - मुम्बई
सम्प्रति -
बहुराष्ट्रीय कंपनी में वरिष्ठ सॉफ्टवेयर अभियंता के पद पर कार्यरत ।
अंतरजाल पर अपनी रचनाओं और लेखन के साथ हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय ।
निवास - मुम्बई
अपने सारे ,
खट्टे - मीठे अनुभवों को,
कमीज के जेब में जमा कर ,
शाम घर पहुंच मैंने ,
अलमारी की खूंटी पर टांग दी ,
दिनभर की कमाई को ...
जेब से उनको निकाल ,
तकिये के नीचे रख ,
रात मैं सो गया ...
ठण्ड हवा में ,
सिहर ,
पूनम - चांदनी के ,
दुलार से ,
ओस - बूंदों में,
नहा ,
अंकुरित होने लगे वे ...
छटते कुहरे ने ,
संवारा ,
उषा किरणों ने ,
हाथ थाम बढ़ाया ,
बढ़ती रोशनी में हँसने लगे ,
छोटे - छोटे पौधे बन...
मेरे जगने पर ,
उनपर फूल लगे थे ,
सुबह की नयी उम्मीदों के ।
-- अवनीश तिवारी
विधा - मुक्त छंद
२७-११-२०१६
1 टिप्पणियाँ
ठण्ड हवा में ,
जवाब देंहटाएंसिहर ,
पूनम - चांदनी के ,
दुलार से ,
ओस - बूंदों में,
नहा ,
अंकुरित होने लगे वे ...
आदरणीय ,सुन्दर व रोचक प्रस्तुति ,आभार। "एकलव्य"
आभार।
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