"मृत्यु से अंजान उस नन्हे बालक को देखो अपने दादा के शव के पास कैसे खेल रहा है, जैसे कुछ हुआ ही नहीं," सन्यासी ने कहा। पृष्ठभूमि पर परिजनों का विलाप जारी था।

१. पूरा नाम : महावीर उत्तरांचली
२. उपनाम : "उत्तरांचली"
३. २४ जुलाई १९७१
४. जन्मस्थान : दिल्ली
५. (1.) आग का दरिया (ग़ज़ल संग्रह, २००९) अमृत प्रकाशन से। (2.) तीन पीढ़ियां : तीन कथाकार (कथा संग्रह में प्रेमचंद, मोहन राकेश और महावीर उत्तरांचली की ४ — ४ कहानियां; संपादक : सुरंजन, २००७) मगध प्रकाशन से। (3.) आग यह बदलाव की (ग़ज़ल संग्रह, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। (4.) मन में नाचे मोर है (जनक छंद, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से।
२. उपनाम : "उत्तरांचली"
३. २४ जुलाई १९७१
४. जन्मस्थान : दिल्ली
५. (1.) आग का दरिया (ग़ज़ल संग्रह, २००९) अमृत प्रकाशन से। (2.) तीन पीढ़ियां : तीन कथाकार (कथा संग्रह में प्रेमचंद, मोहन राकेश और महावीर उत्तरांचली की ४ — ४ कहानियां; संपादक : सुरंजन, २००७) मगध प्रकाशन से। (3.) आग यह बदलाव की (ग़ज़ल संग्रह, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। (4.) मन में नाचे मोर है (जनक छंद, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से।
"बालक तो निपट अज्ञानी और मृत्यु के रहस्य से अंजान है महाराज, लेकिन मृतक आपका छोटा भाई है फिर आप शोक क्यों नहीं कर रहे? आपकी आँखों में आंसू क्यों नहीं?" समीप खड़े व्यक्ति ने पूछा।
"तुम्हारे प्रश्न में ही उत्तर भी निहित है। बालक इसलिए शोक नहीं कर रहा क्योंकि वह मृत्यु के रहस्य से अनजान है और मै परिचित हूँ। यही जीवन का अंतिम सत्य है। अत: विद्वान् और बालक कभी शोक नहीं करते।" सन्यासी ने शांतिपूर्वक कहा।
शव को अंतिम यात्रा के लिए उठाया गया तो पृष्ठभूमि पर 'राम नाम सत्य है' की आवाजें गूंजने लगीं।
1 टिप्पणियाँ
नमस्ते, आपकी लिखी यह रचना गुरूवार 6 जुलाई 2017 को "पाँच लिंकों का आनंद " (http://halchalwith5links.blogspot.in ) के 720 वें अंक में लिंक की गयी है। चर्चा में शामिल होने के लिए आपकी प्रतीक्षा रहेगी,आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद।
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