प्राण शर्मा वरिष्ठ लेखक और प्रसिद्ध शायर हैं और इन दिनों ब्रिटेन में अवस्थित हैं। आप ग़ज़ल के जाने मानें उस्तादों में गिने जाते हैं। आप के "गज़ल कहता हूँ' और 'सुराही' काव्य संग्रह प्रकाशित हैं, साथ ही साथ अंतर्जाल पर भी आप सक्रिय हैं।
दीप रोज़ ही किसी न किसी पंछी का शिकार करने के लिए पास के
जंगल में जाता था , कभी अकेले और कभी साथियों के साथ।
आज वह अकेला ही था। ख़ूब मज़ा आएगा किसी पंछी को धराशायी
करते हुए।
एक कबूतर टहनी पर बैठा था। वह उड़ने ही वाला था कि दीप की
गुलेल से छूटा हुआ ज़ोर से उसे पत्थर लगा। पलक झपकते ही वह धरा
पर आ गिरा।
अपनी कामयाबी पर दीप बहुत खुश हो रहा था तभी उसकी पीठ से
एक भारी पत्थर टकराया। पत्थर टकराते ही वह औंधे मुँह गिर गया।
कराहते - कराहते हुए वह उठा। सामने उसका बड़ा भाई खड़ा था।
" भाई सॉब , मेरी पीठ पर क्या आपने पत्थर मारा है ? "
" हाँ , मैंने ही मारा है। "
" क्यों , मेरी जान निकल जाती तो ? "
" अपनी जान की तो तुझे चिंता है। देख , यह कबूतर कैसे तड़प - तड़प
कर अपनी जान गंवा रहा है ? उफ़ !
दीप बड़े भाई के पैरों पर गिर गया। उसकी आँखों से आँसू बह पड़े।
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