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भविष्यत् [कविता] - डॉ महेन्द्र भटनागर

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 डा. महेंद्र भटनागर रचनाकार परिचय:-


डा. महेंद्रभटनागर
सर्जना-भवन, 110 बलवन्तनगर, गांधी रोड, ग्वालियर -- 474 002 [म. प्र.]

फ़ोन : 0751-4092908 / मो. 98 934 09793
E-Mail : drmahendra02@gmail.com
drmahendrabh@rediffmail.com



मनुष्य के भविष्य-पंथ पर
अपार अंधकार है,
प्रगाढ़ अंधकार है।
न चाँद है, न सूर्य,
बज रहा न सावधान-तूर्य।
मृत्यु के कगार पर
खड़ी मनुष्यता सभीत,
बार-बार लड़खड़ा रही।
कि उद्जनों व अणुबमों-प्रयोग से
कराह काँपती मही।
तबाह द्वीप हो रहे,
बड़े-बड़े नगर तमाम
देखते सदैव स्वप्न में ‘हिरोशिमा’।
गगन विराट वक्ष पर विकीर्ण लालिमा,
धुआँ, धुआँ, धुआँ।
मनुष्य के भविष्य-पंथ पर प्रकाश चाहिए,
प्रकाश का प्रवाह चाहिए।
हरेक भुरभुरे कगार पर सशक्त बाँध चाहिए।
अटल खड़ा रहे मनुष्य,
आँधियों के सामने अड़ा रहे मनुष्य
शक्तिवान, वीर्यवान, धैर्यवान।
जिदगी तबाह हो नहीं,
कराह और आह हो नहीं।
हँसी, सपफ़ेद दूधिया हँसी
हरेक आदमी के पास हो।
सुखी भविष्य की नवीन आस हो।





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