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लड़का हो या लड़की मकसद होता है हराना जीना इसी का नाम है - जमुना बोडो: महिला बाॅक्सर [जीवन परिचय] - प्रदीप कुमार सिंह




प्रदीप कुमार सिंह रचनाकार परिचय:-



प्रदीप कुमार सिंह
स्वतंत्र पत्रकार
पता- बी-901, आशीर्वाद, उद्यान-2
एल्डिको, रायबरेली रोड, लखनऊ
मो0 9839423719

लड़का हो या लड़की मकसद होता है हराना जीना इसी का नाम है
- जमुना बोडो: महिला बाॅक्सर

असम के शोणितपुर जिले में छोटा सा गांव है बेलसिरि। यह ब्रह्नमपुत्र नदी के किनारे बसा आदिवासी इलाका है। घने जंगलों व प्राकृतिक नजारों से भरपूर इस इलाके में रोजगार के नाम पर लोगों को मेहनत-मजदूरी का काम ही मिल पाता है। कुछ लोग फल-सब्जी बेचकर जीवन गुजारते हैं। आर्थिक बदहाली के बावजूद पिछले कुछ साल में यहां के युवाओं में खेल के प्रति रूझान बढ़ा है। जमुना दस साल की थीं, जब पापा गुजर गए। बड़ी बेटी की शादी करनी थी। छोटी को पढ़ाना था। बेटे को नौकरी दिलवानी थी। सब कुछ बीच में ही छूट गया। बच्चे सदमे में थे। मां बेहाल थीं। अब बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी उन पर थी। जमुना बताती हैं, मां पढ़ी-लिखी नहीं थीं, पर उनमें गजब का हौसला था। समझ में नहीं आ रहा था कि घर कैसे चलेगा? फिर मां ने घर चलाने के लिए सब्जी बेचने का फैसला किया।


मां बेलसिरी गांव के रेलवे स्टेशन के बाहर सब्जियां बेचने लगीं। इस तरह जिंदगी को पटरी पर लाने की कोशिश शुरू हो गई। जमुना स्कूल जाने लगीं। कुछ समय बाद मां ने दीदी की शादी कर दी। वह ससुराल चली गईं। उन दिनों देश में मणिपुर की बाॅक्सर मेरीकाॅम की वजह से महिला बाॅक्सिंग सुर्खियों में थी, पर जमुना के गांव में वुशु गेम का बुखार चढ़ रहा था। स्कूल से लौटते वक्त अक्सर वह खेल के मैदान के किनारे रूककर गेम देखने लगतीं। दरअसल वुशु जूडो-कराटे और टाइक्वांडो की तरह एक मार्शल आर्ट है। वुशु गेम में लड़कों को पंच, थ्रो और किक लगाते देख जमुना को खूब मजा आया। यह खेल उन्हें इतना रोमांचकारी लगता था कि वह खुद रोक नहीं पाईं। जमुना बताती हैं, सारे वुशु खिलाड़ी मेरे गांव के थे। वे सब मेरे भाई जैसे थे। मैं उन्हें भैया कहती थी। मेरा उत्साह देखकर उन्होंने मुझे अपने साथ खेलने का मौका दिया।


उन दिनों गांव की कोई लड़की वुशु नहीं खेलती थी। लोग महिला बाॅक्ंिसग से परिचित तो थे, पर महिला वुशु खिलाड़ी की कहीं कोई चर्चा नहीं थी। तब जमुना यह तो नहीं जानती थीं कि खेल में उनका भविष्य है या नहीं, पर उन्हें वुशु खेल अच्छा लगता था, इसलिए वह खेलने लगीं। स्थानीय कोच बिना फीस के उन्हें टेªनिंग देने लगे। जल्द ही गांव में यह बात फैल गई कि एक लड़की वुशु गेम सीख रही है।

सबसे अच्छी बात यह थी कि मां ने उन्हें खेलने से नहीं रोका। पर जल्द ही जमुना को इस बात एहसास हुआ कि वुशु गेम में उनके लिए कोई खास संभावना नहीं है। उन्होंने बाॅक्सर मेरीकाॅम के बारे में काफी कुछ सुन रखा था। वह बाॅक्ंिसग सीखना चाहती थी, लेकिन गांव में इसकी टेªनिंग की कोई सुविधा नहीं थी। जब उन्होंने अपने कोच से बात की, तो उन्होंने भी यही राय दी कि तुम्हें बाॅक्ंिसग सीखनी चाहिए।

कोच को यकीन था कि अगर इस लड़की को टेªनिंग मिले, तो यह बेहरतीन बाॅक्सर बन सकती है। जमुना बताती हैं, मुझे मेरीकाॅम से प्रेरणा मिली। जब वह तीन बच्चों की मां होकर बाॅक्ंिसग कर सकती हैं, तो मैं क्यों नहीं? वह मेरी रोल माॅडल हैं। मैं उनके जैसी बनना चाहती हूं।

यह बात 2009 की है। वुशु सिखाने वाले कोच उन्हें गुवाहाटी बाॅक्ंिसग टेªनिंग सेंटर ले गए। वहां उनका चयन हो गया। जमुना के मन में डर था कि पता नहीं, मां गांव छोड़कर गुवाहाटी जाने की इजाजत देंगी या नहीं। पर यह आशंका गलत साबित हुई। मां ने उन्हें यह आशीर्वाद देकर विदा किया कि जाओ, मन लगाकर खेलो। जमुना कहती हैं, मां ने सब्जी बेचकर हम भाई-बहनों को पाला। दीदी की शादी की। वैसे सब्जी बेचना खराब काम नहीं है। मुझे गर्व है मां पर।

टेªनिंग के दौरान उनका प्रदर्शन शानदार रहा। 2010 में जमुना पहली बार तमिलनाडु के इरोड में आयोजित सब जूनियर महिला राष्ट्रीय बाॅक्ंिसग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर गांव लौटीं। यह उनका पहला गोल्ड मेडल था। गांव में बड़ा जश्न हुआ। अगले साल कोयंबटूर में दूसरे सब जूनियर महिला राष्ट्रीय बाॅक्ंिसग चैंपियनशिप में भी उन्होंने गोल्ड मेडल जीतकर चैंपियनशिप का खिताब अपने नाम किया। जमुना कहती हैं, मां ने बहुत मेहनत की है। उनका पूरा जीवन एक तपस्या है। जब मैं मेडल जीतकर गांव लौटी, तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था। सच कहूं, तो उनके हौसले ने मुझे खिलाड़ी बनाया।

साल 2013 बहुत खास रहा जमुना के लिए। इस साल सर्बिया में आयोजित इंटरनेशनल सब-जूनियर गल्र्स बाॅक्ंिसग टूर्नामेंट में उन्होंने गोल्ड जीतकर देश को एक बड़ा तोहफा दिया। फिर तो जैसे उन्हें जीत का चस्का ही लग गया। अगले साल यानी 2014 में रूस में बाॅक्ंिसग प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीतकर वह चैंपियन बनीं। तरक्की का सफर रफ्तार पकड़ने लगा। 2015 में ताइपे में यूथ वल्र्ड बाॅक्ंिसग चैंपियनशिप में उन्होंने काॅस्य पदक जीता। अब उनका लक्ष्य 2020 में टोक्यो में होने वाले ओलंपिक खेलों में हिस्सा लेना है। आजकल वह इसकी तैयारी में जुटी हैं। जमुना कहती हैं, प्रैक्टिस के दौरान मैं अक्सर लड़कों से मुकाबला करती हंू। खेल के समय मैं यह नहीं देखती कि सामने लड़का है या लड़की। मेरा मकसद सामने वाले को हराना होता है। मेरा लक्ष्य ओलंपिक पदक है।

प्रस्तुति - मीना त्रिवेदी
साभार - हिन्दुस्तान
संकलन - प्रदीप कुमार सिंह


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4 टिप्पणियाँ

  1. bahut khub aaj kal betiya beto se aage hain, aaj kal dono me kuch bhi antar nahi. aise kayi example aaj hamare samne hain.

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  2. बहुत ही प्रेरणादायक लेख, शेयर करने के लिओये धन्यवाद

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  3. बेटी हो या बीटा कोई फर्क नहीं है . बेटिया बेटो से चार कदम आगे ही है . आपने इस लेख के जरिये सब बता दिया . Superb article !!

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  4. बेटी हो या बीटा कोई फर्क नहीं है . बेटिया बेटो से चार कदम आगे ही है . आपने इस लेख के जरिये सब बता दिया . Superb article !!

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