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जिदगी कैसे बदलती है! [कविता] - डॉ महेन्द्र भटनागर

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 डा. महेंद्र भटनागर रचनाकार परिचय:-


डा. महेंद्रभटनागर
सर्जना-भवन, 110 बलवन्तनगर, गांधी रोड, ग्वालियर -- 474 002 [म. प्र.]

फ़ोन : 0751-4092908 / मो. 98 934 09793
E-Mail : drmahendra02@gmail.com
drmahendrabh@rediffmail.com




यह झोपड़ी है फूस की,
जिसकी पुरानी भग्न दीवारें,
व आधी छत खुली!
इस रात में
जो है बड़ी ठंडी,
खड़ी है मौन, तम से ग्रस्त।
उसमें ले रहे हैं साँस
कोई तीन प्राणी,
हार जिनने
आज तक किचित न मानी।
भूमि पर लेटे हुए,
गुदड़ी समेटे और गट्ठर से बने
निज ज्वाल-जीवन से हरारत पा
कुहर के बादलों में
गर्म साँसें खींचते हैं,
और उसका शक्तिशाली उर
दबाकर भेदते हैं।
भग्न यदि दीवार है
पर, भग्न आशा है नहीं।
विश्वास धूमिल
और दृढ़ आवाज़ बंदी है नहीं।
कल देख लेना
जिदगी कैसे बदलती है!





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