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बिंदी- [लघुकथा]- श्रद्धा मिश्रा

रचनाकार परिचय:-

परिचय-
नाम-श्रद्धा मिश्रा
शिक्षा-जे०आर०एफ(हिंदी साहित्य)
वर्तमान-डिग्री कॉलेज में कार्यरत
पता-शान्तिपुरम,फाफामऊ, इलाहाबाद
संपर्क-mishrashraddha135@gmail.com

दीदी बिंदी लगा लो, आज बिंदी भूल गयी हो बंटी ने कहा।

सुलेखा ने उपेक्षा से कहा हाँ आज मन नही है।

क्यो क्या हुआ दीदी लगाओ न अच्छी लगती है तुम पे।

नही!नही! कहते हुए सुलेखा बाहर आ गयी। बाहर आते ही रिक्शा दिख गया। सुलेखा ने आवाज लगाई और रिक्शे पे बैठ वो ऑफिस चल दी। रास्ते मे ट्रैफिक से बचने के लिए उसने जल्दी जाना शुरू किया था। वो सबसे पहले ऑफिस भी पहुँच जाती थी। मगर अब वो उत्साह न था और अब सच पुछो तो ऑफिस जाने का मन ही नही करता है। कल ही ऑफिस में लेट वर्क करके देने के कारण बॉस ने सबके सामने तंज किया लडकियां सिर्फ बिंदी चूड़ी और मेकअप ही सही से कर सकती हैं। वो अपनी असुरक्षा के लिए खुद जिम्मेदार है। सुलेखा को ये बात बहुत चुभी मन किया अभी चली जाए।मगर बस कुछ मजबूरियां हैं ,जो रोज उसे यहाँ तक खींच लाती थीं।

रास्ते मे अखबार देखना उसके लिए एक काम निपटा जाने जैसा था तो फिर अखबार पढ़ने का काम शुरू हुआ। फिर तीसरे चौथे पांचवे और छठे पृष्ठ तक सरसरी निगाह डाली और बोल उठी उफ्फ!

रोज रोज की ऐसी वारदात पढ़-पढ़ के दिमाक तो काम ही नही करता। कितने खौफनाक हो जाते हैं रास्ते।कल के ही अखबार में गांधीनगर की रेप की खबर थी। उसी रास्ते से सुलेखा को भी रोज गुजरना होता था।पहले सुलेखा और प्रभा साथ थी तो एक दूसरे का हौसला बन के उस रास्ते को काट लेती थीं। मगर अब सुलेखा अकेली थी।

आज ऑफिस में बहुत काम था सुलेखा का दिन गुजर गया। घर जाते वक्त फिर वही रास्ता और वही मोहल्ला ख्याल में आने लगे। सुलेखा ने हिम्मत बांधी और निकल आयी।

पर नियति को आज शायद इम्तेहान लेना था।

सुलेखा गांधीनगर पहुँची रिक्शावाला रफ्तार में था अचानक किसी के चीखने की आवाज आई। सुलेखा को लगा वहम होगा। फिर वो आवाज और करीब आती हुई महसूस हुई। सुलेखा ने रिक्शा रोकने को कहा और चारो तरफ नजर दौड़ाई एक लड़की दौड़ती हुई चली आ रही थी उसके पीछे दो लड़के थे। सुलेखा को दो मिनट तक समझ नही आया रुके या जाए।
फिर अचानक जाने क्या हुआ सुलेखा रिक्शा से उतर कर उस ओर बढ़ी। उसने लड़की को रोका और कहा डरो मत। तब तक लड़के उन दोनों के करीब पहुँच गए। एक ने सुलेखा से कहा अपने काम से काम रख इसे भेज मेरी तरफ । सुलेखा ने आव देखा न ताव एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर दिया। दूसरे ने कहा उसे बाद में पहले तुझे देखते है। सुलेखा ने नाइन्थ क्लास में सीखी कराटे की फिर जो शुरुआत की मगर वो अकेली थी,आखिर कब तक दोनों का सामना करती। दोनों लड़को ने उसके हाथ और पैर पकड़ लिए। तभी सुलेखा को मुसीबत में देख उस डरी,सहमी लड़की को साहस आ गया उस ने सड़क पे पड़ा एक पत्थर उठा कर हाथ की तरफ वाले लड़के के सिर में दिया उसके हाथों की पकड़ ढीली हुई तो फिर सुलेखा ने दोनों को धूल चटा दी। दोनों लड़के भाग खड़े हुए।

रिक्शावाला तब तक अगल बगल के कुछ लोगो को ले कर उस जगह पर पहुचां लेकिन तब तक सुलेखा सब का काम तमाम कर चुकी थी। दोनों लड़कियाँ एक दूसरे को देख के मुस्कुराईं। वहां खड़े लोगों में किसी ने कहा बेटियाँ किसी भी जगह कम नही चाहे युद्ध स्थली हो या कर्म स्थली।

फिर सुलेखा उस लड़की को उसके घर छोड़कर अपने घर पहुँची उसकी ऐसी हालत देख बंटी चिल्लाया दीदी ये सब कैसे फिर उसने पूरे घर को रास्ते का किस्सा सुनाया।

अगले दिन जब सुलेखा ऑफिस के लिए तैयार हुई तो उसके मन मे एक नई उमंग थी गुनगुनाते हुए उसने बिंदी माथे पर लगाई और बंटी की तरफ देखा बंटी मुस्कुरा रहा था।

श्रद्धा मिश्रा





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2 टिप्पणियाँ

  1. श्रध्दा जी आपकी बिंदी यह लघुकथा बहुत बढ़िया हैं.

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  2. आपकी लघु कथा प्रेरणा प्रद है, बस कमी है आपको उतावालापन को स्थान नहीं देना चाहिए। आप शान्ति से टंकण कार्य करें और जो भी आप टंकण कार्य करें उसको एक बार पुन: जांच कर लिया करें। देखिये आपने दिमाग़ के स्थान पर दिमाक टंकित किया है। जो आपकी उतावलापन आदत को दर्शाता है।

    जवाब देंहटाएं

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