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नयी नारी [कविता] - डॉ महेन्द्र भटनागर

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 डा. महेंद्र भटनागर रचनाकार परिचय:-


डा. महेंद्रभटनागर
सर्जना-भवन, 110 बलवन्तनगर, गांधी रोड, ग्वालियर -- 474 002 [म. प्र.]

फ़ोन : 0751-4092908 / मो. 98 934 09793
E-Mail : drmahendra02@gmail.com
drmahendrabh@rediffmail.com




तुम नहीं कोई
पुरुष की ज़र-ख़रीदी चीज़ हो,
तुम नहीं
आत्मा-विहीना सेविका
मस्तिष्क हीना-सेविका,
गुड़िया हृदयहीना।
नहीं हो तुम
वहीं युग-युग पुरानी
पैर की जूती किसी की,
आदमी के
कुछ मनोरंजन-समय की
वस्तु केवल।
तुम नहीं कमज़ोर,
तुमको चाहिए ना
सेज फेूलों की।
नहीं मझधार में तुम
अब खड़ी शोभा बढ़ातीं
दूर कूलों की।
अब दबोगी तुम नहीं
अन्याय के सम्मुख,
नयी ताक़त, बड़ा साहस
ज़माने का तुम्हारे साथ है।
अब मुक्त कड़ियों से
तुम्हारे हाथ हैं।
तुम हो
न सामाजिक, न वैयक्तिक
किसी भी क़ैदखाने में विवश,
अब रह न पाएगा
तुम्हारे देह-मन पर
आदमी का वश -
कि जैसे वह तुम्हें रक्खे
रहो,
मुख से न अपने
भूल कर भी
कुछ कहो।
जग के
करोड़ों आज युवकों की तरपफ़ से
कह रहा हूँ मैं -
तुम्हारा ‘प्रभु’ नहीं हूँ,
हाँ, सखा हूँ।
और तुमको
सिर्फ़ अपने
प्यार के सुकुमार-बंधन में
हमेशा बाँध रखना चाहता हूँ।






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