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हम और हिंदी [कविता]- रचना सागर

रचनाकार परिचय:-

रचना सागर का जन्म 25 दिसम्बर 1982 को बिहार के छ्परा नामक छोटे से कस्बे के एक छोटे से व्यवसायिक परिवार मे हुआ। इनकी शिक्षा-दीक्षा भी वहीं हुई। आरंभ से ही इन्हे साहित्य मे रूचि थी। आप अंतर्जाल पर विशेष रूप से बाल साहित्य सृजन में सक्रिय हैं।
हम और हिंदी [हिंदी दिवस पर विशेष - 14 सितम्बर - कविता]- रचना सागर

हिंदी और हिंद का सम्मान करें हम
भारत की माटी हिंदी से प्यार करें हम
हिंदी का पूर्ण विकास हो
न हिंदी कहीं भी उदास हो
संस्कृत की बेटी कहलाए हिंदी
मगध अवधी के संग है हिंदी
उर्दू अंग्रेजी है सखिया इसकी
साहित्य मे भी नाम बनाए हिन्दी
हिंदी और हिंद का सम्मान करें हम
भारत की माटी हिंदी से प्यार करें हम
डोर है हिंदी पतंगा है हम
घर है हिंदी घरनी है हम
सोच मे हिंदी
स्वप्न में हिंदी
परचम लहराए हिंदी का हम
हिंदी और हिंद का सम्मान करें हम
भारत की माटी हिंदी से प्यार करें हम
लेख मे हिंदी
सुलेख मे हिंदी
राष्ट्र का है परिचय हिंदी
देश विदेश के हर कोने में
सागर सी बढती जाए हिंदी
बरसात मे ढाल बनी है हिंदी
धूप मे छाव में आए हिंदी
वंदनीय है
पूजनीय है
संस्कार की जननी हिंदी
हिंदी और हिंद का सम्मान करें हम
भारत की माटी हिंदी से प्यार करें हम
हिंदी से उत्यान हमारा
हिंदी हो प्रणाम हमारा

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1 टिप्पणियाँ

  1. मैं हिन्दीभाषी हूं और भौतिकीविद्‍ (फ़िज़िसिस्ट) एवं विश्वविद्यालयीय भौतिकी शिक्षक रह चुकने के बावजूद भारतीय भाषाओं का पक्षधर हूं।
    लेकिन जो जमीनी हकीकत है उसे नज़रअंदाज नहीं कर सकता और वह है कि हिंदी अब हिन्दी अब बदल चुकी है और उसके नये अवतार को मैं हिन्दी कहना नहीं चाहता हूं।
    अब जिस हिन्दी का विकास हो रहा है वह बोलचाल तक सीमित है और हिन्दी के ढ़ाचे में बोली जा रही खिचड़ी अंग्रेजी है भले ही वह अभी अभिजात वर्ग तक सीमित हो। कालांतर में वह अधिक व्यापक हो जाएगी।
    इतना ही नहीं हिन्दी लेखन की भाषा भी नहीं रहेगी, सिवाय कुछ साहित्यिक रचनाओं में, और उनके पढ़ने-समझने वाले कितने होंगे यह भी कह पाना मुश्किल है।
    यह देश अंग्रेजी के साथ चल रहा है और हिन्दी एवं अन्य भाषाओं के पक्ष में कितना ही बोला जाये और उनको आगे बढ़ाने की बात की जाए, हकीकत में सर्वत्र अंग्रेजी की बेल फैलाई जा रही है।
    अपने-अपने विचारों का अधिकार सभी को है, परंतु सच्चाई जो है उसे कैसे झुठला सकते हैं?

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