नाम: नीतू सिंह ‘रेणुका’
जन्मतिथि: 30 जून 1984
प्रकाशित रचनाएं: ‘मेरा गगन’ नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2013), ‘समुद्र की रेत’ कथा संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2016)
ई-मेल: n30061984@gmail.com
ये विश्राम स्थल है
इसे मंजिल न बना लेना
सफर में ही रहना
ठहराव न अपना लेना।
बहता पानी ही रहना
ठहरे तो, पानी भी सड़ जाता है
सघन, गहन वन देख
साईस का घोड़ा भी अड़ जाता है
यह पथ है, वन है, कानन है,
इसे आँगन न बना लेना
सफर में ही रहना
ठहराव न अपना लेना।
अच्छे हैं अजनबी सारे
पर हैं तो मार्ग के पथिक ही
लगाव न लगा लेना इनसे
कि ये भी तुम जैसे हैं श्रमिक ही
ये राह सरीखे मुड़ जाएंगे
कहीं अपना न बना लेना
सफर में ही रहना
ठहराव न अपना लेना।
राह में ठहरने को
एक छत ही पर्याप्त है।
वो भी न मिले तो
सर पर गगन व्यापत है।
मगर आराम न ढूँढना वहाँ
वहाँ घर न बना लेना
सफर में ही रहना
ठहराव न अपना लेना।
बादल ही बन कर रहना
और सब पर बरस जाना
कहीं रूक के, कहीं थम के
रास्ते में न बस जाना
गड़ के, वहीं पड़ के
अपने को शिला न बना लेना
सफर में ही रहना
ठहराव न अपना लेना।
ये विश्राम स्थल है
इसे मंजिल न बना लेना
सफर में ही रहना
ठहराव न अपना लेना।
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