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सपने, ज़िन्दगी व अनकही व्यथा [गज़ल]- गुलाब जैन

रचनाकार परिचय:-

नाम : गुलाब जैन
जन्म : २८-०२-१९५३ (हिसार) हरियाणा
गतिविधियाँ: * आल इंडिया रेडियो द्वारा मान्य लोक-गायक (हरियाणवी और राजस्थानी भाषाएं) और
सूफी गायन के अनेकों कार्यक्रम |
* हरियाणवी भाषा के स्व-रचित लोक गीतों की मेरी दो कैसेटस |
* क़रीब १० साल तक हिंदी पत्रिका 'वनिता' के लिए 'ज्योतिष-स्तम्भ' लिखना |
* सन् २०१० से ज्योतिष और वास्तु विज्ञान पर ब्लॉगिंग |
* 'साहित्य कुञ्ज', 'साहित्य सुधा' एवं 'अनुभूति -हिंदी' नामक वेब -पत्रिकाओं में मेरी चंद ग़ज़लें
प्रकाशित |
ब्लॉग : https://www.stargurugulab.blogspot.in

संपर्क : jain.gulab@gmail.com

मोबाइल : 09886800691
 सपने

मेरी आँखों में हुए दफ़्न कितने सपने |
जब हुए दूर मुझसे सब मेरे अपने |
मैंने तो चाहा फ़क़त तसव्वुर में उन्हें,
न जाने कैसे ये अफ़साने लगे छपने |
जो भी सच्चा है बशर इस भरी दुनिया में,
उसको हमेशा फटे-हाल में देखा सबने |
वादा करते थे जो हर दम साथ देने का,
आया तूफां तो सब चल दिए घर अपने |
सांस का क्या है, आज है, कल नहीं,
क्यूँ सजा रखे हैं फिर इतने सपने |


ज़िन्दगी

भागती और दौड़ती ये ज़िन्दगी
सब को पीछे छोड़ती ये ज़िन्दगी |
ख्वाब थोड़े पूरा करती ये ज़िन्दगी
और थोड़े तोड़ती ये ज़िन्दगी |
हर कदम पे है नया इक इम्तहाँ
कोई भी समझा न इसकी दास्ताँ
कर के हैरां छोड़ती ये ज़िन्दगी |
मासूमियत के पहन मुखौटे यहाँ
कैसी -कैसी चाल ये चलता जहाँ
कर के परीशां छोड़ती ये ज़िन्दगी |


'अनकही व्यथा '

एक कहानी और एक गीत
चाहा था, सुनाऊँ तुम्हें
दिल का दर्द बताऊँ तुम्हें
पर समय कहाँ था
तुम्हारे पास !
मेरी कहानी, मेरे गीत के लिए,
अपने जीवन के इस मीत के लिए,
पर, अब न जाने
मेरी कहानी, मेरे गीत,
कहाँ भटक गए ?
मेरे दिल में, मेरे गले में,
न जाने क्यों अटक गए
न जाने कौन सुनेगा
मेरे इस दिल की व्यथा
मेरी अनकही कथा
न जाने कौन, कब, कहाँ
न जाने कौन ...!




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