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बचपन खो गया [कविता]- छगन लाल गर्ग "विज्ञ"

रचनाकार परिचय:-

छगन लाल गर्ग
पिता : श्री विष्णु राम जी
प्रकाशित पुस्तके : "क्षण बोध " काव्य संग्रह गाथा पब्लिकेशन, लखनऊ ( उ,प्र)
"मदांध मन" काव्य संग्रह, उत्कर्ष प्रकाशन, मेरठ (उ,प्र)
"रंजन रस" काव्य संग्रह, उत्कर्ष प्रकाशन, मेरठ (उ,प्र)
"अंतिम पृष्ठ" काव्य संग्रह, अंजुमन प्रकाशन, इलाहाबाद (उ,प्र)
"तथाता " छंद काव्य, उत्कर्ष प्रकाशन, मेरठ ।
वर्तमान मे: बाल स्वास्थ्य एवं निर्धन दलित बालिका शिक्षा मे सक्रिय सेवा कार्य ।अनेकानेक साहित्य पत्र पत्रिकाओ व समाचार पत्रों में कविता व आलेख प्रकाशित ।
सम्मान : "हिन्दी साहित्य गौरव सम्मान -2016" उत्कर्ष प्रकाशन द्वारा ।
रूचि : शिक्षा चिंतन व साहित्य सृजन ।
वर्तमान पता : 2 डी 78 राजस्थान आवासन मंडल, आकरा भट्टा, आबूरोड जिला - सिरोही (राजस्थान )307026
मोबाइल 9461449620
EMAIL: Chhaganlaljeerawal@gmal.com
बचपन खो गया ।
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हरि गीतिका छंद ।

निर्झर रागिनी रास गया रे , अतीत सुखद खो गया ।
प्राण संगीत तार घीसते , टूटता तन सो गया ।
चेतना का अहसास गहरा, नाश से घबरा गया ।
लो जीवन रागिनी तडपती,याद मीठी खो गया ।।1

जवान देह में याद जगती , मौज बचपन खो गया ।
बुढियन देह मे आग उठती, लौ जवानी खो गया ।
मौत आयी संताप उठता, देह विहीन हो गया ।
निश्चय यही जीवन हमारा, हमसे परेशान हो गया ।।2

जीता हो जहां मानव सदा ,खुशी आ पाती नही ।
ढूँढे खुशियाँ व्यतीत हुई , अतीत गुजारा वही ।
सुन्दर सा अतीत भोग चले, बचपन सुहाया सही ।
कहना तत्काल का क्या करें, अभागे खुशियाँ नही ।।3

बचपन घना यादो बसा हैं , डांट नित खाते रहे ।
माँ बाप से शिक्षक डपटते , सभी से दबते रहे ।
शिक्षक अजीब प्रेम प्रकटते , डंडे चलाते रहे ।
असहाय तन से मन मसोसे, युवा चाहत सो रहे।। 4

सच कहूँगा मनबात सुन लो, विगत काल भला रहा।
कंटक चुभन सी छल वासना,जोश तनाव खो रहा ।
बचपन की अबोध क्रीडाये, मजे से उडता रहा ।
कड़ी धूप अब भूल चुका हूँ , बचपन याद खो रहा ।।5

छगन लाल गर्ग विज्ञ ।



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