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बारूद बिछा कोना ,,,, [कविता]- सुशील यादव

रचनाकार परिचय:-


यत्रतत्र रचनाएं ,कविता व्यंग गजल प्रकाशित | दिसंबर १४ में कादम्बिनी में व्यंग | संप्रति ,रिटायर्ड लाइफ ,Deputy Commissioner ,Customs & Central Excise ,के पद से सेवा निवृत, वडोदरा गुजरात २०१२ में सुशील यादव New Adarsh Nagar Durg (C.G.) ०९४०८८०७४२० susyadav7@gmail.com


बारूद बिछा कोना ,,,,
--
हर किसी के आगे,
अपना रोना ले-के,
क्या करेंगे
#
ये मायूस फुलझड़ियां ,
बुझे-बुझे अनार ,
फाटकों की
बे-आवाज
सिसकियाँ
फुसफुसाते से
बिना धमाके वाले
एटम बम
इस दीवाली ....
तोतली आवाज वाला
खिलौना ले के क्या करेंगे
--
उन दिनों की जो
होती थी दीवाली
व्यंजनों से भरी-भरी
घर-घर सजती थाली
वो इसरार से गले मिलना
वो इंकार में सर का
बेबाक-बेझिझक हिलना
वो फटाकों की लड़ियाँ
वो धमाको की गूंज
वो खत्म न होने वाली
फुलझड़ियां
बीते लम्हों में
फिर से जीने का अहसास
वो सपन सलौना
ले-के क्या करेंगे ....?
#
आज तकलीफों में,
जमाना है,
जिधर भी देखें
शोर-दहशत,
वहशियाना है
रोज धमकियों के एटम
धमनियों में उतारे जाते हैं
धरती की मांग
खून से सँवारे जाते हैं
जगह -जगह
चीख-चीत्कार है
मजहब के नाम पर
अपनी-अपनी ढपली
अपनी दहाड़ है....
है अगर जंग जायज
तो
जंग का ऐलान हो
मुनादी हो ,शंख फूंके
सभी को गुमान हो
कहाँ छुपे हैं
दहशतगर्द
कहाँ रहते हैं मौजूदा मर्द ...?
हर सांस ,हर गली
तकलीफो के सिरहाने में
सर टिका है
अस्मत के कुछ खेल हुए
कहीं भीतर-भीतर ईमान डिगा है
हम सियासत की
कुटिल चालें,गन्दी बिसात
गन्दा बिछौना
ले के क्या करेंगे ...?
राहत की जमीन
मिल भी गई कहीं
बारूद-बिछा,
कोना ले के क्या करेंगे
--
हों बचे गड़े खजाने,
कहीं मुहब्बत के,
चलो उसे फिर खोदें , आजमाये
जर-जोरू ,जमीनों के ,
अंतहीन झगड़े ,
सहमति से निपटाएं
असहमति का नाग रक्षित
सोना ले के क्या करेंगे
--
सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग
छत्तीसगढ़


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