रचनाकार परिचय:-
ग़ज़ल (१)
साहित्यिक नाम : प्रमोद कुमार कुश 'तनहा' (Pramod Kumar Kush ‘Tanha’)
जन्म तिथि : 21 अगस्त
शिक्षा: एम्.टेक., केमिकल ( आई 0आई0 टी0 , दिल्ली )
सम्प्रति : पूर्व निदेशक ( प्रथम श्रेणी ), केन्द्र सरकार
कवि , ग़ज़लकार , लेखक , संगीतकार एवं गायक
हिन्दी फ़िल्मों के लिए गीत , कहानी, पटकथा, संवाद लेखन में कार्यरत
रुचियाँ : 1. सृजन - कविता,गीत,ग़ज़ल, कहानी, नाटक, संगीत एवं गायन
2. तकनीकी एवं सामाजिक विषयों पर प्रशिक्षण
3. मंच संचालन , राष्ट्रीय कवि सम्मेलनों एवं मुशायरों में सफ़ल प्रस्तुतिकरण
4. अंक-शास्त्र, ज्योतिष-शास्त्र एवं हस्त-रेखा आदि विषयों में सक्रिय
रचनात्मक अनुभव : तीन दशकों से अधिक
संपर्क मोबाईल नंबर : + 91 9833006145
ईमेल : kushpk@gmail.com
वीडियो लिंक : https://www.youtube.com/user/kushpk
जन्म तिथि : 21 अगस्त
शिक्षा: एम्.टेक., केमिकल ( आई 0आई0 टी0 , दिल्ली )
सम्प्रति : पूर्व निदेशक ( प्रथम श्रेणी ), केन्द्र सरकार
कवि , ग़ज़लकार , लेखक , संगीतकार एवं गायक
हिन्दी फ़िल्मों के लिए गीत , कहानी, पटकथा, संवाद लेखन में कार्यरत
रुचियाँ : 1. सृजन - कविता,गीत,ग़ज़ल, कहानी, नाटक, संगीत एवं गायन
2. तकनीकी एवं सामाजिक विषयों पर प्रशिक्षण
3. मंच संचालन , राष्ट्रीय कवि सम्मेलनों एवं मुशायरों में सफ़ल प्रस्तुतिकरण
4. अंक-शास्त्र, ज्योतिष-शास्त्र एवं हस्त-रेखा आदि विषयों में सक्रिय
रचनात्मक अनुभव : तीन दशकों से अधिक
संपर्क मोबाईल नंबर : + 91 9833006145
ईमेल : kushpk@gmail.com
वीडियो लिंक : https://www.youtube.com/user/kushpk
मुहब्बत का सफ़र सूना बहुत है
वफ़ा का रास्ता तनहा बहुत है
यहाँ भी तुम वहां भी सिर्फ तुम हो
तुम्हारा हर कहीं चर्चा बहुत है
हुआ कुछ नाम उसके ढंग बदले
सुना है आजकल उड़ता बहुत है
ये कैसा ज़ख्म है भरता नहीं है
नहीं दिखता मगर दुखता बहुत है
न बंगला है न गाड़ी ग़म नहीं है
कि सर पे बाप का साया बहुत है
मैं साहिल हूँ मेरी ख़ामोशियों से
समंदर बारहा उलझा बहुत है
- प्रमोद कुमार कुश 'तनहा'
ग़ज़ल (2)
ज़िन्दगी हँसते हुए कटती रहे तो ठीक है
आप जैसों की इनायत भी रहे तो ठीक है
आप छेड़ें बात कोई हम सुनाएं हाल-ए- दिल
रात ऐसे ही चलो ढलती रहे तो ठीक है
साहिलों को तोड़ने की आरज़ू मत छोडिये
सोच भी लेकिन समंदर सी रहे तो ठीक है
सामने बैठे रहो तो रूह को पहुंचे सुकूं
इश्क़ की दीवानगी बढ़ती रहे तो ठीक है
दूरियों मजबूरियों मसरूफ़ियत के दौर में
कुछ ख़बर मां - बाप की मिलती रहे तो ठीक है
कोठियों महलों पे हो गर चांदनी 'तनहा' न हो
झोंपड़ों पे भी मेहरबानी रहे तो ठीक है
- प्रमोद कुमार कुश 'तनहा'
ग़ज़ल (3)
शरीक़े ग़म तुम्हारे सिर्फ़ हम थे
ज़माने के सितम थे सिर्फ़ हम थे
फ़क़त इक बार तुमसे बात की थी
निशाने पे सभी के सिर्फ़ हम थे
तुम्हारे साथ लाखों मुस्कुराये
तुम्हारे साथ सिसके सिर्फ़ हम थे
ग़ज़ल की बात करते थे हज़ारों
ग़ज़ल की बात करते सिर्फ़ हम थे
चलेंगे साथ था वादा तुम्हारा
चले 'तनहा' सफ़र पे सिर्फ़ हम थे
- प्रमोद कुमार कुश 'तनहा'
7 टिप्पणियाँ
नमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति "पाँच लिंकों का आनंद" ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में गुरूवार 02-11-2017 को प्रातः 4:00 बजे प्रकाशनार्थ 839 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
जवाब देंहटाएंचर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर। सधन्यवाद।
बढ़िया, बधाई
जवाब देंहटाएंसाहिलों को तोड़ने की आरज़ू मत छोडिये
जवाब देंहटाएंसोच भी लेकिन समंदर सी रहे तो ठीक है।
बहुत बहुत बहुत दिलकश। तीनों ग़ज़लें शानदार। लुत्फ़ ही लुत्फ़ आया आदरणीय तनहा साहेब।
बहुत कम ऐसी ग़ज़लें पढ़ने को मिलती हैं आजकल....
जवाब देंहटाएंहर ग़ज़ल खूबसूरत है । मुबारक़ ।
तुम्हारे साथ लाखों मुस्कुराये
जवाब देंहटाएंतुम्हारे साथ सिसके सिर्फ़ हम थे...
बड़ी प्यारी बात कही है !
चलेंगे साथ था वादा तुम्हारा
जवाब देंहटाएंचले 'तनहा' सफ़र पे सिर्फ़ हम थे
बहुत सुन्दर।
लाजवाब गजल.....
जवाब देंहटाएंएक से बढकर एक शेर
वाह!!!!
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.