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सार-तत्त्व [कविता] - डॉ महेन्द्र भटनागर

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 डा. महेंद्र भटनागर रचनाकार परिचय:-


डा. महेंद्रभटनागर
सर्जना-भवन, 110 बलवन्तनगर, गांधी रोड, ग्वालियर -- 474 002 [म. प्र.]

फ़ोन : 0751-4092908 / मो. 98 934 09793
E-Mail : drmahendra02@gmail.com
drmahendrabh@rediffmail.com



सकते में क्यों हो,
अरे!
नहीं आ सकते
जब काम
किसी के तुम -
कोई क्यों आये
पास तुम्हारे?
चुप रहो,
सब सहो।
पड़े रहो
मन मारे,
यहाँ-वहाँ।
कोई सुने
तुम्हारे अनुभव,
कोई सुने
तुम्हारी गाथा,
नहीं समय है
पास किसी के।
निष्फल -
ऐसा करना
आस किसी से।
अच्छा हो
सूने कमरे की दीवारों पर
शब्दांकित कर दो,
नाना रंगों से
चित्रंकित कर दो
अपना मन!
शायद, कोई कभी
पढ़े / गुने!
या
किसी रिकॉर्डिंग-डेक में
भर दो
अपनी करुण कहानी
बख़ुद ज़बानी!
शायद, कोई कभी
सुने!
लेकिन
निश्चिन्त रहो -
कहीं न फैले दुर्गन्ध
इसलिए तुरन्त
लोग तुम्हें
गड्ढ़े में गाड़ / दपफ़न
या
कर सम्पन्न दहन
विधिवत्
कर देंगे ख़ाक / भस्म
ज़रूर!
विधिवत्
पूरी कर देंगे
आिख़री रस्म
ज़रूर!





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