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राग दरबारी [कविता]- डॉ गोरख प्रसाद मस्ताना

रचनाकार परिचय:-

नाम : डॉ गोरख प्रसाद मस्ताना
शिक्षा : एम.ए. (त्रय), पीएच -डी (हिंदी)
निवास : "कव्यांगन", पुरानी गुदरी, महाबीर चौक
बेतिया, पश्चिमी चंपारण, बिहार - 845438
जन्म तिथि : 01 फ़रवरी, 1954
सम्प्रति : सेवानिवृत प्राध्यापक( हिंदी) राज इंटर कॉलेज , बेतिया
ई मेल- mastanagorakh@gmail.com

आँसू की खेती होती है, मेरी चारदीवारी में
जीवन को जीना पड़ता है, जीने की लाचारी में

धरती का श्रृंगार आदमी
सुरभित मलय बयार आदमी
नील गगन का प्यार आदमी
प्रकृति का उपहार आदमी
यही आदमी काट रहा है, एक एक पल दुश्वारी में

सृजन कमी है नाश आदमी
भविष्य का विश्वास आदमी
क्षण क्षण बना उदास आदमी
कंुठित और निराश आदमी
मुर्झाये गुलाब सा दुर्बल, जीवन की फुलवारी में

सफर एक अनजान आदमी
शोला भी, तूफान आदमी
समृद्वि की मुस्कान आदमी
अभाव का भी गान आदमी
दुकुल ओढ़ दुर्दिन का बैठा, मरने की तैयारी में

जहर बुझी तलवार आदमी
विषधर सम खुंखार आदमी
प्रेम पुष्प का हार आदमी
अमृतमय संसार आदमी
स्वार्थ सिन्धु में जब से खोया, रहा नहीं खुद्दारी में

सच लेकर जो जना आदमी
कपट झुठ से सना आदमी
मानवता से फना आदमी
द्वेष दर्प से तना आदमी
व्यक्ति-व्यक्ति नित बोल रहा है, यहा राग दरबारी में

जीवन को जीना पड़ता है, जीने की लाचारी में

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