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नई पहचान व देखो तो शाला जाकर [कविता]- डॉ.प्रमोद सोनवानी " पुष्प "

रचनाकार परिचय:-

डॉ.प्रमोद सोनवानी " पुष्प "
संपादक- "वनाँचल सृजन"
"श्री फूलेंद्र साहित्य निकेतन"
तमनार/पड़ीगाँव-रायगढ़(छ.ग.)
भारत , पिन-496107
ई-मेल:-Pramodpushp10@gmail. com
" नई पहचान "
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नित्य सवेरे तुम जग जाना ,
धरती माँ को शीश नवाना ।
प्यारे बच्चों इस दुनियाँ में ,
मिल-जुलकर पहचान बनाना ।।1।।

मात-पिता की सेवा करना ,
बाधाओं से कभी न डरना ।
पढ़-लिखकर जीवन में अपनें ,
मिल-जुलकर पहचान बनाना ।।2।।

सच्चाई के पथ पर चलना ,
भेद-भाव की बात न करना ।
अपनी मंजिल तक जाकर तुम,
मिल-जुलकर पहचान बनाना ।।3।।


" देखो तो शाला जाकर "
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करके जल्दी से तैयारी,
शाला पढ़नें जायेंगे ।
चित्र बनें हैं जहाँ मनोहर,
मन अपना बहलायेंगे ।।

पुस्तक-काँपी लेकर झटपट,
सीधे शाला जाना है ।
ध्यान लगाकर सच्चे मन से,
सबक हमें तो पढ़ना है ।।

कितना अच्छा मिलता भोजन,
देखो तो शाला जाकर ।
खेल-कूद भी तरह-तरह के,
देखो तो शाला जाकर ।।




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