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स्वपन [कविता]- शबनम शर्मा

रचनाकाररचनाकार परिचय:-

शबनम शर्मा
अनमोल कुंज, पुलिस चैकी के पीछे, मेन बाजार, माजरा, तह. पांवटा साहिब, जिला सिरमौर, हि.प्र. – 173021 मोब. - 09816838909, 09638569237



गोद में नन्हें को लिये,
मुस्करा रही थी,
खुद ही खुद बतिया
रही थी,
मेरा राजा बेटा, मेरा
राजकुमार
मेरी आँखों का तारा
मेरा राजदुलारा,
कब बड़ा होगा?
मम्मा के लिये लाएगा
इक सुन्दर सी दुलहन
घूमेगी, खाना पकाएगी,
पाँव दबाएगी,
कटेगा बुढ़ापा उस नन्हीं
सी जान की आस पर!
नहीं करेगी अलग वह
पल भर भी, इस नन्हीं जान को,
बड़ा होगा तो क्या?
उसके लिये तो ‘नन्हा’ ही रहेगा।
पास बैठी बेटी सुन रही सब
कि भोली भाषा में बोल बैठी
‘‘माँ, ऐसा कुछ नहीं होगा,
तूने दादा-दादी को घर से
निकाला है,
ज़मीन पर सुलाया है,
कभी सेवा नहीं की,
पापा को उनसे बतियाने
भी नहीं दिया,
मुझे भी उनके पास
जाने नहीं दिया।’’
सुनकर स्तब्ध, हैरान व बेचैन
सोच अपना वही कंटीला भविष्य
जो उसने बो दिया था।








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1 टिप्पणियाँ

  1. बोया बबूल तो आम की उम्मीद भी न रखें।

    प्रेरक रचना समाज की बदलती मानसिकता को झकझोरती हुई....

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