रमेशराज की बच्चा विषयक मुक्तछंद कविताएँ
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-मुक्तछंद-
।। जूता और बच्चा ।।
जूते को लगातार चमकाता है
उसे आईना बनाता है
रंग और क्रीम के साथ
जूते पर पालिश
करता हुआ बच्चा।
बच्चा गुनगुनाता है
मीठी आवाज में फिल्मी गीत
जूते पर पड़ते हुए
टांकों के साथ
बच्चा करता है
चिलचिलाती धूप में
अपने अकेलेपन से बात।
जूते में छोटी-छोटी
टिकलियां टाकते हुए
सड़क की गर्म धूल फांकते हुए
बच्चा सर से एड़ी तक
पसीने से तर हो जाता है
जूते में खो जाता है
जूता बनाते हुए।
थके हुए हाथों की
उगलियां चटकाते हुए
बच्चा भविष्य की
कल्पनाएं बुनता है
अपने भीतर वसंत चुनता है
जूते पर आयी
चमक और पूर्णता के साथ।
ऐसे में हो जाते हैं
बौराए आम-से
बच्चे के जज्बात।
-रमेशराज
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1 टिप्पणियाँ
वाह ! मन की गहराइयों में छिपे दर्द को क्या ख़ूब उकेरा है सराहनीय रचना आभार। "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.