
आचार्य बलवन्त वर्तमान में बैंगलूरु के एक कालेज में हिन्दी विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं।
आपका एक काव्य-संग्रह "आँगन की धूप" प्रकाशित हो चुका है। इसके अतिरिक्त आपकी कई रचनाएं समय समय पर अहिंसा तीर्थ, समकालीन स्पन्दन, हिमप्रस्थ, नागफनी, सोच-विचार, साहित्य वाटिका, वनौषधिमाला आदि पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों में भी प्रकाशित होती रही हैं। आपकी कुछ रचनाएं आकाशवाणी जलगाँव और बंगलूरु से भी प्रसारित हुई हैं।
आपका एक काव्य-संग्रह "आँगन की धूप" प्रकाशित हो चुका है। इसके अतिरिक्त आपकी कई रचनाएं समय समय पर अहिंसा तीर्थ, समकालीन स्पन्दन, हिमप्रस्थ, नागफनी, सोच-विचार, साहित्य वाटिका, वनौषधिमाला आदि पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों में भी प्रकाशित होती रही हैं। आपकी कुछ रचनाएं आकाशवाणी जलगाँव और बंगलूरु से भी प्रसारित हुई हैं।
राजनेता, जनता की भड़ांस पर
स्वार्थ की रोटियाँ पका रहे हैं।
दो, चार फेंक देते हैं।
चिल्लाते हुए कौओं को चुप रहने के लिए,
शेष ख़ुद ही खा रहे हैं।
अपनी पहचान के लिए,
झूठी शान के लिए,
पैसे को पानी की तरह बहा रहे हैं।
ये जनता के सेवक हैं,
जो जनता को जिन्दा ही जला रहे हैं।
2 टिप्पणियाँ
आदरणीय बहुत सार्थक रचना है आपकी ---- आभार और शुभकामना
जवाब देंहटाएंवाह!! बहुत खूब !!
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.