
डा. महेंद्रभटनागर
सर्जना-भवन, 110 बलवन्तनगर, गांधी रोड, ग्वालियर -- 474 002 [म. प्र.]
फ़ोन : 0751-4092908 / मो. 98 934 09793
E-Mail : drmahendra02@gmail.com
drmahendrabh@rediffmail.com
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जब- वांछित / काम्य / अभीप्सित नहीं मिला,
जीने का क्या अर्थ रहा?
कोसों फैले
लह-लह लहराते उपवन में
जब- हृदय-समायी: मन भायी गंध-भरा
पुलकित पाटल नही खिला_
जीवन-भर का तप व्यर्थ रहा।
जीने का क्या अर्थ रहा,
जब अन्तर-तम में हर क्षण, हर पल
केवल मर्मान्तक त्रस सहा?
माना- बहुमूल्य अनेकों उपहार मिले,
हीरों के हार मिले,
अनगिनत सफलताओं पर
असंख्य कंठों से
नभ-भेदी जय-जयकार मिले,
सर्वोच्च शिखर सम्मान मिले,
पग-पग पर वरदान मिले।
कितु नहीं पाया मन-चाहा!
लगता है: दुर्लभ जीवन निष्कर्म गया,
जैसे भंग हुई लगभग साधित-कठिन तपस्या।
दहका दाह अभावों का,
हर सपना भस्म हुआ।
निर्धन, निष्फल, भिक्षु अकिंचन-
जैसे नहीं किसी की लगी दुआ।
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1 टिप्पणियाँ
बेहतरीन लेखनी,
जवाब देंहटाएंजब- वांछित / काम्य / अभीप्सित नहीं मिला,
जीने का क्या अर्थ रहा?
कोसों फैले लह-लह लहराते उपवन में
जब- हृदय-समायी: मन भायी गंध-भरा
पुलकित पाटल नही खिला_
जीवन-भर का तप व्यर्थ रहा।
- असाधारण लेखन, उत्कृष्ठ शैली और परिपक्व अनुभव से सजी यह रचना अंतःकरण को छू गई। बथाई आदरणीय भटनागर जी।
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.