
मूलतः फरीदाबाद, हरियाणा के निवासी दिगंबर नासवा को स्कूल, कौलेज के ज़माने से लिखने का शौक है जो अब तक बना हुआ है।
आप पेशे से चार्टेड एकाउंटेंट हैं और वर्तमान में दुबई स्थित एक कंपनी में C.F.O. के पद पर विगत ७ वर्षों से कार्यरत हैं।
पिछले कुछ वर्षों से अपने ब्लॉग "स्वप्न मेरे" पर लिखते आ रहे हैं।
गिर गए हैं और कुछ खड़े हुए
पेड़ आंधियों से हैं डरे हुए
मुफ्त में ही बंट रहा है कुछ कहीं
आदमी पे आदमी चढ़े हुए
रोज एक इम्तिहान है नया
हम भी इस तरह यहाँ बड़े हुए
बादलों का साथ दे रही हवा
सामने हैं सूर्य के अड़े हुए
चुप थे पैरवी में चश्म-दीद सब
नोट कह रहे थे कुछ मुड़े हुए
कुछ निकल गए बना के हम-सफ़र
कुछ हैं तेरी याद से जुड़े हुए
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