प्राण शर्मा वरिष्ठ लेखक और प्रसिद्ध शायर हैं और इन दिनों ब्रिटेन में अवस्थित हैं। आप ग़ज़ल के जाने मानें उस्तादों में गिने जाते हैं। आप के "गज़ल कहता हूँ' और 'सुराही' काव्य संग्रह प्रकाशित हैं, साथ ही साथ अंतर्जाल पर भी आप सक्रिय हैं।
बसंत बहार - प्राण शर्मा
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फूलों की ख़ूब धूम मची है बसंत में
क्या झूम के बयार बही है बसंत में
फूलों के जेवरों से सजी है बसंत में
हर वाटिका दुल्हन सी बनी है बसंत में
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मन क्यों न बार-बार रमे उसमें साथियों
खुशबू ही खुशबू फैली हुयी है बसंत में
आओ चलें बगीचे में कुछ वक़्त के लिए
क्या गुनगुनी सी धूप खिली है बसंत में
उस शोखी का जवाब नहीं दोस्तो कहीं
जिस शोखी में पतंग उड़ी है बसंत में
कम्बल,रजाइयों की ज़रुरत नहीं रही
सर्दी की लहर लौट गयी है बसंत में
कण-कण धरा का आज हुआ स्वर्ण की तरह
ये किस की ` प्राण ` जादूगरी है बसंत में
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कलियों को बनते सुमन मधुमास में
देखिये,कुदरत का फ़न मधुमास में
ताज़ा कुछ ऐसा है तन मधुमास में
पल में मिटती है थकन मधुमास में
खुशबुएँ ही खुशबुएँ हैं हर तरफ
क्यों न इतराये चमन मधुमास में
धरती दुल्हन लगती है हर एक को
दुल्हा लगता है गगन मधुमास में
छेड़खानी करता है हर फूल से
कितना नटखट है पवन मधुमास में
आया है तो साल भर यूँ ही रहे
कितना अलबेला है मन मधुमास में
क्यों न मोहे हर किसीको हर घड़ी
` प्राण ` धरती की फबन मधुमास में
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होते ही प्रात:काल आ जाती हैं तितलियाँ
मधुवन में ख़ूब धूम मचाती हैं तितलियाँ
फूलों से खेलती हैं कभी पत्तियों के संग
कैसा अनोखा खेल दिखाती हैं तितलियाँ
बच्चे , जवान , बूढ़े नहीं थकते देख कर
किस सादगी से सबको लुभाती हैं तितलियाँ
सुंदरता की ये देवियाँ परियों से कम नहीं
मधुवन में स्वर्गलोक रचाती हैं तितलियाँ
उड़ती हैं किस कमाल से फूलों के आसपास
दीवाना हर किसीको बनाती हैं तितलियाँ
वैसा कहाँ है जादू किसी और पंछी में
तन - मन में जैसा जादू जगाती हैं तितलियाँ
इनके ही दम से `प्राण` हैं हर ओर रौनकें
बगियों का चप्पा - चप्पा सजाती हैं तितलियाँ
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धरा और गगन को वो फिर भा गया है
बहारों का राजा बसंत आ गया है
ये राजा है सुन्दर कि इसके असर से
नया रूप हर एक पर छा गया है
बसंती हवाएँ महकने लगी हैं
हरिक फूल कुछ ऐसा महका गया है
भला क्यों न खुश हो किसानों की टोली
कि हर खेत सरसों से लहरा गया है
सभी पीले परिधान में जँच रहे हैं
लो बलिदान का अब समय आ गया है
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1 टिप्पणियाँ
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