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निरंतर कुछ सोचते हुए [कविता] - रमेशराज

रचनाकार परिचय:-


रमेशराज,
15/109, ईसानगर,
अलीगढ़-२०२००१

रमेशराज की बच्चा विषयक मुक्तछंद कविताएँ
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-मुक्तछंद-

।। निरंतर कुछ सोचते हुए ।।


होटल पर
ग्राहकों को चाय पिलाता हुआ बच्चा
धीरे-धीरे बड़ा होता है
ग्राहकों और होटल मालिक की
गालियों के बीच |

होटल पर
ग्राहकों और होटल मालिक को
खुश करता है बच्चा
दांत निपोरते हुए
चाय बनाते हुए
गिलास भरते हुए
पान सिगरेट लाते हुए
गाना गाते हुए
चेहरे ताकते हुए
दौड़ते भागते हुए।

होटल पर
ग्राहकों की चाय और सिगरेट के साथ
राजनीति पर होती हुई बहस के बीच
बच्चा टटोलता है
अपने बूढ़े बाप, अंधी मां
और कुंआरी बहन के सन्दर्भ।

होटल पर
चाय देता हुआ बच्चा
अपने आप को परोसता है
टेबिलों पर चाय की तरह
ग्राहकों के बीच।

होटल पर
टूटते हुए गिलासों
गाल पर पड़े हुए चांटों
लम्बी फटकारों के सन्दर्भ
जोड़ता हुआ बच्चा
अपने आपको तब्दील करता है
एक आग में
निरन्तर कुछ सोचते हुए।

-रमेशराज

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