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जीने के लिए [कविता] - डॉ महेन्द्र भटनागर

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 डा. महेंद्र भटनागर रचनाकार परिचय:-


डा. महेंद्रभटनागर
सर्जना-भवन, 110 बलवन्तनगर, गांधी रोड, ग्वालियर -- 474 002 [म. प्र.]

फ़ोन : 0751-4092908 / मो. 98 934 09793
E-Mail : drmahendra02@gmail.com
drmahendrabh@rediffmail.com



दहशत दिशाओं में
हवाएँ गर्म
गंधक से, गरल से
कितु मंज़िल तक
थपेड़े झेलकर
अविराम चलना है।
शिखाएँ अग्नि की
सैलाब-सी
रह-रह उमड़ती हैं
कितु मंिज़ल तक
चटख कर टूटते शोलों-भरे
वीरान रास्तों से
गुजरना है,
तपन सहना
झुलसना और जलना है।
सुरंगें हैं बिछी
बारूद की
चारों तरपफ़
नदियों पहाड़ों जंगलों में
कितु मंज़िल तक
अकेले
खाइयों को - खंदकों को
लौह के पैरों तले
हर बार दलना है।




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