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दुआओं में कुछ था असर [ग़ज़ल]- दिगम्बर नासवा



span title=साहित्य शिल्पी" रचनाकार परिचय:-

मूलतः फरीदाबाद, हरियाणा के निवासी दिगंबर नासवा को स्कूल, कौलेज के ज़माने से लिखने का शौक है जो अब तक बना हुआ है।

आप पेशे से चार्टेड एकाउंटेंट हैं और वर्तमान में दुबई स्थित एक कंपनी में C.F.O. के पद पर विगत ७ वर्षों से कार्यरत हैं।

पिछले कुछ वर्षों से अपने ब्लॉग "स्वप्न मेरे" पर लिखते आ रहे हैं।



हम बुजुर्गों के चरणों में झुकते रहे
पद प्रतिष्ठा के संजोग बनते रहे

वो समुंदर में डूबेंगे हर हाल में
नाव कागज़ की ले के जो चलते रहे

इसलिए बढ़ गईं उनकी बदमाशियाँ
हम गुनाहों को बच्चों के ढकते रहे

आशकी और फकीरी खुदा का करम
डूब कर ज़िन्दगी में उभरते रहे

धूप बारिश हवा से वो महरूम हैं
फूल घर के ही अंदर जो खिलते रहे

साल मे दो दिनों को मुक़र्रर किया
देश भक्ति के गीतों को सुनते रहे

दोस्तों की दुआओं में कुछ था असर
हम तरक्की के सौपान चढ़ते रहे

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