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वो भ्रम [कविता]- डॉ.मनोज कुमार

रचनाकार परिचय:-

डॉ.मनोज कुमार
शिक्षा : पीएचडी

पेशा: कंसलटेंट बायोकेमिस्ट नरेंद्र मोहन हॉस्पिटल गाजियाबाद
प्रकाशन: देश के पत्र पत्रिकाओं में अनवरत रूप से जैसे: अंतरराष्ट्रीय पत्रिका “सेतु” (अमेरिका) का जून 2017 अंक, हिंदी मासिक पत्रिका "ट्रू मीडिया",, मशाल(साझा-काव्य संग्रह) ,वर्तमान अंकुर ,विजय न्यूज़ करंट क्राइम दिल्ली मेट्रो और गज केसरी युग में रचनाएँ प्रकाशित वर्तमान पता: नरेंद्र मोहन हॉस्पिटल एंड हार्ट सेंटर मोहन नगर गाजियाबाद उत्तर प्रदेश सम्मान: जन मीडिया नई दिल्ली द्वारा नवोदित कवि के रूप में साहित्य सौरभ सम्मान/
e mail- manojkripi@gmail.com
1.वो भ्रम
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इंसान सवार है
निश्चित अनिश्चित के नाव पे
अपने पराये के बीच
किस पर विश्वास करे
मुश्किल है कहना
समय का फेर है
सब मुखौटो का खेल है
किसी ने देखा है मुखौटो के पीछे
का वह चेहरा!
है स्नेह या स्वार्थ
एक ने लूटा अब दूसरे की बारी
अंतिम निर्णय है करना
निश्चित या अनिश्चित
आपने या पराये
मुखौटा उतरने दो
भ्रम टूट जाएगा
तब तक निश्चित और अपने जा चुके होंगे
अनिश्चित और पराये
मृगमरीचिका की तरह
दूर से हँसते तुम्हारी नादानी
पे जश्न मनाते
किसी और की तलाश में
नई जगह नई पारी
जहाँ अपने स्वार्थ के लिये
ढूढ लेंगे तुम्हारे जैसे किसी और को
नये मुखौटो को पहन
पहचान सकते हो,तो बच जाओ
वरना ? तैयार रहो
फिर से ? उसी भ्रम में!
जीने के लिये?
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