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बाधाएँ: चुनौती हैं! [कविता] - डॉ महेन्द्र भटनागर

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 डा. महेंद्र भटनागर रचनाकार परिचय:-


डा. महेंद्रभटनागर
सर्जना-भवन, 110 बलवन्तनगर, गांधी रोड, ग्वालियर -- 474 002 [म. प्र.]

फ़ोन : 0751-4092908 / मो. 98 934 09793
E-Mail : drmahendra02@gmail.com
drmahendrabh@rediffmail.com



बाधाएँ-
निरुत्साहित नहीं करतीं हमें,
प्रतिक्षण बनातीं बल सजग।
कठिनाइयों के सामने
पग डगमगाते हैं नहीं,
प्रत्युत् लगा कर पंख बिजली के
धरा-आकाश का विस्तार लेते नाप।
बाधाएँ-
‘विकट, दुर्लंध्य, अविजित’
है निरा अपलाप।
बाधाएँ-
बनातीं परमुखापेक्षी नहीं हमको,
बाधाएँ-
बनाती हैं न किंचित दीन
उद्यमहीन हमको।
वे जगातीं
सुप्त अन्तर-शक्तियाँ सारी,
न भय रहता, न लाचारी।
कौंधती बिजली सबल तन में,
उभरते दृढ़ नये संकल्प मन में।
बाधाएँ: चुनौती हैं!
इन्हें स्वीकारना-
पर्याय: मानवता-महत्ता का।
इन्हें स्वीकारना –
उद्घोष: जीवन की चिरन्तन
ऊर्ध्व सत्ता का।
इन्हें स्वीकारना-
पहचान: तेजस्वी, सतत गतिमान,
मानव के पराक्रम की।
इन्हें स्वीकारना-
अनुभूति:
चिर-परिचित
मनुज-इतिहास-प्रमाणित
अथक श्रम की।
बाधाएँ-
हतोत्साहित नहीं करतीं कभी
बाधाहरों को।
वे बनातीें
और भी दृढ़ धारणाओं को।
कठिन के सामने मेधा
कभी होती नहीं दूषित,
वरन् उद्भावना उन्मेष से भर
और हो उठती प्रखर।
प्रत्येक बाधा हीन होगी,
नष्टशून्य-विलीन होगी।



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