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एक साध: अधूरी [कविता] - डॉ महेन्द्र भटनागर

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 डा. महेंद्र भटनागर रचनाकार परिचय:-


डा. महेंद्रभटनागर
सर्जना-भवन, 110 बलवन्तनगर, गांधी रोड, ग्वालियर -- 474 002 [म. प्र.]

फ़ोन : 0751-4092908 / मो. 98 934 09793
E-Mail : drmahendra02@gmail.com
drmahendrabh@rediffmail.com



जी करता है -
आज का दिन
जिदगी की कश-म-कश से
हटकर
बंद कमरे में
सोए-सोए गुज़ार दूँ।
न जाने कितने बरसों से
निश्चिन्त बेख़बर हो
आदिम-राग का, अनुराग का
अहसास भर
सोया नहीं।
जी करता है -
आज का दिन
निश्चेष्ट शिथिल चुप रह
चित्रमाला में अतीत की
खोए-खोए गुज़ार दूँ।
न जाने
कितने बरसों से
उजड़े गाँवों की राहों में
छूटे नगरों की बाँहों में
खोया नहीं।
जी करता है -
आज का दिन
सारे वादे, काम, प्रतिज्ञाएँ
भूल कर
गंगा की लहरों-सी
तुम्हारी याद में
रोए-रोए गुज़ार दूँ।
न जाने
कितने बरसों से
तुम्हारी तसवीर से
रू-ब-रू हो
रोया नहीं।



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