गौरव गुप्ता
s/o जे पी गुप्ता( बी एस एन एल )
दुबे कॉलोनी , बरही रोड
कटनी -४८३५०१
9424394355
Email: gupta.say@gmail.com
s/o जे पी गुप्ता( बी एस एन एल )
दुबे कॉलोनी , बरही रोड
कटनी -४८३५०१
9424394355
Email: gupta.say@gmail.com
“परिवर्तन”
दूर तक फैली ये धरती
कहते हैं निर्जन की धरती
इसके दाँए रेत है बाँए रेत है
दूर छितिज़ तक सिर्फ रेत है
सर्प बिच्छु और टिड्डे
मरू की भूमि इनके अड्डे
गिरगिटों को जानते हो?
उनकी रंगत जानते हो?
ठीक वैसी है ये धरती
दोपहर में तपती धरती
रात में शीतल सी धरती
यहाँ पर ठौर है ना है ठिकाना
ना कोई है आशियाना
रेत को तुम फर्श बना लो
आसमां को छत बना लो
बिन दीवारों की ये धरती
रेत का फैला समंदर
रोज़ उठते हैं बवंडर
बवंडरों में सीना ताने
लो खड़े हैं आज़माने
पुष्प नहीं कांटे हैं इनमें
कष्ट के माने हैं इनमें
कैक्टसों से भरी ये धरती
मील तक वीरान भू में
रण हो या फिर थार भू में
मृग मरीचिका जानते हो?
उसको कैसा मानते हो?
प्यासे को पागल बना दे
मृत्यु से परिचय करा दे
घोर छल से पटी ये धरती
आसमां का दिल है पिघला
बादलों ने सूर्य निगला
रेत को उर्वर बनाने
इंद्र का फिर रथ है निकला
रण में अंकुर फूटता है
जाने क्या ये सोचता है
सह रहा लू के थपेड़े
दोपहर और सांझ सवेरे
पहले दो फिर चार पत्ती
कुछ हरी और लाल पत्ती
बढ़ रही वीरान रण में
डर के आगे आज पत्ती
क्या है ये दिलकश नज़ारा
रण भी अब तो लगे है प्यारा
मोर कोयल और गौरैया
मुस्कुराते ताल तलैया
पोखरों में खिले कमलदल
फिरते रहते हैँ भ्रमणदल
तितलियों को जानते हो?
उनको कैसा मानते हो?
ठीक वैसी अब ये धरती
सौम्य सुन्दर सी ये धरती
हरित रंग से रंगी ये धरती
खूबसूरत नर और नारी
आ बसे हैँ बारी बारी
खिलखिलाते इनके बच्चे
कितने भोले कितने सच्चे
खेतों में बैलों की घंटी
मुन्ना दौड़े छुपे है बंटी
हल चलाकर शाम को आना
सुख की रोटी चैन से खाना
जो थी कल निर्जन की धरती
अब है ये जन जन की धरती
2 टिप्पणियाँ
बहुत खूब सर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लेख !
जवाब देंहटाएंकोटि कोटि नमन !
Hindi Panda
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.