
सुशील कुमार शर्मा व्यवहारिक भूगर्भ शास्त्र और अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक हैं। इसके साथ ही आपने बी.एड. की उपाधि भी प्राप्त की है। आप वर्तमान में शासकीय आदर्श उच्च माध्य विद्यालय, गाडरवारा, मध्य प्रदेश में वरिष्ठ अध्यापक (अंग्रेजी) के पद पर कार्यरत हैं। आप एक उत्कृष्ट शिक्षा शास्त्री के आलावा सामाजिक एवं वैज्ञानिक मुद्दों पर चिंतन करने वाले लेखक के रूप में जाने जाते हैं| अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स में शिक्षा से सम्बंधित आलेख प्रकाशित होते रहे हैं |
आपकी रचनाएं समय-समय पर देशबंधु पत्र ,साईंटिफिक वर्ल्ड ,हिंदी वर्ल्ड, साहित्य शिल्पी ,रचना कार ,काव्यसागर, स्वर्गविभा एवं अन्य वेबसाइटो पर एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।
आपको विभिन्न सम्मानों से पुरुष्कृत किया जा चुका है जिनमे प्रमुख हैं
1.विपिन जोशी रास्ट्रीय शिक्षक सम्मान "द्रोणाचार्य "सम्मान 2012
2.उर्स कमेटी गाडरवारा द्वारा सद्भावना सम्मान 2007
3.कुष्ट रोग उन्मूलन के लिए नरसिंहपुर जिला द्वारा सम्मान 2002
4.नशामुक्ति अभियान के लिए सम्मानित 2009
इसके आलावा आप पर्यावरण ,विज्ञान, शिक्षा एवं समाज के सरोकारों पर नियमित लेखन कर रहे हैं |
चंद्रशेखर आज़ाद (जन्मतिथि पर विशेष )
सुशील शर्मा
तुम आज़ाद थे आज़ाद हो आज़ाद रहोगे ।
भारत की जवानियों के तुम खून में बहोगे ।
मौत से आँखें मिला कर वह बात करता था।
अंगदी व्यक्तित्व पर जमाना नाज करता था।
असहयोग आंदोलन का वो प्रणेता था।
भारत की स्वतंत्रता का वो चितेरा था।
बापू से था प्रभावित पर रास्ता अलग था।
खौलता था खून अहिंसा से वो विलग था।
बचपन के पंद्रह कोड़े जो उसको पड़े थे।
आज उसके खून में वो शौर्य बन खड़े थे।
आज़ाद के तन पर कोड़े तड़ातड़ पड़ रहे थे।
जय भारती का उद्घोष चंदशेखर कर रहे थे।
हर एक घाव कोड़े का देता माँ भारती की दुहाई।
रक्तरंजित तन पर बलिदान की मेहँदी रचाई।
अहिंसा का पाठ उसको कभी न भाया।
खून के ही पथ पर उसने सुकून पाया।
उसकी शिराओं में दमकती थी जोशो जवानी।
युद्ध के भीषण कहर से लिखी थी उसने कहानी।
उसकी फितरत में नहीं थी प्रार्थनाएं।
उसके शब्दकोशों में नहीं थीं याचनाएं।
नहीं मंजूर था उसको गिड़गिड़ाना।
और शत्रु के पैर के नीचे तड़फड़ाना।
मन्त्र बलिदान का उसने चुना था।
गर्व से मस्तक उसका तना था।
क्रांति की ललकार को उसने आवाज़ दी थी।
स्वतंत्रता की आग को परवाज़ दी थी।
माँ भारती की लाज को वो पहरेदार था ।
भारत की स्वतंत्रता का वो पैरोकार था।
अल्फर्ड पार्क में लगी थी आज़ाद की मीटिंग।
किसी मुखबिर ने कर दी देश से चीटिंग।
नॉट बाबर ने घेरा और पूछा कौन हो तुम।
गोली से दिया जबाब तुम्हारे बाप हैं हम।
सभी साथियों को भगा कर रह गया अकेला।
उस तरफ लगा था बन्दूक लिए शत्रुओं का मेला।
सिर्फ एक गोली बची थी भाग किसने था मेटा ।
आखरी दम तक लड़ा वो माँ भारती का था बेटा।
रखी कनपटी पर पिस्तौल और दाग दी गोली।
माँ भारती के लाल ने खेल ली खुद खून की होली।
तुम आज़ाद थे आज़ाद हो आज़ाद रहोगे ।
भारत की जवानियों के तुम खून में बहोगे ।
5 टिप्पणियाँ
अति सुन्दर। सराहनीय
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर। सराहनीय
जवाब देंहटाएंकाश! आज भी ऐसे देशभक्त होते!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
सुशील कुमार जी बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआपके द्वारा बनाई गई बहुत ही सुंदर रचना है पढ़ कर अच्छा लगा। Gud morning
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.