
डा. महेंद्रभटनागर
सर्जना-भवन, 110 बलवन्तनगर, गांधी रोड, ग्वालियर -- 474 002 [म. प्र.]
फ़ोन : 0751-4092908 / मो. 98 934 09793
E-Mail : drmahendra02@gmail.com
drmahendrabh@rediffmail.com
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आदमी -
अपने से पृथक धर्म वाले आदमी को
प्रेम-भाव से - लगाव से
क्यों नहीं देखता?
उसे ग़ैर मानता है,
अक़्सर उससे वैर ठानता है।
अवसर मिलते ही
अरे, ज़रा भी नहीं झिझकता
देने कष्ट,
चाहता है देखना उसे
जड-मूल-नष्ट।
देख कर उसे
तनाव में आ जाता है,
सर्वत्र दुर्भाव प्रभाव घना छा जाता है।
ऐसा क्यों होता है?
क्यों होता है ऐसा?
कैसा है यह आदमी?
गज़ब का
आदमी अरे, कैसा है यह?
ख़ूब अजीबोगरीब मज़हब का
कैसा है यह?
सचमुच, डरावना बीभत्स काल जैसा!
जो - अपने से पृथक धर्म वाले को
मानता-समझता केवल ऐसा-वैसा!
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2 टिप्पणियाँ
डा. महेंद्रभटनागर जी, आपकी अदभुत यह कविता बहुत बढ़िया लगी.
जवाब देंहटाएंखुबसुन्दर शब्द चयन किया है।
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.