
डा. महेंद्रभटनागर
सर्जना-भवन, 110 बलवन्तनगर, गांधी रोड, ग्वालियर -- 474 002 [म. प्र.]
फ़ोन : 0751-4092908 / मो. 98 934 09793
E-Mail : drmahendra02@gmail.com
drmahendrabh@rediffmail.com
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आज यह कैसी थकावट?
कर रही प्रति अंग रग-रग को शिथिल।
मन अचेतन भाव-जड़ता पर गया रुक,
ये उनींदे शांत बोझिल नैन भी थक-से गए।
क्यों आज मेरे प्राण का
उच्छ्वास हलका हो रहा है,
गूँजते हैं क्यों नहीं स्वर व्योम में?
पिघलता जा रहा विश्वास मन का
मोम-सा बन,
और भावी आश भी क्यों दूर तारा-सी
दृष्टि-पथ से हो रही ओझल?
व जीवन का धरातल
धूल में कंटक छिपाये
राह मेरी कर रहा दुर्गम।
गगन की इन घहरती आँधियों से
आज क्यों यह दीप प्राणों का
उठा रह-रह सहम?
रे सत्य है,
इतना न हो सकता कभी भ्रम।
भूल जाऊँ?
या थकावट से शिथिल होकर
नींद की निस्पंद श्वासों की
अनेकों झाड़ियों में
स्वप्न की डोरी बनाकर
झूल लूँ?
इस सत्य के सम्मुख
झुकाकर शीश अपना
आत्म-गति को
(रुक रही जो)
रोक लूँ?
या
सत्य की हर चाल से
संघर्ष कर लूँ
आत्मबल से आज?
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