अबिरहा सम्राट पद्मश्री हीरालाल यादव के तैल चित्र व 'नागरी' पत्रिका का लोकार्पण [साहित्य समाचार]
लोकगीतों में बिरहा को विधा के तौर पर हीरालाल यादव ने दिलाई पहचान - पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव
भारतीय संस्कृति में लोकचेतना का बहुत महत्त्व है और लोकगायक इसे सुरों में बाँधकर समाज के विविध पक्षों को सामने लाते हैं। लोकगीतों में बिरहा की अपनी एक समृद्ध परम्परा रही है, जिसे हीरालाल यादव ने नई उँचाइयाँ प्रदान कीं। हीरालाल की गायकी राष्ट्रीयता से ओतप्रोत होने के साथ-साथ सामाजिक बुराइयों से लड़ने की अपील भी करती थी। डिजिटल होते दौर में उनके बिरहा गायन को संरक्षित करके आने वाली पीढ़ियों हेतु भी जीवंत रखना जरुरी है। किसान फाउण्डेशन, उत्तर प्रदेश व नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी के संयुक्त तत्वावधान में लोकगीत बिरहा के संवाहक पद्मश्री हीरालाल यादव की स्मृति में आयोजित कार्यक्रम में उक्त विचार वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल एवं चर्चित साहित्यकार श्री कृष्ण कुमार यादव ने व्यक्त किये। इस अवसर पर स्वर्गीय हीरालाल यादव के तैल चित्र एवं लोक साहित्य पर केंद्रित 'नागरी' पत्रिका का लोकार्पण भी किया गया।
पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि हीरालाल यादव ने बिरहा विधा न सिर्फ विशेष विधा के तौर पर पहचान दिलाई, बल्कि राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी इसे लोकप्रिय बनाया। उन्हें इसके लिए संगीत नाटक अकादमी सम्मान, यश भारती, भिखारी ठाकुर सम्मान से लेकर पद्मश्री तक से नवाजा गया। ऐसे में बनारस के तमाम स्थापित साहित्यकारों के चित्रों के बीच नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी में 'बिरहा सम्राट' के चित्र को शामिल किया जाना एक नई परम्परा को जन्म देगा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरिराम द्विवेदी (हरी भैया) ने कहा कि नागरी पत्रिका लोक विधा की कुंजी है, जिसमें लोक साहित्य एवं हीरालाल यादव का पूरा कृतित्व व व्यक्तित्व वर्णित है। साहित्य में ऐसी पत्रिकाओं की आवश्यकता है। बिरहा को राष्ट्रीय पटल पर स्थापित करने का श्रेय हीरालाल को जाता है।
विशिष्ट अतिथि डाॅ. जितेन्द्र नाथ मिश्र ने कहा कि हीरालाल बिरहा के रसिया थे जिनकी मधुर आवाज ने समाज को झंकृत किया। बिरहा मात्र मनोरंजन का साधन नहीं है बल्कि यह लोक रंजन की जीवनधार है। यह समाज में उत्साह, उमंग एवं सद्भाव पैदा करती है।
कविमंगल ने हीरालाल पर आधारित गीत से लोगों को भाव-विभोर कर दिया- “उड़ गया पंछी कहाॅं न जाने, करके पिजड़ा खाली, बिरहा की बगिया कर सूनी, हुआ अलविदा माली।” बिरहा गायक रामदेव के सुपुत्र शारदा ने भी गीत सुनाया।
नागरी प्रचारिणी सभा के सहायक मंत्री श्री सभाजीत शुक्ल ने कहा कि हीरालाल यादव का नागरी प्रचारिणी सभा से गहरा नाता था। सभा के माध्यम से वह संसद में बिरहा गायन किये, वे सुरीली आवाज के जादूगर व ग्राम्यांचल के चितेरे रहे।
अतिथियों का स्वागत कवि शंकरानन्द, धन्नूभगत एवं किशन जायसवाल ने किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. जयशंकर जय एवं धन्यवाद ज्ञापन बृजेश चन्द्र पाण्डेय ने किया। स्व. हीरालाल के सुपुत्र रामजी यादव, प्रोफेसर सर्वेशानन्द, प्रोफेसर दयानन्द यादव, डाक्टर राजेन्द्र, डाक्टर उमाशंकर यादव, इन्जीनियर अशोक यादव, डाक्टर दुर्गाप्रसाद श्रीवास्तव व चपाचप बनारसी ने विचार व्यक्त किया। इस अवसर पर नरोत्तम शिल्पी, सिद्धनाथ शर्मा, ज्ञान प्रकाश, सुनील यादव, चैधरी शोभनाथ, राम जनम शरण, हरिहर जख्मी, कविराज, लालजी बाबा जी सहित तमाम साहित्यकार व बुद्धिजीवी उपस्थित रहे।
डॉ. जयशंकर जय
किसान फाउण्डेशन
ए 38/242-ए, 'किसान कुंज' कोनियां, सारनाथ, वाराणसी-221007
2 टिप्पणियां
पद्मश्री हीरालाल यादव अबिरहा सम्राट थे या बिरहा सम्राट? लाल स्याही में यादव को अबिरहा सम्राट लिखा है और लोकार्पण वाले तैल चित्र के नीचे उन्हें बिरहा विधा को राष्ट्रीय सम्मान दिलाने वाला बताया गया है।
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