सावनी और अन्य कवितायें - निहाल सिंह
सावनी
काली घटाएँ करती शोर
वन में नाचें पपीहा मोर
मन-मोहक ऋतु आई ऐसी
छाइ हरीतिमा चारों और
अंबर में विधुत्त चमचमाई
आई सावन की रुत आई |
मयूर बोले पीहू- पीहू
चिड़िया बोले चीहू- चीहू
अमवा की डाली पर बैठी
वनप्रिया बोले कुहू- कुहू
मेंढक ने टर कि रव लगाई
आई सावन की रुत आई |
बागों में झूलों के मौसम
पेंग भरे गौरी मदम- मदम
खनक- खनक खनके ये कंगन
पायल बाजे छम-छम ,छम-छम
मुरारी ने मुरली बजाई
आई सावन की रुत आई |
-निहाल सिंह
झुन्झुनू ,राजस्थान
निर्धन की बकरी
निर्धन की बकरी नित्य-
दिन जाऍं वन की और
रूखा-सूखा जो मिल जाऍं
खाकर करे न शोर
उसके अधिपति का कोई
भी अपना भूम नही
चित चाहे जहाँ लग
जाती है वो चरने वही
शीतल प्रभा को नन्हे- नन्हे
अपने शिशु के साथ
चलते- फिरते वन में करें
पथ से मन की बात
देख उसको बांगबान
की ऑंखें चढ़ने लगी
किन्तु वो निरंतर आगे
की और बढ़ने लगी
वो चरकर के शिशु के
माथे को दुलारती है
वापस अपने बाड़े की
और चली जाती है
परिचय
नाम - निहाल सिंहbr />
गाँव- दूधवा-नांगलियां
जिला- झुन्झुनू
राजस्थान
सम्पर्क - nihal6376n@gmail.com
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1 टिप्पणियाँ
अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
जवाब देंहटाएंgreetings from malaysia
द्वारा टिप्पणी: muhammad solehuddin
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