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{विशेष प्रस्तुतियाँ} आलेख -1: भगत सिंह का मार्ग सूना क्यों हो गया? [परिचर्चा] - योगेश समदर्शी ......आलेख-2: राष्ट पुत्र – भगत सिह [जीवन परिचय] – अभिषेक सागर

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आलेख -1
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भगत सिंह का मार्ग सूना क्यों हो गया - योगेश समदर्शी
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भारत का स्वाधीनता संग्राम जिस अंत के साथ खत्म हुआ भगत सिंह ने उस परिणाम को पहले ही भांप लिया था। वह कहते थे कि कांग्रेस का आंदोलन गोरों के साथ एक समझोते के बाद खत्म हो जाने वाला है, पर वह देश के आजाद हो जाने की स्थिती हरगिज नहीं हो सकती... भगत सिंह ऐसी आजादी की कल्पना लेकर कभी नहीं चले जिसमे अंग्रेजी व्यवस्था भारतीय लोगों द्वारा संचालित होती रहे... देश आजाद हुआ परंतु सारी नीतिया और कानून अंग्रेजों के बनाए हुए ही चलते रहे। भगत सिंह कहा करते थे कि हमारे स्वराज मे गैरबराबरी नहीं होगी; गरीबी और बेरोजगारी पर उनका विशेष जोर हुआ करता था। कम उम्र मे भगत सिंह ने देश के लिय आदर्श स्वतंत्रता का प्रारूप बना लिया था। महात्मा गांधी के आंदोलन से भगत सिंह वैचारिक तौर पर अलग थे, हालांकी महात्मा गांधी के मार्ग से जुड कर ही उन्होंने भी आपने क्रांतीकारी जीवन की शुरुआत की थी। भगत सिंह देश के युवकों से बेहद आशावान थे और उन्हें यकीन था कि उनके बाद क्रांती का मार्ग भारत के युवक संभाल लेंगे और क्रांति अपने चरम पर पहंच जाएगी। अफसोस!! ऐसा नहीं हुआ....

भगत सिंह के बाद देश नें उनके विचार और उनका दिवास्वप्न भी जैसी फांसी चढा दिया गया है। साम्यवाद और समाजवाद की अलग ही परिभाषाएं पैदा हो गई हैं। देश का युवा भगत सिंह के बलिदान की तो जयजयकार करता रहा परंतु उनके मार्ग पर चलने की बात कहीं पीछे छूट गई। देश की राजनीतिक पार्टियां भगत सिंह का नाम और उनके नारे लगा कर देश के मनोविज्ञान को तो वोट मे तबदील करती रही, वास्तव में एक बार भी भगत सिंह के भारत को खोजने की सच्ची कोशिश किसी ने नहीं की। आज भगत सिंह के अपने गांव मे उनकी याद में लगने वाला मेला फूहडता का प्रतीक बन कर रह गया है। वहां भी उस दिन उस क्रांतीकारी के नाम पर नाच गाना हो कर उसका शहीदी दिवस मना दिया जाता है जिस नौजवान ने अपनी २३ वर्ष की आयु मे किताबे और आलेख लिखकर देश के सामने एक नई शासन प्रणाली रखने की सोच रखी थी, जो देश से अंग्रेजों को भगाने को आजादी की लडाई नहीं मानता था बल्कि शासन प्रणाली मे आमूलचूल परिवर्तन की बात कहता था, उसका शहीदी दिवस किस तरह मनाया जाना चाहिये यह भी हम सही से तय नहीं कर पाए।

जिस उम्र में आज का युवक प्यार और फूहडता के पाठ पढता है उस उम्र मे वह नौजवान देश के लिये नीतियाँ तलाश रहा था। जेल में बैठ कर देशप्रेमियों की जीवनिया पढ रहा था। देश से गरीबी मिटाने की युक्ति सोच रहा था। आज हम उन्हीं भगत सिंह का जन्म दिवस मना रहे है... हमें सोचना चाहिये.. कि क्या इतने विरल ह्र्दय और सोच वाले उस युवक को क्या याद भर करदेने से उनकी शहादत के साथ इंसाफ हो जाएगा? भगत सिंह इतने अधिक लोकप्रिय थे कि उनके आहवान पर देश की युवाशक्ति उनके साथ खडी हो गई थी। भगत सिंह उसी उत्साह को देख कर फंदा चूम गये थे... परंतु जिनके भरोसे वह बागडोर छोड कर गये वह और उनके बाद वाली पीढी उस देशभक्त के साथ दगा कर गई। भारत में खुशहाली आते आते रह गई। सरकार आज भी अंग्रेजों की बनाई नीतियों से सचालित हो रही है। कानून तो वही है, १९३० के इडिया इंडिपेंडेट एक्ट को ही हमने अपने संविधान मे जोड दिया। अंग्रेजी पुलिस के हित मे जो कानून भारत की जनता पर आतंक ढाने के लिये और उन्हें भयभीत करने के लिये बनाए गए थे आज आजाद देश में भी वह कानून ज्यों के त्यों है। इस जैसे अनेकों कनून और टैक्स अंग्रेजों के जामाने से चले आ रहे है... हमने यदि उनके कानून मे कोई बडा संशोधन सर्वसम्मति से किया है तो वह है राजनेताअओं की तन्ख्वाह बढाने का।

मेरी चिंता और आज के युवको से अपील बस इतनी ही है कि देश आज भी एक अलग तरह की गुलामी झेल रहा है देश को आज एक नही बल्कि असंख्य भगत सिंह की जरूरत है... यदि आप वास्तव में उस भगत सिंह को श्रद्धांजलि देना चाहते है तो उसके मार्ग पर चलने की सोचिये... वह मार्ग वीरान क्यों पडा है...


आलेख – 2

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राष्ट पुत्र – भगत सिह [जीवन परिचय] – अभिषेक सागर
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भगत सिंह आज भी युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत हैं। सरदार अर्जुनसिंह जी के क्रातिंकारी परिवार मे महान क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह जी का जन्म 28 सितंबर 1907 को प्रात: 9 बजे लायलपुर ज़िले के बंगा में चक नंबर 105 (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। पैदा होते ही चाचा सरदार अजीत सिंह के निर्वासन की समाप्ति तथा पिता सरदार किशन सिंह तथा छोटे चाचा सरदार स्वर्ण सिंह (जिन्हें बाद में 19 दिसंबर, १९२७ को काकोरी रेल डकैती केस में फाँसी दे दी गई) के जेल से छूटने के कारण (तीनों ही गदर पार्टी के कार्यकर्ता थे) सबने उसे ‘भागोंवाला’ तथा दादी सरदारनी जयकौर ने नाम दिया “भगत सिंह”। भगत सिह जब ढाई-तीन साल के होंगे तो एक बार वे अपने पिता के साथ खेत पर जा पहुँचे। वहाँ पर आम के पौधे रोपे जा रहे देख भगत सिंह ने भी तिनके उठा उठा कर रोपने शुरू कर दिये। पिताजी ने पूछा,”क्या कर रहे हो, बेटा?” उतर मिला,”बंदूकें बो रहा हूँ।” यह सुन सबके साथ काल भी मन ही मन यह सोच कर मुस्कुरा उठा कि जिसके जन्म पर परिजन मुक्त हुये वह सचमुच देश की मुक्ति का व्रत लेकर पैदा हुआ है।...कालांतर में यही हुआ भी।

भगत सिंह की शिक्षा बंगा के ही प्राइमरी स्कूल से शुरु होकर शहर के ही डी. ए. वी. स्कूल मे हुई। उन्हें संस्कृत में जितनी रूचि थी, अंग्रेजी से उतनी ही अरूचि। उनके जीवन मे वास्तविक बदलाव तो जलियाँवाला कांड (13 अप्रैल 1919) ने किया।.....। इसी उम्र में भगत सिंह अपने चाचाओं की क्रांतिकारी किताबे पढ़ कर सोचते थे कि इनका रास्ता सही है या नहीं ? गांधीजी के असहयोग आन्दोलन से जुड कर वे गांधीजी के तरीकों और हिंसक आन्दोलन में से अपने लिए रास्ता चुनने लगे । अंततः उन्होंने 'इंकलाब के लिए ग़र जरूरी हो तो हिंसा' को अपनाना अनुचित नहीं समझा ।तत्पश्चात उन्होंने कई जुलूसों में भाग लेना प्रारंभ किया एवं कई क्रांतिकारी दलों के सदस्य बन बैठे ।

लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह हिंदुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन नाम के एक क्रांतिकारी संगठन से जुड़ गए जिसका संचालन राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक उल्ला खाँ कर रहे थे। भगत सिह जब बी. ए. के छात्र थे तब उनकी दादी ने उनकी शादी की बात उठाई पर इस बात से नाराज होकर तथा अपने राष्ट्र प्रेम के लिये वे घर से भाग गये। एक समर्पित युग-परिवर्तक राष्ट्र का हो चुका था।

1922 मे भगत सिह दिल्ली आकर बलवंत सिह के नाम से ‘दैनिक अर्जुन’ के संपादकीय विभाग मे काम करने लगे तथा बाद मे कानपूर मे आकर स्वंयसेवक बन गंगा बाढ राहत मे सहायता की। 1924 मे पं मदन मोहन मालवीय जी के साथ उन्होंने मिलकर नई पार्टी ‘इण्डिपेण्डेट कांग्रेस पार्टी’ बनाई। 1926 मे भगत सिंह ने सुखदेव, भगवतीचरण और यशपाल के साथ मिलकर लाहौर मे भारत की आज़ादी के लिए ‘नौजवान भारत सभा’ की स्थापना की. इस संगठन का उद्देश्य ‘सेवा,त्याग और पीड़ा झेल सकने वाले’ नवयुवक तैयार करना था। भारतीय स्वतंत्रता को लेकर उनका जुनून एसा था कि उन्होंने 1926 में ही पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी।

8 व 9 सितंबर 1928 को दिल्ली के फिरोजशाह कोटला के खंडहरो मे आगे के आंदोलन की रूपरेखा के लिये क्रांतिकारियो की अखिल भारतीय सभा हुई। इस सभा में भगत सिंह के सुझाव पर दल का नाम बदलकर ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ यानि ‘हिन्दुस्तानी समाजवादी प्रजातंत्र संघ’ कर दिया गया और इसमे श्री चंद्र्शेखर आजाद को पहला सेनापति चुना गया था। अब भगत सिंह ने समर्पित क्रांतिकारी के रूप मे प्रकट होकर फिरोजपुर जाकर बाल कटवा दिये और क्रांतिकारी दल मे अपना नाम रखा - रणजीत।

साइमन कमीशन विरोध मे जब असिस्टेण्ट पुलिस सुपरिटेण्डेण्ट साण्डर्स के आदेश पर लाठी चार्ज मे लाला लाजपत राय जी को चोटे आने की घटना (जिससे बाद में उनकी मृत्यु हो गई) ने इन्हे झकझोर कर रख दिया और 17 दिसंबर 1928 को कुछ साथियों के साथ मिलकर उन्होंने साण्डर्स को गोली मार दी। कालांतर में जब श्री चंद्रशेखर आजाद ने निर्णय लिया कि सेंट्रल असेम्बली मे बम फेंककर ब्रिटिश सरकार को चेतावनी दी जाये कि भारत को तुरंत आजाद किया जाये वरना भयंकर सशस्त्र संघर्ष प्रारंभ किया जायेगा तो इस कार्य की जिम्मेदारी भी भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को दी गई। 8 अप्रेल 1929 दिन इस कार्य के लिये तय किया गया। दोनो क्रांतिकारी पत्रकार के. सी. राय के माध्यम से सदन मे प्रवेश कर दर्शक दीर्घा मे ऐसी जगह जाकर बैठ गये जहाँ से बम पूर्वनिर्धारित निशाने पर फेंके जा सकें। वास्तव में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दो बम ऐसे स्थान पर फेंके जहाँ पर सरकारी पक्ष के सदस्य बैठे थे और लगभग निर्जन था। बमों के फटने से जोरदार धमाका हुआ और सदन मे धुआँ फैल गया। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त चाहते तो भाग सकते थे क्योंकि वहाँ अफरा तफरी मच गयी थी लेकिन उनहोने दर्शक दीर्घा में ही खडे रह कर लाल पर्चे फेंके जिनमें स्पष्ट किया गया था कि अंधी और बहरी अंग्रेजी सरकार को राष्टीय संकल्प सुनाने के लिये इन बमों के द्वारा किया गया धमाका जरूरी था। पुलिस द्वारा उन्हे गिरफ़्तार कर पहले संसद मार्ग थाने और फिर चांदनी चौक पुलिस स्टेशन ले जाया गया।

दिल्ली पुलिस की आवश्यक कार्यवाही के बाद दिल्ली सेशन कोर्ट मे 7 मई 1929 को मुकदमा शुरू हुआ जिसमें प्रसिद्ध राष्ट्रीय नेता बैरिस्टर आसफ अली को अभियुक्तो की ओर से सफाई के लिये वकील नियुक्त किया गया। सरकारी गवाहों के बयानों के बाद अदालत के माँगने पर 9 जून 1929 को उन्होंने अपना लिखित बयान दिया जो क्रांति की चिंगारी बन गया। 12 जून 1929 को कड़ी सुरक्षा मे दोनो अंग्रेज सरकार के अभियुक्त क्रांतिकारियों को आजीवन काले पानी की सजा सुनाई गई। अपनी सजा के विरोध मे दोनो ने किसी प्रकार की कोई अपील करने से इनकार कर दिया। चुंकि दोनो अभियुक्त लाहौर षडयंत्र मे भी अभियुक्त थे अत: दोनो को दिल्ली से लाहौर जेल भेज दिया यहाँ भगत सिह को मियाँवाली जेल मे रखा गया। जहाँ पर 15 जून 1929 से जेल मे कैदियों के साथ अच्छे व्यवहार के लिये उन्होंनेँ भूख हड़ताल आरंभ किया जो अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक चली, संदर्भों पर अंग्रेजी तानाशाही के झुकने के बाद। किंतु लाहौर षड्यंत्र का जो मुकदमा चल रहा था उसमें 7 अक्टूबर 1930 को निर्णय आया कि सरफरोशी की तमन्ना पूरी हो गयी है तथा भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु को फाँसी की सजा सुनायी गयी है।

3 मार्च 1931 को भगत सिंह अपने परिवार वाले से अंतिम बार मिले। भगत सिंह अब सुख दुख से उपर उठ चुके थे... उन्होने माताजी से कहा, ”बेबेजी, लाश लेने आप मत आना। कुलबीर को भेज देना। कही आप रो पडी तो लोग कहेगे कि भगत सिंह की माँ रो रही है”। और यह कह कर वे इतनी जोर से हँसे कि अधिकारी विस्मित हो देखते रह गये। कांगेस और अनेकानेक क्रांतिकारियों के प्रयासो के बाद भी इन्हें नही छुडाया जा सका और 23 मार्च 1931 को शाम 7 बजकर 33 मिनट पर फाँसी दे दी गई।

अंतिम समय तीनों एक दुसरे से गले मिले तथा इंकलाब जिन्दाबाद! साम्राज्यवाद मुर्दाबाद! का नारा लगा कर अपने फंदों को चूमा और गले मे डाल कर सहज भाव से जल्लाद से कहा “कृपा कर आप इन फंदो को ठीक कर लें।" ...........और उन्हे फाँसी दे दी गई।

फांसी के बाद कोई आन्दोलन ना भड़क जाए, इसके डर से अंग्रेजों ने पहले इनके मृत शरीर के टुकड़े किए तथा फिर इसे बोरियों में भर कर फ़िरोजपुर की ओर ले गए जहां घी के बदले किरासन तेल में ही इनको जलाया जाने लगा । गांव के लोगो ने आग देखी तो करीब आए जिससे डरकर अंग्रेज इनकी लाश के अधजले टुकड़ो को सतलुज नदी में फेंक कर भागने लगे । अंतत: ग्रामीणों नें इनके मृत शरीर के टुकड़ो को एकत्रित कर विधिवत दाह संस्कार किया । यह एक क्रांतिकारी के जीवन का अंत नहीं प्रारंभ था जिसनें आज के स्वाधीन भारत की रूप रेखा तैयार की। हम इस राष्ट्पुत्र के साथ साथ सभी क्रांतिकारियो को शत शत नमन करते है।

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18 टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही सुंदर और विस्तार से भगत सिंह जी के बारे में जानकारी दी है. देख कर और पढ़ कर मून प्रसन्न हो गया. लेखक को बधाई.

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  2. योगेश जी नें जो सवाल उठायें हैं उनके उत्तर मिलना मुश्किल है। भगत सिंह का जीवन परिचय प्रस्तुत करने का आभार।

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  3. अभिषेक जी का आभार... बहुत सी बातें पता लगीं आपके आलेख के माध्यम से...
    योगेश जी के लेख ने सोचने को मजबूर कर दिया....
    आप दोनों का बहुत बहुत आभार...

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  4. योगेश जी के आलेख में आग है। एसे सवाल हैं जो व्यवस्था को कटघरे में खडा करते हैं। सागर साहब नें बहुत रिसर्च के साथ भगत सिंह के जीवन को प्रस्तुत किया है।

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  5. impressive posters. nice articles.

    alok kataria

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  6. दोनों ही आलेख भगत सिंह की विचारधारा को अपनी ताकत से प्रस्तुत कर सकने में सक्षम हैं। दोनों प्रस्तोताओं को बधाई। यह संदेश काश जन-जन तक पहुचे।

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  7. मार्ग जो बतला रहे हैं
    समदर्शी, उसका सिर्फ
    दर्शन भर नहीं करना है
    उसको अपनाकर आगे
    है बढ़ना, नहीं बनाना
    सपना, उठना भूल जाना
    और
    रचना ने
    सागर का
    अभिषेक कर दिया
    इतने अधिक कठिन
    विषय को सहज रूप
    में ढाल दिया।

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  8. आलेख -1 पर
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    भगत सिंह का मार्ग वास्तव में सूना हो गया है। भगत की दूरंदेशिता को इंगित करते हुए आपनें सवालों की झडी लगा दी है:

    "भगत सिंह के बाद देश नें उनके विचार और उनका दिवास्वप्न भी जैसी फांसी चढा दिया गया है। साम्यवाद और समाजवाद की अलग ही परिभाषाएं पैदा हो गई हैं।"

    "जिस नौजवान ने अपनी २३ वर्ष की आयु मे किताबे और आलेख लिखकर देश के सामने एक नई शासन प्रणाली रखने की सोच रखी थी, जो देश से अंग्रेजों को भगाने को आजादी की लडाई नहीं मानता था बल्कि शासन प्रणाली मे आमूलचूल परिवर्तन की बात कहता था"

    "जिस उम्र में आज का युवक प्यार और फूहडता के पाठ पढता है उस उम्र मे वह नौजवान देश के लिये नीतियाँ तलाश रहा था।"

    "देश को आज एक नही बल्कि असंख्य भगत सिंह की जरूरत है..."

    बेहतरीन प्रस्तुति। यदि यह सोच प्रसारित हुई तो भगत सिंह का मार्ग सूना नहीं रहेगा। यह सोच बदले काश कि भगत सिंह उनके नहीं पडोसी के घर में हो।

    आलेख-2 पर
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    अभिषेक आपने अच्छी रिसर्च कर के यह सामग्री प्रस्तुत की है। भगत सिंह एसा व्यक्तित्व थे कि उनके विष्य में लिखना सूरज को दीपक दिखाना ही है। आपने इस चुनौती को बखूबी उठाया है।

    लेख की सारगर्भितता के लिये आप बधाई के पात्र हैं। आपने आलेख की ये पंक्तिया बहुत प्रभावी हैं

    " यह एक क्रांतिकारी के जीवन का अंत नहीं प्रारंभ था जिसनें आज के स्वाधीन भारत की रूप रेखा तैयार की। हम इस राष्ट्पुत्र के साथ साथ सभी क्रांतिकारियो को शत शत नमन करते है।"

    *** राजीव रंजन प्रसाद

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  9. राष्ट्पुत्र के साथ साथ सभी क्रांतिकारियो को शत शत नमन ...

    सुंदर-आलेख..

    अभिषेक जी, योगेश जी का
    आभार...

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  10. भगत सिंह पर विस्तृत लेख पढ़ कर एक शुखद अहसास हुआ. हम जो आज खुली हवा में साँस ले रहे हैं वो सब उन्ही क्रांतिकारियों की देन है जिन्होंने हँसते हँसते फांसी के फंदे चूम लिए. हम और कुछ नही तो कम से कम उन्हें याद करके उनका आभार तो प्रकट कर ही सकते हैं और इस स्वतंत्रता को जीवत रख सकते हैं.

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  11. yogesh ji k aalekh mein ek vyatha bhi hai aur naraazgi bhi.. jo ki kaafi taarkik hai.. jo haal humne gaandhi ka kiya wahee sardar bhagat ka bhi.. unhein ek "prop" (maaf kijiye is se sateek shabd nahi mila) bana kar rakh diya.. ki aazaadi k deewano par paath padhana ho geet likhna ho to in logo ka naam le liya jaaye.. ye zaroori nahi ki hum un ki har baat ka anusaran karein hi sahee par is vishay mein chintan aur paricharchaa jo honi chahiye wo nahi hoti..
    fir bhi main samajhta hu ki unhein yad rakha gaya hai wo kam nahi hai.. rahee chintan aur soch ki baat to wo hum sab aage badhaengay..
    Abhishek bhai ne achee research ki hai.. un ka shukraguzaar hu..
    shaheedo ki chitao par lagengay har baras mele,
    watan par mitne walo ka yahee baaki nishaa hoga..
    bas baat ye hai ki mele laga kar shaheedo ko bhoola na jaaye..

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  12. एक अच्छी पोस्ट भगत सिंह पर। वरना कौन याद करता है ऐसे लोगो को, इस चमकती भागती दुनिया में।

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  13. योगेश जी! आपकी बात सोलह आने सच है. आज हम सिर्फ खुद ही भगत सिंह के मार्ग से विमुख नहीं हुये हैं वरन यह भी चाहते हैं कि हमारे घर-परिवार से कोई उस मार्ग की ओर गलती से भी न चला जाये; और फिर दुआ करते भगत सिंह के पुनरागमन की. कोई बच्चा यदि किसी गलत बात का विरोध करता है तो माँ-बाप का एक सामान्य कथन होता है कि ’तुम्हें इस सबसे क्या मतलब?’ काश ये सोच बदल सके!
    अभिषेक जी! आपने बहुत मेहनत से भगत सिंह जी के जीवन और उनके दर्शन से सम्बन्धित तथ्य जुटाये हैं. इस जानकारीपूर्ण लेख के लिये आभार!

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  14. योगेश जी! आपकी बातें तार्किक और एकदम सही है.
    अभिषेक जी! अमूल्य जानकारी जुटाई है आपने.
    दोनों मित्रों का हार्दिक आभार!

    जवाब देंहटाएं
  15. योगेश जी! आपकी लेखनी का आक्रोश तर्कसंगत एवं सही है। एक क्रांतिकारी , एक दूरदर्शी जिसने देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान स्वेच्छापूर्वक दिया , उसे आज की पीढि अमूमन भूल हीं चुकी है। यह उस महान आत्मा का अपमान नहीं वरन अपने वज़ूद का अपमान है। काश हम भारतवासी इस बात को समझ सकें।

    अभिषेक जी! आपका आलेख पढकर भगत सिंह के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला, जो इतिहास के पन्नों में कहीं खो-सा गया है।

    आप दोनों बधाई के पात्र हैं।

    जवाब देंहटाएं
  16. भगत सिंह जैसा प्रेरक व्यक्तित्व पूरे इतिहास में खोजने से नहीं मिलता। उनकी स्मृति मन को ओज और उत्साह से भर देती है।

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  17. Very well written. यह लेख दिल को छू गया विस्तृत जांनकारी प्राप्त हुइ बहुत समय के बाद भगत सिंघ जी के बारे मै पढकर अछा लगा

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  18. very impressive article
    please do continue such articles
    thank you

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