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दिल्‍ली बम दिवस बनाम हिन्‍दी दिवस [व्यंग्य - हिन्दी दिवस विशेष] अविनाश वाचस्पति


हिन्दी वाले जिस दिन का इंतजार साल भर करते हैं। लो वो भी आ गया। पर उसके आने से चंद घंटे पहले राजधानी में घटित बम कांड दहला गया। बम कांड की तो सदैव भर्त्‍सना ही की जा सकती है और की जा रही है पर इससे निपटने के लिए या यूं कहें कि बचने के लिए क्‍या किया जा सकता है। जैसे हम हिन्‍दी दिवस मनाने के लिए अभिशप्‍त हैं उसी तरह दिल्‍ली सीरियल बम ब्‍लास्‍ट की निंदा भी करते हैं। पर जैसे हिन्‍दी दिवस मना मना कर आज तक कुछ हासिल नहीं हुआ है, उसी तरह आतंकवादियों की कायराना करतूतों की निंदा करने से भी कुछ हासिल नहीं होने वाला है। इस घृणित वृत्ति को बदलना बहुत बड़ी जरूरत है और उससे भी बड़ा सच है कि यह बदली नहीं जा सकती। कल दिल्‍ली बम दिवस बना और आज एक और हिन्दी दिवस मना रहे हैं। पर रविवार की छुट्टी के दिन हिन्‍दी दिवस सरकारी तौर पर भी नहीं मनाया जा सकता। अब सिर्फ हिन्‍दी दिवस मनाने के लिए सरकारी कर्मचारी रविवार के दिन तो आफिस आकर हिन्‍दी दिवस मनाने से रहे।

गए गुजरे सालों पर नजर डालते हैं तो बीत गए कल की तुलना में अपने आज को बेहतर पाते हैं और भविष्य को डायमंड जड़ित देखते हैं। बीते कल में हिन्दी की खूब दुर्गति हुई है। इधर बम विस्‍फोटों ने लगातार इंसानों की दुर्गति की है। राष्‍ट्रीय संपत्ति की भरपूर क्षति की है। इससे मानवता पीडि़त हुई है। उसी कल में यह सरकारी कामकाज की राजभाषा भी बनी और राष्ट्रभाषा बनने की ओर तेजी से अग्रसर है। मुकाम बस हासिल होने ही वाला है। बीते कल में ही इसे हिंग्लिश बनने पर खूब आलोचना झेलनी पड़ी है। पर हिन्दी में अँग्रेज़ी के शब्द ले लेकर ही हिन्दी वालों ने अँग्रेज़ी की जड़ें काट डाली हैं। उसकी शब्दों की सेफ भी सुरक्षित नहीं रही है। उसमें भी हिन्दी ने सेंध लगा डाली है।अँग्रेज़ी के शब्द भंडार रीत रहे हैं। खुश हो लो अब अँग्रेज़ी के दिन बीत रहे हैं। जब अँग्रेज़ी माल हिन्दी में अवेलेबल है तो अँग्रेज़ी क्यों लाईक की जाएगी ? बम धमाकों पर बस रोक लगने ही वाली है। रोक तो लगी ही हुई है, साल भर में अगर 12 - 15 धमाके हो भी गए तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा। औसत कोई बहुत ज्‍यादा तो नहीं बनता। पर न जाने क्‍यों, जो इसमें बच जाते हैं वे ही खूब हल्‍ला मचाते हैं। जैसे जो हिन्‍दी का प्रयोग करते हैं, वे ही हिन्‍दी दिवस मनाते हैं।

ई मेल पर अब तो खैर हिन्दी आ गई हैं जब नहीं आई थी तब भी हिन्दी के दीवाने हिन्दी में ई मेल भेजते रहे हैं। हिन्दी के शब्दों को रोमन में लिखकर जो जुगाड़ फिट किया वो हिट रहा है। मजबूर होकर हिन्दी के आगे अँग्रेज़ी ने घुटने टेक दिए हैं। ई मेल पर और नेट पर भी अब हिन्दी अपनी प्रखरता से शोभायमान हो रही है। साहित्‍य शिल्‍पी एक नया सोपान, एक नया हिन्‍दी स्‍वर्ण कलश है। जिसे हम सबने अपने प्रयत्‍नों से हिन्‍दी प्रेमियों के दिलों में रचा बसा देना है। सर्च इंजन भी हिंदी में, ब्लॉग हिन्दी में, विविध प्रकार के फोंट सब कुछ सर्वत्र हिन्दी में उपलब्ध है। हिन्दी अब सहज और सरल हो गई है। टीवी पर हिन्दी के चैनलों की धूम है। हिन्दी में वो सब माल ताजा मिल रहा है जिसके लिए अँग्रेज़ी पर निर्भर रहना पड़ रहा था, अब एकदम चकाचक ताजा रसभरा आपकी अपनी भाषा में मौजूद है। इसी की तर्ज पर बमों में भी रोज नित नये हाई टेक प्रयोग हो रहे हैं। चाहे इससे मानवता कितने ही गहरे पतन के गर्त में जा रही है। पर आतंकवादियों को न कभी आई है, न आनी है और न शर्म आ रही है। उनके शर्म न आने पर हम बहुत शर्मिन्‍दा हैं।

मल्लिका और बिपाशा ने फिल्मों में हिन्दी के झण्डे फहरा दिए हैं। किसकी मजाल है उन्हें लहराने से रोक सके। उनकी लहर का जादू सिर चढ़कर अब हिन्दी में बोल रहा है। वो जो बम फोड़ रहा है, विस्‍फोट कर रहा है, वो सेक्‍स बम हैं। जो फूटते हैं तो तब भी कुछ को तो राहत मिलती है। क्‍या हुआ अगर कुछ घंटों की नींद उड़ती है। कुछ ही पल की देर है अब अँग्रेज़ी वाले घिघियाएंगे। कुछ ही बरस बाकी हैं जबअँग्रेज़ी प्रेमी मिलकर अँग्रेज़ी दिवस मनाया करेंगे। अँग्रेज़ी सप्ताह, पखवाड़े, माह मनाकर खुशी पाएंगे और अँग्रेज़ी साल मनाने के लिए तरस जाएंगे। अँग्रेज़ी के लिए पुरस्कार प्रतियोगिताएं रखी जाएंगी। अँग्रेज़ी के बुरे दिन बस आ गए समझिए। पर विचार अब यह करना है कि आतंकवादियों के बुरे दिन कब आयेंगे, जब वे इस सृष्टि से पूरी तरह अपनी समूची बुराईयों के साथ मिट जायेंगे या मिटा दिये जायेंगे।

अँग्रेज़ी के चैनल और अखबार इतिहास की बकवास बनकर विस्मृतियों में खो जाएंगे। रद्दी बेचने के लालच में भी अंग्रेजी के अखबार खरीदने वालों का टोटा पड़ जाएगा। चाहे कितनी ही बार कंट्रोल के साथ एफ दबाकर ढूंढते रहो, कुछ हाथ नहीं लगेगा। हाथ तो कंप्यूटर कमांडो का विकल्प भी नहीं लगेगा। फिर कंप्यूटर पर काम करने के लिए हिन्दी का ज्ञान अपेक्षित होगा। बिना हिन्दी के कंप्यूटर का पत्ता (बटन) भी नहीं हिलेगा। हिंदी के ललाट पर सफलता की बिंदी चमक रही होगी और अँग्रेज़ी चिंदी चिंदी होकर अपनी फटेहाली पर बिसूर रही होगी। सबसे हसीन पल होंगे वे, जब आतंकवादी और आतंकवादी, बम और विस्‍फोट जैसे शब्‍द, शब्‍दकोशों से निकल जायेंगे, उसी तरह जिस तरह आतंकवादी मिटा दिये जायेंगे।

हिन्दी धूम वन, टू और थ्री होगी। अँग्रेज़ी को कोई नहीं पूछेगा। इंग्लिश डे पर अँग्रेज़ी वाला कहता मिलेगा ईट एंड अर्न डे आ गया है। फिर हिंदी में बोलेगा खूब खा लो और कमा लो। फिर साल भर बाद ऐसा मौका आएगा। अँग्रेज़ीदां के अँग्रेज़ी बोलने पर खूब थुक्का फजीहत हुआ करेगी। उन्हें नसीहतें मिला करेंगी कि सावधानी रखो। सावधानी हटी दुर्घटना घटी। स्कूलों में अँग्रेज़ी बोलने पर चालान हुआ करेंगे। पर खुश न हों ट्रैफिक पुलिस वाले, उनको जुर्माना करने के अधिकार नहीं मिलेंगे। हिन्दी की अपनी पुलिस होगी जो स्थिति पर निगाह रखेगी और जुर्माना करेगी और अपनी दयालुता दिखाते हुए अपराधी को सबसिडी के तौर पर वापिस लौटा देगी। हिन्दी वाले अँग्रेज़ी वालों की तरह कठोर दिल नहीं हुआ करते हैं। रहमदिल हैं सिर्फ रहम किया करते हैं। पकड़ते हैं अँग्रेज़ी बोलते हुए, पर हिंदी सिखाकर छोड़ दिया करते है।

हिंदी यूनेस्को की भाषा बन चुकी है और जिस दिन संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनेगी। उसी दिन विश्व पर हिन्दी का परचम फहरा उठेगा जो किसी के रोके न रुकेगा। विश्वभर के हिंदीप्रेमी महसूस करने लगे हैं कि उनकी एक सशक्त विश्व हिंदी फेमिली है जो सभी भाषाओं से घुली-मिली है और अँग्रेज़ी लगती लिजलिज़ी है। तो आओ करें प्रण कि अंग्रेजी और आतंकवादियों का करेंगे सर्वनाश। तभी तो होगा हमारी अपनी हिन्‍दी का सहज सरल विकास।

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- लेखक परिचय [अविनाश वाचस्पति]
दिल्ली विश्वविद्यालय से कला स्नातक। भारतीय जन संचार संस्थान से 'संचार परिचय', तथा हिंदी पत्रकारिता पाठ्यक्रम सभी साहित्यिक विधाओं में लेखन, परंतु व्यंग्य, कविता एवं फ़िल्म पत्रकारिता प्रमुख उपलब्धियाँ सैंकड़ों पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। जिनमें नई दिल्ली से प्रकाशित दैनिक नवभारत टाइम्स, हिंदुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, जनसत्ता अनेक चर्चित काव्य संकलनों में कविताएँ संकलित। हरियाणवी फ़ीचर फ़िल्मों 'गुलाबो', 'छोटी साली' और 'ज़र, जोरू और ज़मीन' में प्रचार और जन-संपर्क तथा नेत्रदान पर बनी हिंदी टेली फ़िल्म 'ज्योति संकल्प' में सहायक निर्देशक। राष्ट्रभाषा नव-साहित्यकार परिषद और हरियाणवी फ़िल्म विकास परिषद के संस्थापकों में से एक। सामयिक साहित्यकार संगठन, दिल्ली तथा साहित्य कला भारती, दिल्ली में उपाध्यक्ष। केंद्रीय सचिवालय हिंदी परिषद के शाखा मंत्री रहे, वर्तमान में आजीवन सदस्य। सर्वोदय कन्या विद्यालय नई दिल्ली में अभिभावक शिक्षक संघ में उप-प्रधान। 'साहित्यालंकार' , 'साहित्य दीप' उपाधियों और राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्त्राब्दी सम्मान' से सम्मानित। काव्य संकलन 'तेताला' तथा 'नवें दशक के प्रगतिशील कवि कविता संकलन का संपादन। 'हिंदी हीरक' व 'झकाझक देहलवी' उपनामों से भी लिखते-छपते रहे हैं। संप्रति- फ़िल्म समारोह निदेशालय, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, नई दिल्ली में कार्यरत्।

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16 टिप्पणियाँ

  1. सार्थक प्रयास से ही हिंदी आगे बढेगी। हिंदी में एक नई नेट पत्रिका आई तो खुशी हुई। ढेरों शुभकामनाएं।

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  2. अविनाश जी..


    कटाक्ष जबरदस्त है:

    "जैसे हम हिन्‍दी दिवस मनाने के लिए अभिशप्‍त हैं उसी तरह दिल्‍ली सीरियल बम ब्‍लास्‍ट की निंदा भी करते हैं"

    "अब सिर्फ हिन्‍दी दिवस मनाने के लिए सरकारी कर्मचारी रविवार के दिन तो आफिस आकर हिन्‍दी दिवस मनाने से रहे।"

    और उपसंहार प्रभावी:


    "हिंदी यूनेस्को की भाषा बन चुकी है और जिस दिन संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनेगी। उसी दिन विश्व पर हिन्दी का परचम फहरा उठेगा जो किसी के रोके न रुकेगा। विश्वभर के हिंदीप्रेमी महसूस करने लगे हैं कि उनकी एक सशक्त विश्व हिंदी फेमिली है जो सभी भाषाओं से घुली-मिली है और अँग्रेज़ी लगती लिजलिज़ी है। तो आओ करें प्रण कि अंग्रेजी और आतंकवादियों का करेंगे सर्वनाश। तभी तो होगा हमारी अपनी हिन्‍दी का सहज सरल विकास।"


    ***राजीव रंजन प्रसाद

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  3. दो विषयों को आपने खूबसूरती से जोडा है।

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  4. अविनाश जी
    बेहतरीन समसामयिक वयंग्य लिखा है आपने. अच्छा है जो बम हिन्दी और अंग्रेजी में भेद नही करते वरना और आफत हो जाती. इश्वर से प्रार्थना है की इन बम के सोदगरों को मानवता की भाषा आ जाए.

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  5. हिंदी में एक बेहतरीन नेट पत्रिका !शुभकामनाएं।

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  6. मंगल कामनाएँ इस
    श्रेष्ठ उद्यम के लिए.
    ===============
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

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  7. हिन्दी हैँ हम...वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा...


    हिन्दी दिवस के शुभ एवं पावन अवसर पर 'साहित्य शिल्पी' को हम नए खिलाड़ियों की तरफ से बहुत-बहुत शुभकामनाएँ....और बड़े एवं परिपक्व लिक्खाड़ों की तरफ से 'दूधों नहाए...और पूतों फले' का आशीर्वाद

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  8. ek saamayik lekh..aap ka hindi k prati lagaav vastav mein prashansniya hai..
    par is aalekh mein hindi ki vaqaalat se zyada angrezi ki khilaafat hai.. yahaan tak ki ap ne angrezi bolne walo ko aatankwadiyo k samkaksh khada kar diya..."अंग्रेजी और आतंकवादियों का करेंगे सर्वनाश। " jo bilkul bhi nahi jama.. ye ek ajeeb samasya hai ki humein bharat mein hindi diwas manana padh raha hai.. par jis tarah hindi humaree maatrabhasha hai angrezi kisi aur ki.. use is tarah bura bhala nahi kaha ja sakta.. hindi pargarv karna humara adhikar hai par angrezi se nafrat karna humara kartavya nahi..."कुछ ही पल की देर है अब अँग्रेज़ी वाले घिघियाएंगे। "
    "अँग्रेज़ी के बुरे दिन बस आ गए समझिए। " bahut nakaraatmak vakya hain jo ki humaare saanskratik moolyo k vipreet hain..
    aasha karta hu ki samalochna mein koi truti hui ho to aap chota bhai samajh kar maaf kar dengay...

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  9. अविनाश जी!
    दिव्यांशु जी की बात से मैं भी सहमत हूँ कि हमें हिंदी का सम्मान तो करना ही चाहिये पर अंग्रेज़ी या किसी अन्य भाषा का अपमान करने का भी कोई औचित्य नहीं है. हाँ, आतंकी घटनाओं की जितनी भी निंदा की जाये कम है. परंतु धर्म के नाम पर यह सब करने वालों को जब धर्म ही यह सब करने से नहीं रोक पाता तो ऐसे शब्दों का उन पर क्या असर पड़ सकता है.

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  10. बहुत ही खुबसुरत व्यंग्य...

    हमे हिन्दी के लिये सार्थक प्रयास जारी रखने होगे

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  11. नई नेट पत्रिका के लिए...
    मंगल कामनाएँ |


    अविनाश जी !
    अच्छा वयंग्य लिखा है आपने...

    बधाई ||

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  12. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  13. दिव्‍यांशु जी, आपने अच्‍छी समालोचना की है। कोशिश करूंगा कि भविष्‍य में इस दोष से बच सकूं। रोमन में टिप्‍पणी होने के कारण , आज ही यह टिप्‍पणी पढ़ी है, जब अजय यादव जी की टिप्‍पणी पढ़ रहा था।

    आप टिप्‍पणियों में हिन्‍दी में क्‍यों नहीं लिखते हैं, हो सकता है अब लिखने लगे हों, अगर नहीं तो इस लिंक पर क्लिक कीजिए और आज से हिन्‍दी में अपनी अभिव्‍यक्ति को स्‍वर प्रदान कीजिए।
    हिन्दी टूल किट : आई एम ई को इंस्टाल करें एवं अपने कम्प्यूटर को हिन्दी सक्षम बनायें

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