गांधी जयंती का मौसम है। मौसम के अनुकूल कई कार्यक्रम आयोजित किए जाने की परंपरा है। जिस प्रकार हिन्दी दिवस पर अनेक कार्यक्रम संपन्न हुए, वे नेक थे या नहीं, इस पर अभी विमर्श बाकी है। गांधी जी की प्रासंगिकता फिर चर्चा में है। असर फिल्मों का है। फिल्म मुन्नाभाई लगे रहो है। दिलीप प्रभावलकर को गांधी जी के प्रभावशाली अभिनय के लिए भारत सरकार से राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार महामहिम राष्ट्रपति जी के कर कमलों से प्राप्त हो चुका है। गांधी जी की साख बढ़ती जा रही है परन्तु दिल्ली बम धमाकों से हर पल प्रति पल दहलती जा रही है।
दिल्ली पुलिस को भी इस बहाने अवसर मिला है, अपनी खोई हुई साख वापिस प्राप्त करने का। उसने एड़ी चोटी का जोर लगा कर दिल्ली ही नहीं, और भी कई बम धमाकों के संभावित वादियों को या तो पकड़ लिया है, या पकड़ने की कार्रवाई में संलग्न है। कुछेक को तो दिल्ली पुलिस ने गांधी जी के पास भेज दिया है। इसी क्रम में दिल्ली पुलिस के एक कर्मनिष्ठ अधिकारी मोहन चंद शर्मा पहले से ही गांधी जी के पास पहुंच चुके हैं। पुलिस यहां पर भी अपने लिए तालियां बटोर चुकी है। गांधी जी भी प्रसन्न ही होंगे।
इसी मौके पर एक प्रश्नमंच का कार्यक्रम हमारे मोहल्ले में आयोजित किया गया। बानगी देखिए। संचालन मुझे सौंप दिया गया। मैंने गांधीगिरी की उपयोगिता पर आयोजन के आरंभ में एक संक्षिप्त वक्तव्य पेला। इस बीच प्रश्नमंच के भागीदार तैयार हो गए। भागीदारों में कोई भेद भाव नहीं किया गया क्योंकि बापूजी भेद भाव तो दूर छूत अछूत में भी अंतर नहीं चाहते थे। सभी आयु वर्ग के भागीदार चौकन्ने थे, मैंने पहला प्रश्न दागा।
बापूजी के युग में मोबाइल होता या मोबाइल युग में बापू जी होते तो क्या वे मोबाइल का प्रयोग करते? एक सीनियर सिटीजन ने बिना अनुमति लिए, क्योंकि उन्हें तो सब जगह वरीयता मिलती है, बोलना ‘शुरू कर दिया कि बापू जी मोबाइल के सदा खिलाफ होते, उन्हें मोबाइलबाजी कभी पसंद नहीं आती, पसंद तो उन्हें कोई भी कलाबाजी कभी नहीं आई, कबूतरबाजी का पता नहीं, तब उसका अस्तित्व था या नहीं, पर कबूतरों को दाना चुगाने के पक्षधर वे हमेशा रहे क्योंकि वे सत्य के पक्षधर रहे इसलिए झूठ पर आधारित मोबाइल उन्हें कभी नहीं भाता।
इतने में एक युवक का सब्र का बांध टूट गया, उसने गांधीगिरी न अपनाकर, अपना नंबर आने की प्रतीक्षा नहीं की और कहना शुरू कर दिया। उसे मैं बोलने से रोक कर, अपना क्रियाकर्म करवाने का इच्छुक नहीं था इसलिए मैंने कोई प्रतिवाद नहीं किया। इन शिक्षार्थियों के जलवों से तो आजकल के गुरू भी आतंकित हैं, इनकी सुरक्षा के लिए कानून तक में प्रावधान किए गए हैं जिससे गुरू गुड़ रह गए हैं और चेले शक्कर हो गए हैं। इन आधुनिक चेलों से पंगा कौन ले? उसने कहा कि बापू जी वीडियो क्षमतायुक्त , कैमरे वाला मोबाइल ही लाइक करते क्योंकि उसमें उनके आदर्श भी कायम रहते। ऐसे मोबाइल में झूठ बोलने पर पकड़ा जाता है। वैसे भी बापूजी से मोबाइल पर जो बात करता, वो झूठ बोलने की हिमाकत कभी न करता।
एक बच्चे ने इस विषय पर बोलने के लिए अनुमति मांगी और मिलने पर बोला कि बापू जी कैमरे वाला मोबाइल ही लेते क्योंकि उन्हें बच्चे बहुत पसंद थे। वे कहते थे बच्चे मन के सच्चे। बच्चा शायद भ्रम में था क्योंकि बच्चे नेहरू जी को खूब पसंद करते थे, करते तो गांधीजी को भी होंगे। सच तो सच के पक्ष में ही जाएगा। पर उसने एक सवाल और छोड़ दिया कि क्या बापूजी मोबाइल पर कोई गेम भी खेलते ? इस सवाल से ही बच्चे की मासूमियत झलक उठी थी।
इतने में एक महिला ने बोलना चाहा पर उसे अनुमति देना ठीक न रहता क्योंकि वे बोलना शुरू हो जातीं तो शायद चुप न होतीं। इसे भांप कर दर्षकों ने ही शोर मचाकर उन्हें उनकी राय रखने से मना कर दिया। वे खफा होकर चुप होने को मजबूर थीं। मैं मना करता, वैसे मेरा मना करना ठीक न था। मैं जब किसी और को नहीं रोक पाया तो इन्हें कैसे रोक पाता ?
एकाएक चमत्कार हुआ और मुझे सामने बापूजी दिखाई दिए, कह रहे थे मेरी भी सुनो। वैसे तो आंदोलन में मोबाइल का जितना सहयोग मिलता उतना किसी से आज तक नहीं मिला। संचार बहुत तीव्र गति से होता। आंदोलन सारे सफल होते। बशर्ते अंग्रेज सरकार नेटवर्क जाम नहीं करती या जैमर नहीं लगाती। पर यह मुझे इसलिए पसंद नहीं है क्योंकि आप होते कहीं हैं और बतलाते कहीं हैं। आप खाली होते हैं और बतलाते व्यस्त हैं। साइकिल आपके पास है नहीं, आप बतला रहे हैं गाड़ी चला रहा हूं, बाद में फोन करना।
वरिष्ठ भागीदार को तो आपको पुरस्कृत करना ही होगा। युवक को आप पुरस्कार नहीं देंगे तो वो आपका सिर्फ तिरस्कार ही नहीं करेगा, पुलिस में एफआइआर भी लिखाएगा और बच्चे तो मासूम होते हैं उनकी मासूमियत का ख्याल करते हुए उसे अवश्य पुरस्कृत किया जाए। महिला को बोलने का अवसर न देकर आपने भेद भाव किया है। यह अच्छी बात नहीं है।
गांधी जयंती को सार्थक बनाने के लिए देश भर में सभी योगदान दे रहे हैं तो इस अवसर से रचनाकार चूक जायें, यह उचित नहीं लगता है। इसी कारण से प्रति वर्ष बिना नागा सभी समाचार पत्र-पत्रिकायें, मीडिया, टी वी चैनल और तो और अब तो अंतर्जाल पत्रिकायें भी इसमें शामिल हो गई हैं और जुट गई हैं गांधी जी पर बेहतरीन सामग्री देने के प्रयास में। उनके ये सब प्रयास काबिले-तारीफ हैं।
आजकल विद्यार्थियों को इस अवसर पर वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेने का अवसर मिलता है पर देखने में आ रहा है कि उनका ज्ञान बापू जी पर निर्मित फिल्मों से ज्ञान बटोरने का अधिक हो गया है बनिस्वत जीवन में उनके आदर्शों को अपनाने के। इस सच्चाई पर मैं कुछ कहना चाहता हूं परन्तु मौका नहीं मिला और एकाएक बापू जी मुझे समझाते, चेतावनी देते अंतर्ध्यान हो गए और मैं अवाक देखता रह गया। मुझे भी अक्ल आ गई कि वास्तव में यही गांधीगिरी है। गांधीगिरी को अपनाते हुए मैंने मन में उपजे दूसरे प्रश्न को मन में ही रहने दिया कि इसे फिर गांधीजी से जुड़े किसी कार्यक्रम में पूछ कर अपनी जिज्ञासा शांत कर लूंगा।
28 टिप्पणियाँ
जबरस्त व्यंय है, गाँधी जयंति पर बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअविनाश जी की प्रस्तुतियाँ रोचक होती हैं। गाँधी जी को अपने अंदाज में आपने श्रद्धांजली दी है।
जवाब देंहटाएंअविनाश जी,
जवाब देंहटाएंव्यंग्य विधा की माँग ही होती है एक एसे दृष्टिकोण से सोचना जिस ओर आम तौर पर किसी की दृष्टि नहीं जाती। महात्मा को आपने प्रासंगिक बनाया है अपनी इस प्रस्तुति से:
"मौसम के अनुकूल कई कार्यक्रम आयोजित किए जाने की परंपरा है।"
"कुछेक को तो दिल्ली पुलिस ने गांधी जी के पास भेज दिया है।"
"एक सीनियर सिटीजन ने बिना अनुमति लिए, क्योंकि उन्हें तो सब जगह वरीयता मिलती है, बोलना ‘शुरू कर दिया कि बापू जी मोबाइल के सदा खिलाफ होते, उन्हें मोबाइलबाजी कभी पसंद नहीं आती, पसंद तो उन्हें कोई भी कलाबाजी कभी नहीं आई, कबूतरबाजी का पता नहीं, तब उसका अस्तित्व था या नहीं, पर कबूतरों को दाना चुगाने के पक्षधर वे हमेशा रहे..."
"बापू जी कैमरे वाला मोबाइल ही लेते क्योंकि उन्हें बच्चे बहुत पसंद थे। वे कहते थे बच्चे मन के सच्चे।"
"...उसने गांधीगिरी न अपनाकर, अपना नंबर आने की प्रतीक्षा नहीं की और कहना शुरू कर दिया। उसे मैं बोलने से रोक कर, अपना क्रियाकर्म करवाने का इच्छुक नहीं था इसलिए मैंने कोई प्रतिवाद नहीं किया।"
"आंदोलन सारे सफल होते। बशर्ते अंग्रेज सरकार नेटवर्क जाम नहीं करती या जैमर नहीं लगाती।"
"वरिष्ठ भागीदार को तो आपको पुरस्कृत करना ही होगा। युवक को आप पुरस्कार नहीं देंगे तो वो आपका सिर्फ तिरस्कार ही नहीं करेगा, पुलिस में एफआइआर भी लिखाएगा और बच्चे तो मासूम होते हैं उनकी मासूमियत का ख्याल करते हुए उसे अवश्य पुरस्कृत किया जाए। महिला को बोलने का अवसर न देकर आपने भेद भाव किया है। यह अच्छी बात नहीं है।"
सारथक व सामयिक प्रस्तुति के लिये बधाई।
***राजीव रंजन प्रसाद
nice, regards.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
अविनाश जी के व्यंग्य की अलग ही बात है। साधारण शब्दों में बडी बात कह देते हैं। गाँधी-शास्त्री जयंति तथा ईद की बधाई...
जवाब देंहटाएंव्यंग्य लेख का अंत आपने बहुत अच्छा किया है, इस उपसंहार में संदेश स्पष्टता से बाहर आया है। आपके व्यंग्य वैसे भी धारदार होते हैं...गाँधी जयंति तथा ईद की शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब अविनाश जी बापू जी के जन्मदिन पर भी छा गए। क्या जबरद्स्त व्यंग्य किया है। बड़ी बड़ी बाते बड़े प्यार से कह दी। वाह वाह।
जवाब देंहटाएंअविनाश जी आप की कल्पनाशीलता की बात ही क्या ? जितना कुछ कहा जाये कम है ,बहुत ही अच्छा व्यंग लगा पढंकर।काश गांधी जी होते तो फूले नहीं समाते। और सबसे पहले उनका एसएमएस आपको ही आता । ईद की मुबारकबाद अविनाश जी।
जवाब देंहटाएंआप व्यंग बहुत अच्छे लिखते हैं ..सही में गांधी जी पढ़ते तो खुश हो जाते बहुत अच्छे से याद किया आपने उनको आज ..
जवाब देंहटाएंaapne vayang vayang main gandhi ji ki manovaytha bhi kahe di aur aaj ke samaaz ki durdasha bhi
जवाब देंहटाएंvayang shayad aatam jagane ka zariya hai
aapke vayang ko padh kar kuch sudhaar avashay hoga soch main umeed hai
aap bhaut mahaan kaam kar rahe hain aadarneey avinash ji
अच्छा व्यंग है | लेकिन आज के एस नाजुक समय में एक और गांधी की जरूरत है | जो इस देश को एक बार फ़िर सही रास्ता दिखा सके |
जवाब देंहटाएंअविनाश भाई,अंत में कुछ प्रश्नों को क्यूं दबा दिया आपने। अच्छी प्रस्तुति के लिए साधुवाद। मैं भी सोचता हूं कि यदि बापू के पास कैमरा वाला मोबाइल होता तो वे क्या करते................
जवाब देंहटाएंसवालों से घिरे.....छोड़ता हूं आपको।
सटीक व्यंग्य है !एक दम सटीक
जवाब देंहटाएंखुब कहा चाचा जी... वैसे गांधी जी ने कोई मत नही चलाया था, उन्होने से देखा समझा वो किया, तो वास्तव मे आदर्श ये बना कि वक्त के साथ चलो, ना आगे न पिछे :)
जवाब देंहटाएंब्यंग्य ज़रूरत से ज्यादा लंबा हो गया है. कई जगह तो लगता ही नहीं कि व्यंग्य है या सपाटबयानी. मेरे ख्याल से व्यंग्य का बेस यही होता कि गांधीजी मोबाइल के बारे में क्या कहते. उसमें झूठ की जो संभावना है, उसके बारे में चर्चा होती.
जवाब देंहटाएंसटीक लेखन।
जवाब देंहटाएंअविनाश जी,
जवाब देंहटाएंलेख तो अच्छा लिखा है. आपकी कल्पना शक्ति काफी दूर तक जाती है किंतु मुझे लगता है ऐसे राष्ट्रिय स्वाभिमान के अवसरों पर हंसने के लिए कुछ दुसरे विषय चुनने चाहिए.
व्यंग्यकार अपनी बात रखने में सफल है। दिवस के अनुरुप रचना है। जैसे कोई चित्रकार ब्रश ही उठायेगा कार्टूनिष्ट कार्टून ही बनायेगा वैसे ही व्यंग्यकार व्यंग्य ही प्रस्तुत करेगा। अविनाश जी ने राष्ट्रीय संदर्भों को सपाट लेखों के मुकाबले कहीं सशक्त तौर पर उठाया है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पोस्ट।
जवाब देंहटाएंगाँधी जयंती के अवसर पर तीखा एवं सटीक व्यंग्य.....
जवाब देंहटाएंजबरस्त व्यंग्य!
जवाब देंहटाएंगाँधी जयंति की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
अविनाश जी
जवाब देंहटाएंसामयिक रोचक प्रस्तुति ....
गाँधी जयंति की हार्दिक बधाई ..
उच्च कोटि का व्यंग । गांधी जयंती, ईद और नवरात्रि की शुभ कामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंअविनाश जी,
जवाब देंहटाएंसुरुचिपूर्ण हास्य लेख के लिये आभार. धीर गम्भीर विष्यों को भी एक अलग नजर से देखना और उन पर हास्य लिखना बहुत कठिन कार्य है जिसे आपने बखूबी निभाया है.
bahut achcha laga
जवाब देंहटाएंadbhut lekhan ko naman
जवाब देंहटाएंachcha likha hai
जवाब देंहटाएंकाफी हट्कर विशय का चुनाव किया हे आपने. अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.