छोटे कद सधारण से दिखने तथा असधारण व्यक्तित्व के गुदड़ी के लाल नाम से नवाज़े जाने वाले भारत के दूसरे प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर सन 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय के रामनगर के साधारण कायस्थ परिवार में हुआ था। डेढ़ साल की उम्र मे इनके पिताजी की मृत्यु (1906 ई.) होने के पश्चात माताजी इन्हे तथा इनकी दो बहनो को लेकर इनके नानाजी के घर चली गयी। इनकी प्राथमिक शिक्षा घर पर ही हुई। वे इतने मेधावी थे कि दस साल की उम्र मे ही छठवीं कक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। मुगलसराय मे अच्छे हाईस्कूल न होने के कारण वे बनारस चले गये और हरिश्चंद्र हाईस्कूल मे पढ़्ने लगे। उनके भीतर का आत्म सम्मान इतना था कि एक बार वे अपने साथियों के साथ घूमने गये, लौटते समय जब अपनी जेब मे हाथ डाला तो जेब खाली देख चौक गये। सभी दोस्तो के नाव मे बैठ जाने के बाद अपनी मजबूरी को सामने नही लाते हुये यह कह दिया कि तुमलोग घर जाओ मै अभी मेला देखकर आऊँगा। सभी साथीयों के उस पार पहुँच जाने के बाद शास्त्री जी ने तुंरत अपने वस्त्र उतारे और सिर मे बाँधकर नदी मे कूद गये और तैरने लगे, नदीं मे बाढ आयी थी और नदी पार करना खतरनाक था, फिर भी वे तैरते हुए किनारे पहुँच गये।
बनारस मे भी कोई स्थिति अच्छी न होने के बावजूद शास्त्री जी ने अपनी पढाई जारी रखी। स्कूली जीवन मे ही राष्ट्रभक्तो, देशभक्तों और शहीदो के बारे मे पढते हुए इन्होंने सवतंत्रता संग्राम के विषय मे विस्तार से जाना। इन्ही दिनो जलियाँवाला बाग घटना के बाद, छात्र आन्दोलन ने भी गति पकड़ ली थी और शास्त्री जी इसके एक भाग बन गये । महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन चला तो ये उस आंदोलन मे मुस्तैदी से कूद पडे। । फलत: 1921 ने इन्हे जेल हो गई, कुछ समय पश्चात उन्हे तथा उनके कुछ साथियो को इस प्रकार की हरकत फिर नही करने की बात कहकर छोड दिया गया। शास्त्री जी वस्तुत: काशी विधापीठ से शास्त्री की परीक्षा उतीर्ण करने के कारण शास्त्री कहलाये। सन 1925 ई. मे लालबहादुर ने काशी विधापीठ ने हिन्दी, अंग्रेजी तथा दर्शन शास्त्र को लेकर उच्च शिक्षा ग्रहण कर स्नातक (शाष्त्री) की पढाई की। बाद में वे “सर्वेंट्स ऑफ़ द पीपुल सोसाइटी” मे काँग्रेस पार्टी की ओर से कुछ वेतन पर काम करने लगे और मेरठ मे रहने लगे।
16 मई 1928 को लाल बहादुर शास्त्री जी का विवाह ललिता देवी के साथ हो गया। 1928 मे शास्त्री जी इलाहाबाद म्यूनिसपल बोर्ड के सदस्य चुने गये तथा चार वर्ष इलाहाबाद इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट के सदस्य भी रहे। राजर्षि पुरूषोतम दास टंडन इनके राजनीतिक गुरू रहे। शास्त्री जी अब पूरी तरह देश की राजनीति मे मँज चुके थे। उस समय “सर्वेंट्स ऑफ़ द पीपुल सोसाइटी” के अध्यक्ष टंडन व पंडित नेहरू दोनो थे और दोनो के विचार-वैभिन्य को समाप्त करने का दायित्व शास्त्री जी ने ले लिया था; इस तरह इनका नाम एक समझौताकार के रूप मे प्रसिद्ध हो गया। 1929 के लाहौर अधिवेशन के बाद जब अंग्रेजो के साथ के गोलमेज सम्मेलन विफल होने पर शोलापुर मे तोड फोड शुरू हुई तो अंग्रेजी शासन ने निषेधाज्ञा लागू कर दी, शास्त्री जी ने वहाँ जाने का निर्णय लिया। शोलापुर से वापस आने पर शासन ने 1930 में उन्हें जेल मे डाल दिया परंतु कुछ दिनो बाद वे छोड दिये गये। 1932 मे पुन: पकड लिये गये। इस तरह अगले 12 वर्षो मे 7 बार जेल गये और अपने जीवन के कुल 9 साल उन्होंने जेल मे काटे। 1942 के लंदन के गोलमेज सम्मेलन विफल होने के बाद महात्मा गांधी ने भारत छोडो का नारा दिया जिससे सभी तरफ आंदोलन फैल गया। दमनचक्र चलने से आंदोलन हिंसात्मक हो गया और अंग्रेज मौके का फायदा उठाते हुए कांग्रेस को गैर कानूनी घोषित कर उनके कार्यकर्ताओ को जेल मे डालने लगे। इस समय शास्त्री जी को गिरफ्तार कर नैनी जेल मे रखा गया। वहा उनका स्वास्थ बुरी तरह खराब हो गया। सन 1935 मे ब्रिटिश संसद द्वारा एक नये भारतीय शासन अधिनियम पारित कर इसके सुधारों के अनुसार 1937 मे काग्रेस ने प्रांतीय विधान सभाओ के लिये चुनाव लडा और लगभग सभी विधानसभाओ मे भारी बहुमत प्राप्त किया। लाल बहादुर शाष्त्री ने भी चुनाव मे विजयी होकर उत्तर प्रदेश विधान सभा की सदस्यता प्राप्त कर ली।
1947 मे भारतीय स्वतंत्रता प्राप्ति के समय पंडित गोविन्द वल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उन्होने कुछ महीनो पश्चात ही शास्त्री जी को अपने मंत्रीपरिषद मे पुलिस व यातायात मंत्री के रूप मे शामिल कर लिया। मंत्री बनने के बावजूद उनके जीवन मे उनकी पुरानी सादगी बनी रही। उनकी पोशाक मे कोई परिवर्तन नही हुआ। उनके काल मे पुलिस का रूप परिवर्तन तथा सड़्क यातायात का विकास हुआ। सरकार ने इनके परामर्श पर सड़क यातायात का राष्ट्रीयकरण किया। गाँव तक बस सेवा का विस्तार हुआ। 1950 मे टंडन जी के त्यागपत्र देने के बाद शास्त्री जी को कांग्रेस का महामंत्री बनाया गया। पुन: 1951 मे पंडित नेहरू जी ने कांग्रेस अध्यक्ष की शक्तियो का प्रयोग करते हुए उन्हे पार्टी-महासचिव का पद सौपा और इस तरह शाष्त्री जी लखनऊ से दिल्ली आ गये। 1952 के चुनाव के लिये शाष्त्री जी ने दिन रात एक कर कांग्रेस को जिताने का दायित्व अच्छी तरह निभाया और उन्ही के प्रयासो से 1952 के आम चुनाव मे कांग्रेस भारी बहुमत से जीती। शाष्त्री जी राज्य सभा के लिये चुन लिये गये और रेल व यातायात के केन्द्रीय मंत्री बने। इसी समय सन 1955 मे दक्षिण भारत के ‘अरियाल ‘ के समीप की रेल दुर्घटना जिसमे 150 लोग हताहत हुये थे का दायित्व अपने ऊपर ले त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद शास्त्री जी ने नेहरू जी के साथ पार्टी के संगठनात्मक कार्यों मे हाथ बँटाते हुए 1957 के चुनाव की तैयारी शुरू कर दी। नेहरू जी ने इस बार इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से चुनाव लडने के लिये शाष्त्री जी को बाध्य किया और वे भारी बहुमत से विजयी हुए और उन्हे पुन: यातायात विभाग दिया गया और साथ ही साथ उद्योग और वाणिज्य विभागो का भी मंत्री बना दिया गया।
1961 मे उन्हे गृह मंत्री बनाया गया। चीन के धोखे व विश्वासघात तथा उसके हाथो भारत की पराजय के बाद नेहरू जी दिल के भयानक दौरे के शिकार हो गये तो साथ देने के लिये शास्त्री जी को बिना विभाग के मंत्री के रूप मे मंत्रिमंडल मे शामिल कर लिया गया और वे नेहरू जी के कार्यो मे तब तक सहयोग करते रहे जब तक 27 मई 1964 को नेहरू जी का देहांत न हो गया। 9 जून 1964 को शास्त्री जी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण की। शास्त्री जी ने सबको साथ ले कर चलने की नीति अपनाई और नेहरू की पुत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी को सूचना व प्रसारण मंत्री बनाया। वे अपने आरंभिक काल मे कोई सकारात्मक प्रभाव नही छोड पाये क्योकि उन्हे एक सीधा साधा और बहुत सीमा तक एक अनिर्णय का शिकार प्रधानमंत्री माना जाता रहा जो कि किसी भी राष्ट्रीय समस्या के समाधान हेतु कोई दृढ़ कदम उठाने मे असमर्थ था। इनके काल् मे पंजाबी सूबे की मांग को लेकर चल रहा सिख आन्दोलन और बढ़ा। राजभाषा के रूप मे हिन्दी बनाम अंग्रेजी की समस्या बुरी तरह उभरी। 1965 मे देश के कई भाग मे भयानक सूखा भी पडा । उस समय अन्न के भंडारण पर ध्यान नही देने के कारण यह स्थिति आई। उसी समय भारत को संकटो मे घिरा देख पाकिस्तान ने अचानक गुजरात के कच्छ में आक्रमण शुरू कर दिये। इस पर भारत की जनता इस हमले का मुकाबला करने के लिये तैयारिया करने लगी किंतु शास्त्री जी के प्रयासो से कुछ दिनो मे ही दोनो देशो के बीच समझौता हो गया और समस्याओ के हल के लिये एक सीमा आयोग बनाने का निर्णय किया गया। सितम्बर 1965 मे अचानक पाकिस्तानी फौज ने कश्मीर के छम्ब इलाके में आक्रमण कर दिया। पाकिस्तानी सेना भारतीय इलाको मे तेजी से बढती जा रही थी सो इस समय शास्त्री जी ने भारतीय सेना को मुँहतोड़ जबाब देने का आदेश दिया। अब क्या था; भारतीय सेना नें पाकिस्तानी सेना को रौंदना शुरू कर दिया और 2-3 दिनो मे ही हाजी पीर दर्रे पर तिरंगा फहरा कर लाहौर के हवाई अड्डे को घेर लिया, और तो और चकलाला के हवाई अड्डे को खत्म कर दिया और पाकिस्तान के 260 पैटन टैंको मे से 245 को नष्ट कर दिया। पाकिस्तानी नायक जनरल अय्यूब खान इस पराजय से घबरा गये और समझ गये कि यदि वे युद्द के मैदान मे रूके तो कुछ नही बचेगा। तब उन्होंने अमेरिका और सोवियत संघ के माध्यम से ‘त्राहि माम’ की गुहार लगाई। शास्त्री जी नें उस समय “जय जवान, जय किसान“ का नारा दिया और एक छोटा सा भाषण दिया “ मेरे सेनाधिकारियो का मनोबल ऊँचा था, मैने पीठ थपथपाई और कहा, ’बहादुरों ! बढते जाओ” संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव पर भारत पाक के मध्य युद्ध विराम हो गया। दोनो सेनाये जहाँ की तहाँ रूक गयी।
अब सोवियत संघ के प्रधानमंत्री कोसोजीन ने दोनो देशों को ताशकंद बुलाया। 2 जनवरी 1966 को शास्त्री जी के नेतृत्व मे एक प्रतिनिधिमंडल ताशकंद गया। 3 से 10 जनवरी तक 8 दिनो की बैठक के बाद दोनो देशों मे समझौता हुआ जिसे ताशकंद समझौता कहते है। इसके अनुसार दोनो देशो के सेनाओ को युद्ध पूर्व स्थान पर लौट जाना था। भारत को उसमें बहुत कुछ खोना पड़ा जो उसने महान आर्थिक व सैनिक क्षति द्वारा प्राप्त किया था। वह इस सदमे को झेल नही पाये और पहले से ही हृदय रोगी शास्त्री जी को उसी रात खतरनाक दिल का दौरा पड़ा और 11 जनवरी 1966 को वे दिवंगत हो गये। उनका शव भारत लाये जाने पर देशवासियों ने सब भूल उनकी अप्रतिम विजय को याद रखा और उनके अंतिम दर्शनो के लिये लोगों का ताँता लगा रहा। इस तरह शास्त्री जी मर कर भी अमर हो गये।
हम आज उनके जन्मदिवस पर उन्हें शत-शत नमन करते है!
11 टिप्पणियाँ
अभिषेक जी,
जवाब देंहटाएंआपने बहुत विस्तार से आज के दिन का महात्म्य बताया. बहुत-बहुत आभार.
लाल बहादुर शास्त्री जी पर
जवाब देंहटाएंइतना सुंदर लेख पढकर मन
प्रसन्न हो गया....उनकी
शालीनता,सहृदयता,सरलता
आज भी उदाहरण का विषय है...
नमन उन्हें........
जो एक दिन का साप्ताहिक उपवास
रखने की सलाह के साथ-साथ
घर की छत पर सब्जियाँ उगाने
की बात कहकर महंगाई घटाने के लियें
एक नया दृष्टिकोण जन-मानस की सोच
में पैदा करते हैं,
मेरा प्रणाम उन्हें,
आपको बधाई..आभार...
अभिषेक जी,
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी का जीवन परिच्य आपने बहुत अच्छी तरह प्रस्तुत किया है। घटनाओं और तिथियों का सही प्रकार समायोजन कर आपने रोचकता बनाये रखी है। बधाई स्वीकारें।
***राजीव रंजन प्रसाद
कुछ लम्बा हो गया है, अच्छी प्रस्तुति है।
जवाब देंहटाएंप्रभावी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी के जीवन को बहुत अच्छी तरह प्रस्तुत किया है।
जवाब देंहटाएंअभिषेक जी,
जवाब देंहटाएंभारत के सच्चे सपूतों .. बापू जी व शास्त्री जी की जीवनी पर रोचक
ढंग से प्रकाश डालने के लिये आभार... हम उनके बताये आदर्शों पर चलें यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रधांजली होगी
अभिषेक जी को लाल बहादुर शास्त्री के उपर इतना विस्तृत लेख के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएं२ अक्टुबर के दिन जब पूरा देश बस गाँधी जी को याद कर अपने कर्त्तव्यों की पूर्ति समझ लेता है, उस समय आपने आदरणीय लाल बहादुर शास्त्री जी के ऊपर आलेख लिखकर बहुत हीं सराहनीय एवं प्रशंसनीय कार्य किया है।
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें।
अभिषेक जी! शाष्त्री जी के बारे में इतनी मूल्य जानकारी देनेके लिये बहुत-बहुत आभार!
जवाब देंहटाएंshashtri ji ka yogdan kisi bhi anya se kam nahi. sadhuvad
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.