
पचास के कुछ ऊपर हैं वह, एक दौर के सुपर स्टार साहित्यकार टाइप।
उनसे मिलना बेहद डराने वाला तजुरबा होता है।
वह बताते हैं-फलांजी ने उन्हे फोन करके उस मैगजीन का पूरा इशू प्लान करने को कहा था। अलांजी, उनसे पूछे बगैर किसी लेखक को अपनी मैगजीन में नहीं छापते थे। ठलांजी ने उन्हे अपने समय का आस्कर वाइल्ड कहा था। शलांजी ने उन्हे कहा था कि तुम तो बर्नार्ड शा हो।
ये सब सुनाते हुए उनके चेहरे पर अलग सी चमक आ जाती है।
जैसी चमक निर्मल वर्मा की एक कहानी के उस पात्र के चेहरे पर आती होगी, जो पात्र अपने पुराने दौर की दीवानगिरी को याद करता है।
विकट बोरिंग हो जाते हैं वह, पर उससे भी ज्यादा दयनीय।
एक बार सुना था। फिर जब भी जाना होता, सुनना पड़ता है।
वो भूल जाते हैं कि इन्हे बताया जा चुका है।
या तो उनके पास सुनने वाले नहीं हैं।
या फिर उनके पास सुनाने के लिए कुछ नहीं है।
क्या करें। उनसे मिलना छोड़ दें। फिर उस चमक की संभावनाएं बहुत कम हो जायेंगी।
उन्हे देखकर मैं डरकर सोचता हूं कि क्या उम्र के उस दौर में पहुंच कर मैं भी ऐसा ही करुंगा। संस्मरण सुनाऊंगा, बोर करुंगा।
यह सोचकर आतंकित हो जाता हूं।
संस्मरणजीवी लोग कहीं न कहीं मरणजीवी हो जाते हैं।
शायद उन्हे लगता है कि जो भी श्रेष्ठ था, उसे वह कर चुके हैं।
अब शायद कुछ और करने को बाकी नहीं है।
अब सिर्फ संस्मरण ही बाकी हैं।
पर देखो, तो कितना कुछ है करने को। देखो, तो संस्मरण सुनाने को टाइम कहां है।
नहीं, मैं संस्मरण मोड में कभी नहीं जाऊंगा।
सत्तर साल तक रोज व्यंग्य लिखूंगा।
व्यंग्य, व्यंग्य के बाद उपन्यास लिखूंगा। फिर कुछ यात्रा वृतांत। फिर शेयर बाजार पर कुछ किताबें। फिर शेयर बाजार का नये सिरे से अध्ययन।
कोई पुराने तजुरबों की पूछेगा, तो बोल दूंगा छोड़ ना यार, अभी की सुन।
भई प्लान तो यही है, दुआ करें कि संस्मरण ना ठेलने लगूं।
13 टिप्पणियाँ
संस्मरणजीवी लोग कहीं न कहीं मरणजीवी हो जाते हैं।
जवाब देंहटाएंशायद उन्हे लगता है कि जो भी श्रेष्ठ था, उसे वह कर चुके हैं।
अब शायद कुछ और करने को बाकी नहीं है।
अब सिर्फ संस्मरण ही बाकी हैं।
बहुत बहुत सही कहा आपने ......
लेकिन हमारी दुआ है कि आप अगले पचास वर्षों तक व्यंग लिखते रहें और आपके बनाये रास्ते पर लोग चलें.
संस्मरण की बात कर रहे हैं, तो संस्मरण तो हमारे ... सुनाया करते थे । एक बार क्या हुआ ....
जवाब देंहटाएंअरे मैं तो संस्मरण, वह भी कम संस् अधिक मरण सुनाने जा रही थी !
आप तो बस जो कर रहे हैं वह करते रहें और जो नया अच्छा लगे वह करियेगा। बस किसी बच्चे को कह दीजिएगा कि संस्मरण सुनाने लगें तो टोक दें। घर के दरवाजे पर तख्ती टंगवा दीजिएगा 'यहाँ संस्मरण सुनना मना है।' सुनाने वाले को तो तख्ती पढ़ना ही याद न रहेगा। हा हा, यह तो हम पचास साठ साल बाद की बात कर रहे हैं तब तक तो आप फिट रहेंगे।
घुघूती बासूती
संस्मरणजीवी लोग कहीं न कहीं मरणजीवी हो जाते हैं और मरणजीवी स्मरणीय जीव हो जाते है .
जवाब देंहटाएंक्या बात है पुराणिक जी . जोरदार पोस्ट कुछ हटकर . कल आपके मित्र श्री योगेश जी (गाजियाबाद) से टेलीफोन पर चर्चा हुई .उनसे पता चला की आप उनके मित्र है और आप देहली में ही है .
धन्यवाद.
Sansmaran par vyangya achchha lagaa
जवाब देंहटाएंhai.kahin anavashyak vistaar nahin
hai.Aalok jee ne soojh-bhooj se
lekh likha hai.Badhaee.
अपनी तो दुआ है कि ऊपरवाला आपकी सभी तमन्नाएँ पूरी करे.....
जवाब देंहटाएंअच्छा व्यंग्य...
संस्मरणजीवी लोग कहीं न कहीं मरणजीवी हो जाते हैं।
जवाब देंहटाएंशायद उन्हे लगता है कि जो भी श्रेष्ठ था, उसे वह कर चुके हैं।
अब शायद कुछ और करने को बाकी नहीं है।
अब सिर्फ संस्मरण ही बाकी हैं।
sanmaran par vayang kafi achha raha shabad bahut asardaar rahe aap ka vayang sochne par majboor karta raha aise hi kuch aur naye vishayon par aapki soch aur unhe dekhne ka nazriyan padne ka intezaar hain
:) अच्छा मास्टरप्लान है।
जवाब देंहटाएंबचते बचते
जवाब देंहटाएंसंस्मरण का
आलोक जला
ही दिए।
हमें उपन्यास का इंतजार है।
जवाब देंहटाएंआपके तो संस्मरण भी मजेदार होंगे।
जवाब देंहटाएंअच्छी व्यंग्य रचना है।
जवाब देंहटाएंनयापन लिये ,एक अलग सा सुंदर व्यंग्य लेख ।
जवाब देंहटाएंप्रवीण पंडित
wah alok ji ,
जवाब देंहटाएंbahut sundar baat .. sansmaran ke naam par kya nahi hota..
bahut bahut badhai ..
aapka
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
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