
पर्वत की उँची पहाड़ियों और सुंदर वादियों के बीच एक प्यारा सा गाँव था - बसंतपुर। वहाँ विद्या निकेतन बाल बाला विद्यालय नाम का छोटा सा विद्यालय था। उस विद्यालय मे बहुत से प्यारे प्यारे बच्चे पढा करते थे। उसी विद्यालय में कक्षा छठी में रानी पढ़्ती थी। वह बड़ी होनहार और प्यारी थी इस लिए विद्यालय के सभी शिक्षक उसे प्यार करते थे। रानी हमेशा अपना होमवर्क समय पर करती और अपना पाठ भी ठीक समय पर याद किया करती थी। रानी पढाई मे अपने मित्रो की मदद भी करती थी।
विद्यालय मे ग्रीष्म ऋतु का अवकाश हुआ। उस दौरान रानी को विद्यालय से बहुत सारा काम(होमवर्क) मिला। रानी खुश थी। इस छुट्टी मे उसके विद्यालय से सभी बच्चे अपने मम्मी पापा के साथ कहीं न कहीं घुमने जा रहे थे। रानी ने भी अपने मम्मी-पापा से बाहर घूमने जाने की बात कहीं। रानी के पापा साधारण नौकरी में थे सो उन्हे अधिक छुट्टीयाँ नहीं मिल सकती थी फिर भी उन्होने रानी को अपनी मम्मी के साथ उसके नानी के घर घूमने जाने की इज़ाज़त दे दी। रानी नानी के घर जाने की बात सुन कर बहुत खुश हुई।
रचना सागर का जन्म 25 दिसम्बर 1982 को बिहार के छ्परा नामक छोटे से कस्बे के एक छोटे से व्यवसायिक परिवार मे हुआ। इनकी शिक्षा-दीक्षा भी वहीं हुई। आरंभ से ही इन्हे साहित्य मे रूचि थी। आप अंतर्जाल पर विशेष रूप से बाल साहित्य सृजन में सक्रिय हैं।
दूसरे ही दिन रानी अपनी माँ के साथ नानी के घर आ गयी। उसकी नानी का घर शहर से थोडी दूर पर तो था। नानी, रानी को देख बहुत खुश हुई। नानी का घर चूँकी गाँव में था इसलिए वहाँ आस पाडोस मे खूब दोस्ताना चलता था और नानी के आस परोस मे कई बच्चे थे।
रानी जब नानी घर आई तो आसपास के बच्चों से मिल, उनके साथ ऐसे घुल गई कि उसको न दिन का पता रहता न शाम होने का। बस दिन भर बच्चों के साथ धमा चौकड़ी मचाया करती थी। माँ ने खूब समझाया कि रानी थोडी देर पढ़ लिया करो, अपना होमवर्क पूरा कर लो; पर रानी ने कहा कि वह छुट्टी मनाने आई है, और उसने अपनी माँ की बात पर ध्यान नहीं दिया।
इसी तरह रानी की शैतानी बढ़्ती गई और छुट्टी का एक एक दिन भी गुजरता गया। रानी के स्कूल खूलने का समय आ गया, अब तो रानी को अपने घर लौटना ही था। रानी वापस बसंतपूर चली आई।
रानी स्कूल आयी, सब मित्रो ने गप-शप किया। अपनी-अपनी छुट्टी के बारे मे बताया। घण्टी बजी और कक्षा में शिक्षक आये और उन्होने बच्चों को अपनी होमवर्क की कौपी टेबल पर जमा करने को कहा। सभी विद्यार्थी खुशी खुशी टेबल पर अपनी कौपिया जमा करने लगे। जब रानी के कॉपी देने की बारी आई तो रानी को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे? उसने तो अपना होमवर्क पूरा नहीं किया था, अब वो क्या करती?
उसकी टिचर ने कहा - रानी क्या बात है तुम अपनी होमवर्क की कॉपी क्यूँ नही जमा कर रही हो।
रानी सकुचाई और बड़े शर्म से उसने अपनी होमवर्क की कॉपी टीचर की ओर बढ़ाई टीचर ने मुस्कुराते हुए रानी की कॉपी ली और खोल कर देखा पर ये क्या रानी की होमवर्क की कॉपी तो खाली थी। मैडम ने हल्के कड़े रूख में रानी से पूछा - रानी ये क्या है? तूमने होमवर्क क्यूँ नही किया? रानी र्निरूतर खड़ी रही।
कक्षा में काना-फूसी होने लगी। सभी आश्चर्य मे थे कि रानी ने अपना होमवर्क नहीं किया। रानी ने टीचर की ओर देखा और माफी मांगी। अपनी गलती पर वह बहुत शर्मिदगी थी और उसने सात दिन मे अपना सारा होमवर्क पूरा करने का टीचर से वायदा किया।
अगले सात दिनों मे रानी खूब मेहनत व लगन से अपना होमवर्क पूरा करने मे लगी रही। सात दिन के बाद रानी जब स्कूल आई और उसने अपनी होमवर्क की कॉपी टीचर को दी तो टीचर यह देख बहुत खुश हुई। टीचर नें उसे गलती न दोहराने को कहा साथ ही जिस लगन से उसने अपका गृहकार्य किया था उसके लिये शाबाशी दी। सभी बच्चों ने टीचर के साथ रानी के लिए तालियाँ बजाई।
रानी ने कहा-
अच्छी बात है कि हम खेले खेल
पर सबसे अच्छा है दोनो का मेल
समय पर पढ़ना समय पर खेल
*****
14 टिप्पणियाँ
एक अच्छी बाल कहानी. रचना जी बाल साहित्य का हिन्दी में बहुत अभाव है, खासकर अच्छे साहित्य का. आप निरंतर लिखती रहें.
जवाब देंहटाएंशुभ कामनाएं
चन्देल
बाल कथा अच्छी है, खेल और पढाई को साथ साथ करने का महत्व बताती है।
जवाब देंहटाएंअच्छी बाल कहानी ...
जवाब देंहटाएंअच्छी और रोचक कथा...
जवाब देंहटाएंRegards
रूप सिंज जी से सहमत हूँ कि आप अच्छी बाल कहानियाँ लिख सकती हैं। इस विधा में बहुत कम लेखक सक्रिय हैं।
जवाब देंहटाएंNice story.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
दशकों पूर्व सातवी कक्षा में पढते हुये हम सब बालमित्रों ने अपने जेब खर्च से जमा करके बाल पत्रिका नंदन का वार्षिक शुल्क जमा किया ताकि हमें मानक बाल साहित्य पढने को मिल सके. गामीण अंचल में पोस्ट से आने वाली पत्रिका बहुधा बिलम्ब से पहुंचती थी. पोस्ट्मैन को तब तक हमारे सवालों का उत्तर देते देते खीझ उत्पन्न हो जाया करती.... और फ़िर जब पत्रिका का अंक हाथों में पहुंचता हमारी खुशी का पारावार नहीं होता ...
जवाब देंहटाएंबाल कहा्नियों की भाषा भाव और सीख कोमल मष्तिष्क पर बहुत गहरा प्रभाव डालती है. अत: बाल साहित्य देखने में जितना सरल सा कार्य दिखता है यथार्थ में यह बहुत ही दायित्वपूर्ण और गम्भीर लेखन कार्य है
रचना जी आपकी शैली में अपार संभावनायें हैं. बस लिखती रहें - शुभकामना
रचना जी करें इतनी रचना
जवाब देंहटाएंबाल साहित्य का सागर बनें।
कहानी बहुत अच्छी है। बच्चों के लिये उनकी भाषा में।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंप्रेरक बाल कथा।
जवाब देंहटाएंbachcho keliye likhna asan nahi hota .is liye kahti hoon aap ne bahut hi achchhi kahani likhi hai
जवाब देंहटाएंrachana
रचना जी की एक उम्दा रचना! बधाई स्वीकारें!
जवाब देंहटाएंरचना जी की रचना पढ़ कर अपना बचपन याद आ गया जब हम भी कभी नानी और कभी दादी जी के यहाँ जा कर खूब मस्ती करते थे.. अब वो सब कहाँ है. बाल प्रेरक रचना के लिए रचना जी को बधाई
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.