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शीशा करीना छोड़ देता है [काव्य-पाठ] - मासूम गाज़ियाबादी

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स्वर शिल्पी पर विभिन्न साहित्यिक रचनाओं को सुनवाने के क्रम में इस बार हम साहित्य शिल्पी द्वारा गाज़ियाबाद में आयोजित करवाये गये कवि-सम्मेलन में सम्मिलित मशहूर शायर ज़नाब मासूम ग़ाज़ियाबादी साहब की एक गज़ल आपको सुनवाने जा रहे हैं। गज़ल के बोल हैं:


ज़रा सी भूल पे शीशा करीना छोड़ देता है
कसीली बात पर बच्चा भी हँसना छोड़ देता है।

हमेशा तंगदिल दानिशवरों से फासला रखना
मणि मिल जाये तो क्या साँप डँसना छोड़ देता है।

कभी लम्बी उड़ानों के वो मतलब का नहीं रहता
परों को जो परिंदा फड़फड़ाना छोड़ देता है।

रहे महफ़ूज़ ऐ मालिक मेरे जज़्बात का पानी
शज़र जब सूख जाता है लचकना छोड़ देता है।

मयस्सर रिज़्क होता है उसी को रेगज़ारों में
जो गैरों के लिये भी आबो-दाना छोड़ देता है।

मकाँ दिल खा अगर लाज़े तो लेना काम अश्कों से
फक़ीर आयें तो खण्डहर भी दरकना छोड़ देता है।

मियाँ इतनी भी लम्बी दुश्मनी अच्छी नहीं होती
कि कुछ दिन बाद काँटा भी करकना छोड़ देता है।

इक ऐसा वक़्त आता है हिफ़ाज़त भूल कर अपनी
शिकारी से परिन्दा खुद ही बचना छोड़ देता है}

कई लरज़िश नज़रअंदाज़ करनी पड़तीं हैं वरना
यहाँ मासूम बच्चा भी झिझकना छोड़ देता है।


आशा है कि आपको यह गज़ल और इस सम्मेलन की बाकी रचनायें भी पसंद आयेंगी।

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10 टिप्पणियाँ

  1. देखिये मैं भी कुछ जोड़ दूँ-

    अगर ज्जबात का पानी नहीं महफूज रह पाये।
    कोई घायल या बच्चा भी सरकना छोड़ देता है।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

    जवाब देंहटाएं
  2. मकाँ दिल खा अगर लाज़े तो लेना काम अश्कों से
    फक़ीर आयें तो खण्डहर भी दरकना छोड़ देता है।

    मियाँ इतनी भी लम्बी दुश्मनी अच्छी नहीं होती
    कि कुछ दिन बाद काँटा भी करकना छोड़ देता है।

    वाह वाह!!

    जवाब देंहटाएं
  3. मासूम गाजियाबादी साहब की आवाज में इस ग़ज़ल को "लाईव" सुनने का मौका मिला था। बहुत प्रभावित करने वाले शेर कहते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  4. कुछ दिन बाद काँटा भी करकना छोड़ देता है।
    क्या बात कही है।

    जवाब देंहटाएं
  5. मयस्सर रिज़्क होता है उसी को रेगज़ारों में
    जो गैरों के लिये भी आबो-दाना छोड़ देता है।

    जवाब देंहटाएं
  6. मासूम साहब को प्रत्यक्ष सुनना और इस गजल का आनन्द अनुभव करना एक दुर्लभ उपलब्धि है. शुक्रिया जनाब मासूम गाज़ियाबादी और आभार साहित्यशिल्पी

    जवाब देंहटाएं
  7. "मियाँ इतनी भी लम्बी दुश्मनी अच्छी नहीं होती/कि कुछ दिन बाद काँटा भी करकना छोड़ देता है"

    वाह..क्या बात है !!!

    जवाब देंहटाएं

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