पिछले सप्ताह स्वर शिल्पी पर हमने साहित्य शिल्पी द्वारा गाज़ियाबाद में आयोजित करवाये गये कवि-सम्मेलन में सम्मिलित मशहूर शायर ज़नाब मासूम ग़ाज़ियाबादी साहब की एक गज़ल आपको सुनवाई थी। इसी क्रम को ज़ारी रखते हुये आइये आज सुनते हैं कवि सुभाष नीरव को।
सुभाष जी की इस खूबसूरत रचना "परिंदा" के बोल हैं:
परिंदे मनुष्य नहीं होते
धरती और आकाश
दोनों से रिश्ता रखते हैं परिंदे
उनकी उड़ान में है अनन्त व्योम
धरती का कोई टुकड़ा
वर्जित नहीं होता
परिंदों के लिये।
घर-आँगन, गाँव-बस्ती, शहर
किसी में भी भेद नहीं करते परिंदे
जाति, धर्म, नस्ल, संप्रदाय से
बहुत ऊपर होते हैं ये परिंदे।
मस्ज़िद में, मंदिर में
चर्च में और गुरुद्वारों में
वे कोई फर्क नहीं करते
जब चाहे बैठ जाते हैं उड़ कर
उनकी ऊँची बुर्जियों पर
बेख़ौफ़।
का जन्म 27–12–1953 को मुरादनगर (उत्तर प्रदेश) में हुआ। मेरठ विश्वविद्यालय से स्नातक तथा भारत सरकार के पोत परिवहन मंत्रालय में अनुभाग अधिकारी(प्रशासन) के तौर पर कार्यरत सुभाष नीरव की कई कृतियाँ यथा ‘यत्कचित’, ‘रोशनी की लकीर’ (कविता संग्रह); ‘दैत्य तथा अन्य कहानियाँ’, ‘औरत होने का गुनाह’, ‘आखिरी पड़ाव का दु:ख’(कहानी-संग्रह); ‘कथाबिंदु’(लघुकथा–संग्रह), ‘मेहनत की रोटी’(बाल कहानी-संग्रह) आदि प्रकाशित हैं। लगभग 12 पुस्तकों का पंजाबी से हिंदी में अनुवाद भी वे कर चुके हैं और अनियतकालीन पत्रिका ‘प्रयास’ और मासिक ‘मचान’ का सम्पादन भी कर रहे हैं।
हिन्दी में लघुकथा लेखन के साथ-साथ पंजाबी-हिन्दी लघुकथाओं के श्रेष्ठ अनुवाद के लिए उन्हें ‘माता शरबती देवी स्मृति पुरस्कार, 1992’ तथा "मंच पुरस्कार, 2000" से सम्मानित किया गया जा चुका है।
"साहित्य सृजन" तथा अन्य कई ब्लाग्स के माध्यम से अंतर्जाल पर भी वे सक्रिय हैं।
कर्फ़्यूग्रस्त शहर की
खौफ़ज़दा, वीरान और सुनसान
सड़कों, गलियों में विचरने से भी
नहीं घबराते परिंदे।
प्रांत, देश की हदों,
सरहदों से भी परे होते हैं
आकाश में उड़ते परिंदे।
इन्हें पार करते हुये
नहीं चाहिये होती उन्हें कोई अनुमति
नहीं चा्हिये होता कोई पासपोर्ट, वीजा
शुक्र है!
परिंदों ने नहीं सीखा
मनुष्य की तरह रहना
ज़मीन पर।
इस समारोह में पढ़ी गई कुछ अन्य रचनायें भी हम आगे इसी स्तंभ में प्रस्तुत करेंगे।
25 टिप्पणियाँ
Nice Poem. Thanks.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
शुक्र है!
जवाब देंहटाएंपरिंदों ने नहीं सीखा
मनुष्य की तरह रहना
ज़मीन पर।
नीरव जी की यह प्रभावी कविता है। स्वर शिल्पी के माध्यम से इसका प्रस्तुतिकरण अच्छा लगा।
शुक्र है!
जवाब देंहटाएंपरिंदों ने नहीं सीखा
मनुष्य की तरह रहना
ज़मीन पर।
" इंसानियत के मर्म को मुखर करती भावनात्मक कविता"
regards
अच्छा लगा आवाज में
जवाब देंहटाएंदोबारा सुनना
सुना पहले भी है
पर इससे बार बार
सुन सकते हैं
चाहे जितनी बार
और सुनवा भी सकते हैं सबको
अच्छा लगा यह कर्म
कविता पढ़ना ही है
कवि का धर्म।
बहुत अच्छी प्रस्तुति है, बधाई।
जवाब देंहटाएंकर्फ़्यूग्रस्त शहर की
जवाब देंहटाएंखौफ़ज़दा, वीरान और सुनसान
सड़कों, गलियों में विचरने से भी
नहीं घबराते परिंदे।
प्रांत, देश की हदों,
सरहदों से भी परे होते हैं
आकाश में उड़ते परिंदे।
काश आदमी ही परिंदा हो जाता।
नीरव जी की यह कविता पहले भी पढी है लेकिन सुनने का अलग आनंद है।
जवाब देंहटाएंSubhash bhai
जवाब देंहटाएंFor technical reasons I could not listen to your voice, but I have already read this poem. Jis tarha kuchh behtareen filmi geet insaan kabhi bhee gunguna sakta hai, theek usee tarha aap kee ye kavita har bar sunney par ek naya arth deti hai. Badhai.
Tejendra Sharma
Katha UK (London)
परिंदों के माध्यम से कितनी सहज बात...........लाजवाब बात कह दी है नीरव जी ने.......
जवाब देंहटाएंपरिन्दों को उपमान बना कर लिखी गई सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंसार्थक-सशक्त रचना।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सुभाष जी, आपकी रचना और आपका प्रस्तुतिकरण प्रभावी होता है। आपकी साहित्य साधना स्तुत्य है।
जवाब देंहटाएंगाज़ियाबाद के बाद अब यहाँ पर फिर से सुनना अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंसुभाष नीरव की ’परिन्दे’ एक अद्भुत कविता है. परिन्दे के माध्यम में कवि ने जो भाव प्रस्तुत किए हैं और जिस खूबसूरती से उसे कहा वह मौलिक और श्लाघनीय है. हिन्दी के समकालीन कविता में ’परिन्दे’ का स्थान सुरक्षित रहेगा ऎसा मेरा मानना है. कवि और साहित्य शिल्पी को इसके लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंरूपसिंह चन्देल
सुभाष जी की कविता परिंदा सुनी भी और पढ़ी भी- लाजवाब .अद्भुत, सशक्त अभिव्यक्ति- परिंदों के माध्यम से गहरा सन्देश देती भावनात्मक कविता. अभिनन्दन!
जवाब देंहटाएंसुधा
bahut hi sunder likha hai .sach hai kash hum ne kuchh sikha hota
जवाब देंहटाएंsaader
rachana
दोनों से रिश्ता रखते हैं परिंदे
जवाब देंहटाएंउनकी उड़न में है अनंत व्योम. - छेकानुप्रास
धरती का कोई टुकडा
वर्जित नहीं होता - छेकानुप्रास
मन्दिर में, मस्जिद में
चर्च में और गुरुद्वारों में -व्रंत्यानुप्रास
कविता जितनी पढ़ने में सुंदर है, उतनी ही सुनने में भी अच्छी लगी । बहुत बहुत बधाई ।
जवाब देंहटाएंकविता जितनी पढ़ने में सुंदर है, उतनी ही सुनने में भी अच्छी लगी । बहुत बहुत बधाई ।
जवाब देंहटाएंकविता जितनी पढ़ने में सुंदर है, उतनी ही सुनने में भी अच्छी लगी । बहुत बहुत बधाई ।
जवाब देंहटाएंkya baat hai subhash ji , waah waah sun kar maza aa gaya ..ji dil khush ho gaya ...
जवाब देंहटाएंaapko aur sahitya shilpi ko badhai ..
विजय
http://poemsofvijay.blogspot.com
सुभाष जी को प्रत्यक्ष सुनने के बाद इस रचना का दूसरी बार सुनना अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंMeri kavita "Parinde" par tippni karne ya apni bahumulya rai dene wale sabhi mitroN ka main shukrguzar hun. Isse zahir hota hain ki kavita meiN main jo kahna chahta tha, vo bhali bhanti sampreshit ho gaya hai. Shahitya Shilpi ka bhi aabhari hun ki unhone "swar shilpi" ke antargat meri kavita prakashan kiya aur audio bhi sunne ki liye prastut kiya.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कहा।अगर जीवन मे उतरे ।बधाई ।
जवाब देंहटाएंNice poetry
जवाब देंहटाएंRaksha Bandhan Wishes for sister
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.