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'सलिल' व्याजनिंदा समझ, सकता है जग जीत [काव्य का रचना शास्त्र: २१] - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'


प्रथम दृष्टया प्रशंसा, निंदा असली भाव.
कहें व्याज निंदा उसे, सुनकर बदल स्वभाव..

चुभे प्रशंसा तीर सी, जैसे तीक्ष्ण प्रहार.
'सलिल' व्याजनिंदा सुने, तो कर आत्म-सुधार..

हुई व्याजनिंदा अगर, मत हो तू नाराज.
निरख-परख आचार निज, मिले सफलता-ताज..

जब प्रगट रूप में प्रशंसा, तारीफ या स्तुति इस प्रकार की जाये कि गंभीरता से सोचने पर उसमें विपरीत अर्थ या निंदा, आलोचना, बुराई छिपी प्रतीत हो तो वहाँ व्याजस्तुति अलंकार होता है.

इस अलंकार का प्रयोग हितचिन्तक श्रोता के भले के लिए भी कर सकता है और अहित चिन्तक श्रोताको खुश कर औरों के सामने उसे नासमझ सिद्ध करने एक लिए भी कर सकता है. यदि श्रोता इस अलंकार को समझ कर त्रुटि सुधार ले तो उसका भला होगा. यदि व्याजस्तुति को न समझ कर गलतियाँ करता जाये तो उसका नाश होगा.
'सलिल' व्याजनिंदा समझ, सकता है जग जीत.
जो न समझ पाए इसे, उसकी प्रगति अतीत..

उदाहरण:
१. नाक कान बिन भगिनी निहारी,
क्षमा कीन्ह तुम धरम विचारी..

यहाँ प्रगट रूप से ऐसा लगता है मानो वक्ता (अंगद) श्रोता (रावण) कि प्रशंसा कर रहा है परन्तु वास्तव में वक्ता द्वारा प्रशंसा के बहाने श्रोता की निंदा की जा रही है कि वह बहन के नाक-कान कटे जाने पर भी मौन रहा जो वीरोचित नहीं है.

साहित्य शिल्पीरचनाकार परिचय:-

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' नें नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा. बी.ई.., एम. आई.ई., अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र में एम. ऐ.., एल-एल. बी., विशारद,, पत्रकारिता में डिप्लोमा, कंप्युटर ऍप्लिकेशन में डिप्लोमा किया है।
आपकी प्रथम प्रकाशित कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है। 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं। आपकी चौथी प्रकाशित कृति है 'भूकंप के साथ जीना सीखें'। आपनें निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों के साथ साथ अनेक पत्रिकाओं व स्मारिकाओं का भी संपादन किया है।

आपको देश-विदेश में १२ राज्यों की ५० सस्थाओं ने ७० सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं : आचार्य, २०वीन शताब्दी रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञानं रत्न, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, काव्य श्री, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, आदि।

वर्तमान में आप म.प्र. सड़क विकास निगम में उप महाप्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं।

२. तुम तो सखा स्याम सुन्दर के,
सकल जोग के ईस..

उक्त पंक्तियों में गोपियाँ उद्धव को जोग का ईस (योग का स्वामी) और कृष्ण को अपना सखा कहकर प्रत्यक्षतः उद्धव की प्रशंसा करती प्रतीत होती हैं किन्तु वस्तुतः उनका भाव उद्दव की निंदा करने का है. वे उद्धव को प्रेम-भक्ति के आनंददायी पथ के स्थान पर योग के कष्टकारी मार्ग पर चलने का उपदेश देनेवाला दुष्ट व्यक्ति कह रही हैं.
३. सेमर तेरौ भाग्य यह, कहा सराह्यौ जाय.
पक्षी करि फल आस जो, तुहि सेवत नित आय.

इस उद्धरण में प्रगट में सेमर वृक्ष की स्तुति की गयी प्रतीत होती है पर वास्तव में निंदा की गयी है, इसलिए व्याज निंदा अलंकार है.
४. बाउ कृपा मूरति अनुकूला,
बोलत बचन झरता जनु फूला.

५. राम साधु तुम साधु सुजाना,
राम मातु तुम भलि पहचाना.

६. लालू जनसेवक बड़े, 'सलिल' न इन सा अन्य.
चारा घोटाला किया, लोकतंत्र है धन्य..

७. माया की माया 'सलिल', सचमुच अपरम्पार.
दलित हितों की स्वयम्भू, हैं ये पैरोकार..

८. तनिक पक्षधरता नहीं, करे कचहरी न्याय.
बांधे पट्टी आँख पर, सत्य हुआ निरुपाय..

९. नेता महान.
किसी का बेटा नहीं
सैन्य-जवान.

व्याजनिंदा अलंकार में कवि शब्द सामर्थ्य, बिम्ब और प्रतीक को समझकर उपयोग करने की क्षमता, कथ्य या विषय का चयन, अभिव्यक्ति क्षमता आदि की परख होती है.
साहित्य शिल्पी की पिछली दो माहों की रचनाओं में एक भी उदाहरण व्याजस्तुति या व्याजनिंदा का नहीं मिला.

इन दोनों अलंकारों की प्रासंगिकता कम नहीं हुई है किन्तु इन्हें समझने और उपयोग करनेवाले कम हुए हैं जबकि वर्तमान परिवेश में पारिस्थितिक वैषम्य और विडंबनाओं को उद्घाटित करने में इनका कोई मुकाबला नहीं.


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10 टिप्पणियाँ

  1. व्याज स्तुति और व्याज निंदा दोनों ही बडे रोचक अलंकार हैं फिर एसा क्यों है कि इनका प्रयोग घटता जा रहा है?

    साहित्य शिल्पी के लिये - कृपया इस बात को सुनिश्चित करें कि टिप्पणियों की संख्या बढें। आपके आंकदे यह बताते हैं कि आपके पाठक बढे हैं फिर उस अनुपात में टिप्पणीकार क्यों नहीं बढ रहे? लेखक का हौसला बढाने का प्रयास कीजिये।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छा आलेख है। अनन्या जी जी चिंता भी उचित है।

    जवाब देंहटाएं
  3. मैं अपनी अनीयमितता के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ। बारिश में नेट की उपलब्धता समस्या अधिक हो जाती है।

    व्याज निंदा क्या व्यंग्य का ही पद्य रूप है?

    जवाब देंहटाएं
  4. सलिल जी के कार्य की जितनी प्रशंसा की जाये कम है। हिन्दी में एसी सामग्री जुटाना बडी बात है।

    जवाब देंहटाएं
  5. व्याजनिंदा सचममुच मजेदार अलंकार है। आपके उदाहरण आपके लेख को सम्पूर्न बनाते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  6. अच्छा लेख है | धन्यवाद |

    एक प्रयास -

    जीते जी अपने लिए,
    तुम जीना सीख जाओगे,
    बढ़ते आगे इसतरह,
    केवल जीते जाओगे |

    ऐसे ही एक ख्याल दीमाग में आया -
    यदि यमक और व्याजस्तुति को मिला दे तो ? यमक के एक अर्थ में स्तुति औत दुसरे अर्थ में निंदा हो | आप लोग क्या कहते हैं ?


    अवनीश तिवारी

    जवाब देंहटाएं
  7. ACHARYA SALIL JEE KA YAH LEKH BHEE
    SANGRNIY HAI.BADHAAEE.

    जवाब देंहटाएं
  8. आचार्य श्री की यह आलेख श्रंखला अंतर्जाल पर जो दुर्लभ सामग्री उपलब्ध करवा रही है, उसके लिये आभार शब्द छोटा जान पड़ता है। काव्य को समझने के इच्छुक लोगों के लिये इसका अन्यतम महत्व है।

    जवाब देंहटाएं
  9. सभी टिप्पणीकारों और पाठकों का आभार.अनन्या जी की चिंता से सहमत हूँ किन्तु मेरे लिया संख्या से अधिक महत्वपूर्ण टिप्पणियों में उठाये गया प्रश्न और लेखों में वर्णित विषय-वस्तु के सम्बन्ध में उत्पन्न रूचि, जागरूकता तथा उसका प्रयोग है.

    अनुरोध है कि अलंकारों को समझ कर सामयिक रचनाओं में खोजकर टिप्पणी में उनका उल्लेख करें. विडम्बना यह है कि समालोचक, शिक्षक और संपादक भी अलंकारों कि समझ न रखने के कारण उन्हें न तो पहचान पाते हैं न उनकी चर्चा कर पाते हैं, प्रयोग तो बाद का चरण है.

    अनन्या जी!

    जब आप जैसे सुरुचिसम्पन्न साहित्यप्रेमी रचनाओं में इन्हें पहचानकर रचनाकार को सराहेंगे तो इनके प्रयोग में रूचि और समझ बढेगी. इसीलिए मैंने सामयिक रचनाओं में इन्हें खोजा, पाया तथा बताया है.

    टिप्पणियों में लेख में छूते हुए पहलू उठाये जाएँ तो मेरा भी ज्ञानवर्धन होगा.

    जवाब देंहटाएं

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