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इतने श्याम कहाँ से लाऊँ [श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष] – राजीव रंजन प्रसाद

समय नें कब नहीं पुकारा? समय आज भी चीखता है कि उसे चाहिये कृष्ण। पुकार प्रतिध्वनित भी होती है और चीख कर लोप भी हो जाती है। कान्हा मूरत भर रह गये हैं और हमनें उन्हे सामयिक मानना भी छोड दिया है। जैसे अब कोई कंस नहीं, किसी वासुदेव को कैद नहीं या किसी देवकी की कोख नहीं कुचली जाती। डल झील सुलगती है, असाम के जंगल बिलखते हैं, तमिलनाडु का अपना राग है, दिल्ली की जिन्दगी में घुली दहशत या कहें घर घर मथुरा जन जन कंसा इतने श्याम कहाँ से लाउँ? उस रात जब कान्हा को सिर पर उठाये वसुदेव नें उफनती जमुना पार की थी तो आँखों में युग परिवर्तन का सपना रहा होगा। अधर्म पर धर्म की विजय होनी ही चाहिये। कालिया के फन कुचले जाने की आवश्यकता थी, कंस की तानाशाही व्यवस्था परिवर्तन चाहती थी लेकिन आज के शिशुपाल करोडो करोड गालियाँ बकते चौक चौक खडे हैं आज के कंस तालिबान हो गये हैं, नक्सल हो गये हैं; आज के जरासंघ इस कदर फैले कि चीन और पाकिस्तान हो गये है।

व्यवस्था के खिलाफ आक्रोश किसमें नहीं होता? साहित्यकारों के लिये लेखन है यह आक्रोश, तो नेताओं के लिये फैशन है, विद्यार्थियों के लिये डिस्कशन है तो आम आदमी अब भी इसी सोच में रहता है कि कोई नृप होहुँ हमहि का हानि। कृष्ण उदाहरण हैं कि सत्ता समाज के लिये है और उसके अनुसार बदलाव भी होने चाहिये। कृष्ण दिशा देते हैं कि व्यवस्था के खिलाफ लफ्फाजियाँ करना आसान है लेकिन उसे जनानुरूप बनाने के लिये दृष्टिकोण चाहिये और इसके लिये स्वयं ही तत्पर होना होगा। कृष्ण सोचशून्य क्रांतियों के पक्षधर नहीं रहे अर्थात हर बार बंदूख ले कर लाल सलाम करने से ही बात नहीं बनती, हर बार हर-हर महादेव और अल्लाह हो अकबर से निमित्त सिद्ध नहीं होते; बल्कि कभी कभी मथुरा बचानी भी पडती है, कभी कभी अपने सोच की द्वारका बसानी भी होती है। कृष्ण राजा नहीं थे जबकि उनके एक इशारे पर अनेको राजमुकुट उनके चरणों पर समर्पित हो सकते थे।

रचनाकार परिचय:-

राजीव रंजन प्रसाद का जन्म बिहार के सुल्तानगंज में २७.०५.१९७२ में हुआ, किन्तु उनका बचपन व उनकी प्रारंभिक शिक्षा छत्तिसगढ राज्य के जिला बस्तर (बचेली-दंतेवाडा) में हुई। आप सूदूर संवेदन तकनीक में बरकतुल्ला विश्वविद्यालय भोपाल से एम. टेक हैं। विद्यालय के दिनों में ही आपनें एक पत्रिका "प्रतिध्वनि" का संपादन भी किया। ईप्टा से जुड कर उनकी नाटक के क्षेत्र में रुचि बढी और नाटक लेखन व निर्देशन उनके स्नातक काल से ही अभिरुचि व जीवन का हिस्सा बने। आकाशवाणी जगदलपुर से नियमित उनकी कवितायें प्रसारित होती रही थी तथा वे समय-समय पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुईं। वर्तमान में आप सरकारी उपक्रम "राष्ट्रीय जलविद्युत निगम" में सहायक प्रबंधक (पर्यावरण) के पद पर कार्यरत हैं। आप "साहित्य शिल्पी" के संचालक सदस्यों में हैं।

आपकी पुस्तक "टुकडे अस्तित्व के" प्रकाशनाधीन है।

आराध्य केवल अगरबत्ती दिखाने के लिये तो नहीं होते, अनुकरणीय भी होते हैं। कृष्ण, एक मानव के महानता के उस शिखर तक पहुँचने की यात्रा हैं जहाँ से ईश्वर की सत्ता आरंभ होती है। धर्म की स्थापना बहुत महान उद्देश्य है और धर्म किसी आराधना पद्यति का नाम नहीं है। धर्म वह है जहाँ मानवता निर्भीक हो सके, इसके लिये कदाचित भीष्म पर भी शस्त्र उठाना पड सकता है या यह भी संभव है कि धर्मराज से ही कहलाना पडे “अश्वत्थामा हतो हत: नरो वा कुंजरो..” क्योंकि अंतत: दुर्योधन का ह्रास हो कर रहेगा और सत्ता को आँख मिलेगी। लेकिन आज एसी सोच कहाँ है? कौन भगवत्ता की सीढियाँ चढना भी चाहता है? सुबह की चाय के साथ सरकार को कोसने से बात बन जाती है। हर कोई यह मानता है कि कुछ बदलना चाहिये लेकिन क्या? और कौन करेगा? कृष्ण वहन करते हैं सारा “योग-क्षेम” किंतु अर्जुन हो जाने का साहस ही कितनों में है?

समय नें कृष्ण के बाद पाँच हजार साल बिता लिये हैं। इसे दुर्भाग्य कहना होगा कि अब अनेकों महाभारत की पृष्ठभूमि तैयार हो गयी है। हर विकसित और विकाससील राष्ट्र ब्रम्हास्त्र के उपर बैठा है। एसे अंधे परमाणु अस्त्रों पर और हालात अश्वत्थामा जैसे कि ये अस्त्र लौट कर तूणीर में न आ सकें। पूरी की पूरी मानव जाति का अंत केवल एक संधान पर ही संभव है लेकिन कृष्ण कहाँ है? हम कितने मासूम हैं कि प्रतीक्षारत हैं कि कोई कान्हा आयेगा और हमारी लडायी लडेगा क्योंकि उसने ही कहा था “यदा यदा हि धर्मस्य....” उसने यह भी कहा था कि “कर्मण्ये वाधिकारस्ते...”|

कण कण में कृष्ण है, कण कण कृष्ण बन सकता है हम में से कोई भी.....|

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30 टिप्पणियाँ

  1. भगवान श्रीकृष्ण हर युग के हैं और हर युग के रहेंगे। उनके संदेश समझ कर हर क्रांति संभव है। आपनें व्यवस्था, असंतोष और क्रांति के साथ कृष्ण जी की सोच को जोड कर अपने आलेख को महत्व का बना दिया है।

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  2. सोचने पर बाध्य करता हुआ आलेख है। सही मायनों में कृष्ण के विचारो का आत्मसात ही सच्ची जन्माष्टमी हो सकता है।

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  3. कृष्ण की आवश्यकता हर युग में बनी ही रहेगी। जब जब धर्म और न्याय पीड़ित होंगे, किसी न किसी को कृष्ण होना ही होगा जो किसी दुर्योधन के मिष्ठान्न छोड़कर विदुर के शाक-पात खा सके; अपने समस्त बंधु-बांधवों के विरोध के बावज़ूद धर्म और न्याय के पक्ष में खड़ा हो सके; किसी स्त्री का सम्मान स्थापित करने के लिये अपने माथे पर तथाकथित कलंक को भी धारण कर सके और धर्म की जड़ धारणाओं से अलग उसके मूल रूप को स्थापित कर सके।
    राजीव जी! प्रस्तुत आलेख के माध्यम से आपने वर्तमान समय में कृष्ण की उपादेयता और महत्व को बहुत सुंदर ढंग से रेखांकित किया है। इसके लिये आप बधाई के पात्र हैं! हालांकि मैंने जब आपसे इस आलेख के लिये कहा था तो मेरे मन में पूरी तरह इसका यह रूप नहीं था। :)
    जन्माष्टमी के इस सुअवसर पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।

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  4. श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ। आभार इस सुंदर प्रस्तुती पर

    regards

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  5. आलेख की भाषा और प्रवाह बहुत प्रभावित करता है। कृष्ण पर गहन मंथन है।

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  6. Nice Article. Happy Janamashtami.

    Alok Kataria

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  7. राजीव जी बहुत अच्छा और सधा हुआ आलेख है। कृष्ण जी की समसामयिकता पर इस तरह का लेख पहले नहीं पढा। आपको जन्माष्टमी की शुभकामनायें।

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  8. इतने श्याम कहाँ से लाऊँ राजीव रंजन प्रसाद जी का विचारप्रधान आलेख है जिसमें कृष्ण के लौकिक पक्ष को सूक्ष्मता से उद्घाटित करते हुए भगवान के होने की प्रासंगिकता को वर्तमान से सन्निबद्ध कर पाठकों में यह संदेश देने का प्रशंसनीय प्रयास हुआ है कि हम धर्म के उत्स को वास्तविकता की कसौटी पर किस तरह रखकर समझें। राजीव जी अपने प्रयास में काफ़ी सफल भी हुए हैं क्योंकि यहाँ कृष्ण की विवेचना तथाकथित धर्मभीरु होकर नहीं की गयी है, बल्कि भगवान की विलक्षणता की अर्थ-स्फीति का दायरा यहाँ अपेक्षाकृत महत्तर है जो धर्म से अधिक समाज पर जोड़ देता है। ऐसे समयानुकूल प्रस्तुति के लिये उन्हें मेरी ओर से बधाई और जन्माष्टमी की सभी साहित्य-शिल्पी बधंओं-पाठकों को शुभकामनाएँ।

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  9. व्यवस्था के खिलाफ आक्रोश किसमें नहीं होता? साहित्यकारों के लिये लेखन है यह आक्रोश, तो नेताओं के लिये फैशन है, विद्यार्थियों के लिये डिस्कशन है तो आम आदमी अब भी इसी सोच में रहता है कि कोई नृप होहुँ हमहि का हानि। कृष्ण उदाहरण हैं कि सत्ता समाज के लिये है और उसके अनुसार बदलाव भी होने चाहिये। कृष्ण दिशा देते हैं कि व्यवस्था के खिलाफ लफ्फाजियाँ करना आसान है लेकिन उसे जनानुरूप बनाने के लिये दृष्टिकोण चाहिये और इसके लिये स्वयं ही तत्पर होना होगा। कृष्ण सोचशून्य क्रांतियों के पक्षधर नहीं रहे अर्थात हर बार बंदूख ले कर लाल सलाम करने से ही बात नहीं बनती, हर बार हर-हर महादेव और अल्लाह हो अकबर से निमित्त सिद्ध नहीं होते; बल्कि कभी कभी मथुरा बचानी भी पडती है, कभी कभी अपने सोच की द्वारका बसानी भी होती है। कृष्ण राजा नहीं थे जबकि उनके एक इशारे पर अनेको राजमुकुट उनके चरणों पर समर्पित हो सकते थे।

    एसे अलेखों की बहुत आवश्यकता है।

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  10. बहुत अच्छा आलेख है, बधाई। जन्माष्टमी की शुभकामनायें।

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  11. अच्छा लेख। जन्माष्टमी की शुभकामनायें।

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  12. पंकज सक्सेना14 अगस्त 2009 को 3:05 pm बजे

    "कण कण में कृष्ण है, कण कण कृष्ण बन सकता है हम में से कोई भी.....|"

    जन्माष्टमी की शुभकामना।

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  13. प्रभावी आलेख .. बल्कि मैं तो इसे आह्वाहन ही कहूंगा ... राजीव भाई की लेखनी आग उत्पन्न करती है ..

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  14. अच्छा लेख। जन्माष्टमी की बधाई।

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  15. हमारे अध्यात्म के विराट आकाश में श्रीकृष्ण ही अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जो धर्म की परम गहराइयों व ऊंचाइयों पर जाकर भी गंभीर या उदास नहीं हैं। श्रीकृष्ण उस ज्योतिर्मयी लपट का नाम है जिसमें नृत्य है, गीत है, प्रीति है, समर्पण है, हास्य है, रास है, और है जरूरत पड़ने पर युद्ध का महास्वीकार। धर्म व सत्य के रक्षार्थ महायुद्ध का उद्घोष। एक हाथ में वेणु और दूसरे में सुदर्शन चक्र लेकर महाइतिहास रचने वाला दूसरा व्यक्तित्व नहीं हुआ संसार में। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की बधाई।

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  16. आज देश के युवाओं को श्रीकृष्ण के विराट चरित्र के बृहद अध्ययन की जरूरत है। राजनेताओं को उनकी विलक्षण राजनीति समझने की दरकार है और धर्म के प्रणेताओं, उपदेशकों को यह समझने की आवश्यकता है कि श्रीकृष्ण ने जीवन से भागने या पलायन करने या निषेध का संदेश कभी नहीं दिया। वे महान योगी थे तो ऋषि शिरोमणि भी। उन्होंने वासना को नहीं, जीवन रस को महत्व दिया। वे मीरा के गोपाल हैं तो राधा के प्राण बल्लभ और द्रोपदी के उदात्त सखा मित्र। वे सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान और सर्व का कल्याण व शुभ चाहने वाले हैं। अति रूपवान, असीम यशस्वी और सत् असत् के ज्ञाता हैं। जिसने भी श्रीकृष्ण को प्रेम किया या उनकी भक्ति में लीन हो गया, उसका जन्म सफल हो गया। धर्म, शौय और प्रेम के दैदीप्यमान चंद्रमा श्रीकृष्ण को कोटि कोटि नमन।

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  17. Krishna janmashtmi par behad prabhavi & sarthak prastuti...badhai.

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  18. राजीव जी,
    जन्माष्टमी के अवसर पर प्रकाशित आपका आलेख पढ़ा. आम आदमी के आक्रोश को शब्द देकर आपने एक सराहनीय प्रयास किया है.धीरे - धीरे
    हमारे त्यौहार अपना मूल्य खोते जा रहे हैं.हम भूल रहे हैं कि ये त्यौहार हम क्यों मनाते हैं. धर्म- अधर्म, पाप- पुण्य सभी किताबी बातें लगने लगी
    हैं.सन्दर्भों के माध्यम से स्थापित आपके विचार एक कटु सत्य है.इस सामयिक विशलेषण के लिए बधाई स्वीकार करें.

    किरण सिन्धु .

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  19. राजीव जी आपकी प्रभावशाली लेखन शैली को नमन करता हूँ...आप ने जो बात कही है वो अक्षरश: सही है...मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
    नीरज

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  20. RAJIV JEE,AAPKE LEKH" ITNE SHYAM
    KAHAN SE LAAON " KA EK-EK SHABD
    VICHAARNIY AUR ANUKARNIY HAI.MEREE
    BADHAAEE.

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  21. janmashtmi par aap ka lekh padh ke man bhav vibhor houtha sach hai mahabharat ki prasht bhumi to hai ap us ko santulit rakhne ko krishna nahi hai .
    sochne yogya lekh
    saader
    rachana

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  22. श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
    विचारोत्तेजक लेख के लिए आभार -सुन्दर प्रस्तुति ..

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  23. राजीव जी!


    बहुत सुंदर आलेख ....
    आभार...



    श्री कृष्ण जन्माष्टमी की
    हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  24. सारा वातावरण कृष्‍णमय हो गया है, आप के आलेख के बारे में और क्‍या कहें ।

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  25. andar tak jhaj kor diya aap ne yah sochne ko majbur karta hai kya hum sahi mayne me krshn ke updesho ko maan rahe hai

    meri badhayi swikaar kare raajeev ji
    saadar
    praveen pathik
    9971969084

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  26. कृष्ण जन्माष्टमी की आपके परिवार को मेरी , हार्दिक शुभकामनाएं
    सुन्दर आलेख विचार और मनन के योग्य है
    स ~ स्नेह,
    - लावण्या

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  27. सामयिक, सशक्त, सार्थक, सटीक तथा सत्यता समाहित किये आपका यह आलेख पठनीय ही नहीं मननीय भी है. सजग लेखन दृष्टि साधुवाद की पात्र है.

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  28. युग कोई भी हो सदा श्रीकृष्ण की आवश्यकता रहेगी..और किसी न किसी रूप में उनका इस धरा पर अवतरण होता रहेगा..

    इस विचार प्रधान लेख के लिये आभार

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  29. Rajeev Sir,aapki lekhani bahut dino baad dekhne ko mili. aaj bhi utni hi teekshna hai ki haat rakho to pata bhi na chale aur khoon bahne lage.

    Dr.Gajendra Daharwal

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