
अब का सा टाइम होता, तो रावण को मारने के लिए इत्ती जहमत ना होती। अब तो क्रेडिट कार्ड, मोबाइल और तमाम तरह-तरह के सेल बडों-बडों को यूं निपटा दें। हर तीसरे दिन अखबार में रिपोर्ट आती है कि फलां बैंक ने लोन लेने वाले कर्जदार की इत्ती फजीहत की कि बेचारे ने शर्म के मारे खुद ही जान दे दी। रावण के साथ भी कुछ यूं हो लेता, राम की सेना पर ब्रह्महत्या का आरोप ना आता।

आलोक पुराणिक वरिष्ठ व्यंग्यकार हैं तथा अंतर्जाल के साथ-साथ पिछले कई वर्षों से विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से स्तंभ लिख रहे हैं।
रावण के पास फोन आता समधुर वाणी में लोन कन्या कहती-जी आफ दस मुंह हैं। दस मुंह के लिए दस मोबाइल चाहिए। हम आपको लोन दे देते हैं। इस आफर का लाभ उठाइये।
रावण लोन कन्या की मधुरवाणी के लपेटे में आ जाता। ले बेट्टे, ले लोन। लोन आ जाता, मोबाइल आ जाते। मोबाइल के बिल भी आते।
मोबाइल के बिल में क्या-क्या चार्ज होते हैं, काल चार्ज, सवाल चार्ज, सर्विस टैक्स सर्विस टैक्स पर सेस, सेस पर फिर सर्विस टैक्स, फिर सर्विस टैक्स पर इनकम टैक्स, फिर इनकम टैक्स पर काल चार्ज, काल चार्ज और वैल्यू एडेड सर्विसेज।
मोबाइल का बिल दरअसल आधुनिक पेंटिंग या आधुनिक कविता जैसा कुछ होता है। बस फर्क यह होता है कि कविता खुली लूट का काम नहीं करती, मोबाइल बिल करता है।
पर यह समझने में दशानन का सारा समय लग जाता। राजकाज के लिए समय नहीं बचता। समय बचता तो किसी मैन ब्यूटी क्रीम के बंदे आ लेते-महाराज अब तो पुरुषों को गोरा बनाने वाली ऋीम आ गयी है। दसों के दसों मुंह के लिए स्पेशल पैकेज आफर कर रहे हैं। कंसेशनल रेट पर, आपका आधा खजाना हमारा।
फिर लोन बाला का फोन आता-महाराज हम तो आफ मोबाइल बिल को भी फाइनेंस करने के लिए तैयार हैं। बस अपनी अशोक वाटिका हमें गिरवी रख दें। साथ में आपका महल और कार्यालय भी हम रख लेंगे।
रावण के पास कोई आप्शन नहीं होता।
इश्क के मर्ज और बैंक के कर्ज की मार जो झेलता है, उसकी नींद उड जाती है, ऐसा विद्वानों ने कहा नहीं है। पर सच यही है।
रावण रात भर जागकर बस इसी गुंताडे में बिताता कि किस क्रेडिट कार्ड की लिमिट से ये वाला बिल दिया जाये और किस क्रेडिट कार्ड से वो वाला बिल दिया जाये।
फिर क्या होता जी बैंक के पहलवान आते-और इत्ता जलील करते-क्यों बे रावण, खाने के लिए दस मुंह और लोन वापस करने के लिए सिर्फ दो हाथ। चल बे, रावण तेरी मूंछ तक हम ले जायेंगे, इसकी एक्जीबिशन लगाकर लोन वापस वसूल लेंगे। चल रे, रावण तुझे सर्कस में भरती करा देंगे, तू नाच कर दिखाना दस सिरों के साथ, पब्लिक मजा लेगी, और पैसे देगी। उससे लोन की वसूली होगी। चल बे रावण तू चालू चैनल में भरती हो जा, श्मशान शो का एंकर बन जा, तंत्र-मंत्र के खेल दिखा, पैसे कमा और हमे हमारा लोन दिला।
रावण मारे टेंशन के खुद ही अपनी जान ले लेता।
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11 टिप्पणियाँ
करारा व्यंग्य है। वाकई बैंको नें पुरानी कहानियों के महाजनों की जगह ले ली है।
जवाब देंहटाएंसच है। तीखा व्यंग्य है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा व्यंग्य, बधाई।
जवाब देंहटाएंNice one.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
हमेशा की तरह, बढिया।
जवाब देंहटाएंसीताहरण के रास्ते सुसाइड करने से यही बेहतर रास्ता है.
जवाब देंहटाएंबिलकुल सुसाईट कर लेता। करारा व्यंग्य।
जवाब देंहटाएंkya baat hia alok ji
जवाब देंहटाएंpadhkar hansi bhi aa gayi aur soch bhi ... maza aa gaya sir ji , badhai aapko ...
हा हा हू हू ही ही
जवाब देंहटाएंसही है... फिर तो एक फाइनेंस कम्पनी में भी खोलता... गिरवी में सोने की लंका की एक आध दीवार मांग लेता... मजेदार...
जवाब देंहटाएंखबरी
http://deveshkhabri.blogspot.com/
मध्यम वर्ग की यही असल कहानी
जवाब देंहटाएंचाहिए सब कुछ पर जेब है खाली
हम मध्यम वर्गीयों की यही हालत है...हमेशा अपनी चद्दर से बाहर पाँव निकालने की जुगत में रहते हैँ।हमारी इसी कमी को भुनाने का काम ये फाईनैंस कम्पनियाँ करती हैँ।
बहुत ही बढिया व्यंग्य ...तालियाँ
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