
हवा का डाकिया इस वक़्त, तेरी याद लाया है...
मुझे उस प्यार की सौं है, मुझे अंगार की सौं है
मेरे सीने में जो जल कर, मुझे ही मोम करती है
मेरा सपना, मेरी हर कल्पना, हँसती है मुझ ही पर
मेरा संकल्प घायल है, उदासी व्योम करती है
वो कितना कुछ था करने को, न कर पाया, न हो पाया
लपट है वक़्त की जिसपर, जवानी होम कर दी है
मैं आशा की किसी लौ को ही जलता देख तो पाता
तुम्हीं ने तो पलक मूंदी, हरेक दीपक बुझाया है
हवा का डाकिया इस वक़्त, तेरी याद लाया है...
वो बातें थीं, महज बातें, कि दुनिया को नया सूरज
वो हर इक आँख में चिड़िया, वो हर इक हाथ में कागज
क्षितिज दुनिया का हर कोना, जमीनों में उगा सोना
नहीं बरगद, न ही सरहद, न ये होना, न वो रोना
हमारे मन के हाथों में, लपट उँची, मशालें थीं
मगर हम मेमने थे, हम पे शेरों की दुशालें थीं
गिरे जब हम धरातल पर, जमीं में हम समाते थे
न तुम थे, पर हमारे साथ सूरज था, ये साया है..
हवा का डाकिया इस वक़्त, तेरी याद लाया है...
तुम्हीं तो थे, जिसे जज़्बों पे मेरे प्यार आता था
तुम्हीं ने तो मुझे खत लिख के जोड़ा एक नाता था
जमीन-ओ-आसमा की बात, जन्मों की कहानी थी
मेरे कदमों तले तुमको कोई दुनिया बसानी थी
मगर जब नौकरी पाने में मेरी डिगरियाँ हारीं
किसी इंजीनियर से हो गयी थी फिर तेरी यारी
सभी बातें कहानी थीं, तुम्हारी बात पानी थी
किताबों में पुरानी भी लिखा, जो सच है माया है
हवा का डाकिया इस वक़्त, तेरी याद लाया है...
मुझे आ कर मिले, आदर्श ने भोजन दिया जिसको
भजन तब है, अगर रोटी तुम्हारे पेट से बोले
जहाँ टाटा को, अंबानी को, सुनने भीड़ लगती हो
वहाँ ये डायरी ले कर कहाँ निकले कवि भोले
कोई भी साथ आ जाये, नहीं ये दौर है ऐसा
तुम्हारी चुप खरीदेगा, यहाँ बोलेगा बस पैसा
वो झूठे ख्वाब थे, कैसी नशीली थी बहुत दुनिया
तुम्हारा साथ हो तो दो जहाँ को हमने पाया है
हवा का डाकिया इस वक़्त, तेरी याद लाया है...
38 टिप्पणियाँ
बहुत सुंदर कविता। खूब खूब बधाई
जवाब देंहटाएंमुझे आ कर मिले, आदर्श ने भोजन दिया जिसको
जवाब देंहटाएंभजन तब है, अगर रोटी तुम्हारे पेट से बोले
जहाँ टाटा को, अंबानी को, सुनने भीड़ लगती हो
वहाँ ये डायरी ले कर कहाँ निकले कवि भोले
कोई भी साथ आ जाये, नहीं ये दौर है ऐसा
तुम्हारी चुप खरीदेगा, यहाँ बोलेगा बस पैसा
आज भी एसी धारदार कविता लिखी जाती है? जबरस्त रचना इसे कहते है जो रोंगटे रोंगटे खडे कर दे।
मुझे शबनम के कतरे ने कहा, तुमने बुलाया है
जवाब देंहटाएंहवा का डाकिया इस वक़्त, तेरी याद लाया है...
सटीक और जोरदार रचना है . बधाई .
राजीव जी इस कविता के तेवर प्रशंसनीय है। कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। एक एक पंक्ति में आंदोलन है।
जवाब देंहटाएंवो बातें थीं, महज बातें, कि दुनिया को नया सूरज
वो हर इक आँख में चिड़िया, वो हर इक हाथ में कागज
क्षितिज दुनिया का हर कोना, जमीनों में उगा सोना
नहीं बरगद, न ही सरहद, न ये होना, न वो रोना
हमारे मन के हाथों में, लपट उँची, मशालें थीं
मगर हम मेमने थे, हम पे शेरों की दुशालें थीं
यादों के बहाने व्यवस्था पर करारा प्रहार करती है कविता। कविता किसी और मूड की प्रतीत होती है और किसी अन्य चरम पर समाप्त होती है। राजीव भाई आपके भीतर के कवि की बात ही क्या।
जवाब देंहटाएंमुझे आ कर मिले, आदर्श ने भोजन दिया जिसको
भजन तब है, अगर रोटी तुम्हारे पेट से बोले
जहाँ टाटा को, अंबानी को, सुनने भीड़ लगती हो
वहाँ ये डायरी ले कर कहाँ निकले कवि भोले
वो बातें थीं, महज बातें, कि दुनिया को नया सूरज
जवाब देंहटाएंवो हर इक आँख में चिड़िया, वो हर इक हाथ में कागज
क्षितिज दुनिया का हर कोना, जमीनों में उगा सोना
नहीं बरगद, न ही सरहद, न ये होना, न वो रोना
Ultimate.
Alok Kataria
"कविता एक नदी की तरह होती है .. उसका प्रवाह ही उस की आत्मा है"! कल ही राजीव भाई से वार्ता के दौरान मैंने ये बात कही थी ... कहते वक्त मुझे पता नही था कि अगले दिन ही हमारे भगीरथ , गंगा ले कर प्रस्तुत हो जाएंगे ... :-)
जवाब देंहटाएंसब से अधिक प्रभावित करने वाली बात कविता में कई स्वरों का होना है .. कहीं "हवा क डाकिये द्वारा लाई हुई याद " में छिपी मायूसी , कहीं आर्तनाद , कहीं व्यंग्य तो कहीं आशा .. इतने स्वरों के होने के बाद भी कहीं प्रवाह में बाधा नही है और गत्यात्मकता शुरू से अंत तक बरकरार है ..
"उदासी व्योम करती है","जवानी होम कर दी है","नहीं बरगद, न ही सरहद, न ये होना, न वो रोना" जैसी कितनी ही पंक्तियाँ हैं जो कविता ख़त्म होने के बाद भी मन में गूंजती हैं ..
कुल मिला कर एक अगरबत्ती की मानिंद कविता जो जलने के बाद भी देर तक महकती है और कविता में व्याप्त तड़प को भूलने नही देती ..
RAJIV JEE,KYA LAJAWAAB KAVITA HAI!
जवाब देंहटाएंRAVAANEE HO TO AESEE HO
AGAR KAVITA MEIN KAHNEE HO
KAHAANEE HO TO AESEE HO
ISEE CHHAND YAA BAHAR MEIN
EK GAZAL BHEE HO JAAYE.MUBAARAK.
गिरे जब हम धरातल पर, जमीं में हम समाते थे
जवाब देंहटाएंन तुम थे, पर हमारे साथ सूरज था, ये साया है..
हवा का डाकिया इस वक़्त, तेरी याद लाया है.
bahut hi sundar likha hai...
har pankti jeevant hai.....kavita mein sabhi shbd jee uthey hon jaisey..
- badhaayee
आपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!
जवाब देंहटाएंकविता बहाती है।
जवाब देंहटाएंकविता जगाती है।
कविता झकझोरती है।
कविता भीतर लग गये दीमक को खुरचती है। कविता सन्न कर देती है।
कमाल की कविता है।
बहाने व्यवस्था पर करारा प्रहार करती है कविता.बहुत सुंदर कविता. बधाई
जवाब देंहटाएंक्षितिज दुनिया का हर कोना, जमीनों में उगा सोना
जवाब देंहटाएंनहीं बरगद, न ही सरहद, न ये होना, न वो रोना
हमारे मन के हाथों में, लपट उँची, मशालें थीं
मगर हम मेमने थे, हम पे शेरों की दुशालें थीं
राजीव जी बहुत शशक्त कविता है आपकी...आज के हालत पर गहरे प्रहार करती हुई...नमन आपकी लेखनी को...वाह.
नीरज
बहुत खूबसूरती से शब्दोंको बुना है बधाई
जवाब देंहटाएंसभी बातें कहानी थीं, तुम्हारी बात पानी थी
जवाब देंहटाएंकिताबों में पुरानी भी लिखा, जो सच है माया है
हवा का डाकिया इस वक़्त, तेरी याद लाया है...
बाह बंधु।
बहुत अच्छी कविता है।
जवाब देंहटाएंकसमें....वादे...प्यार...वफा....
जवाब देंहटाएंसब बातें है....बातों को क्या?
सुन्दर कविता...
बहुत सुन्दर रचना. बधाई राजीव जी को.
जवाब देंहटाएंवो झूठे ख्वाब थे, कैसी नशीली थी बहुत दुनिया
जवाब देंहटाएंतुम्हारा साथ हो तो दो जहाँ को हमने पाया है
हवा का डाकिया इस वक़्त, तेरी याद लाया है...
......Bahut khub.
राजीव जी
जवाब देंहटाएंरचना के गहन प्रवाह में कुछ पल के लिए बहा जा रहा हूँ आनंद के साथ .....बहुत दिनों बाद फिर से आपको उसी अंदाज में पढ़ना बहुत ही अच्छा लगा.
शुभकामना
मुझे आ कर मिले, आदर्श ने भोजन दिया जिसको
जवाब देंहटाएंभजन तब है, अगर रोटी तुम्हारे पेट से बोले
जहाँ टाटा को, अंबानी को, सुनने भीड़ लगती हो
वहाँ ये डायरी ले कर कहाँ निकले कवि भोले
कोई भी साथ आ जाये, नहीं ये दौर है ऐसा
तुम्हारी चुप खरीदेगा, यहाँ बोलेगा बस पैसा
वो झूठे ख्वाब थे, कैसी नशीली थी बहुत दुनिया
तुम्हारा साथ हो तो दो जहाँ को हमने पाया है
हवा का डाकिया इस वक़्त, तेरी याद लाया है...
apaki lekhni ki taqat aur uski sachchayi se hamesha hi prabhavit rahi hoon
itni sachhi kachoti hui kavita koi samvedansheel vayakti hi likh sakta hai
rajeev jee...
जवाब देंहटाएंno comment..sirf sadhuvaad aur shukriya
गिरे जब हम धरातल पर, जमीं में हम समाते थे
जवाब देंहटाएंन तुम थे, पर हमारे साथ सूरज था, ये साया है..
बहुत प्रभाशाली कविता है। भाषा का प्रवाह,
शब्द-चयन, छंद, कल्पना - हर तरह से उच्च कोटि की रचना है।
बहुत सुंदर! बधाई!
.
हमारे मन के हाथों में, लपट उँची, मशालें थीं
जवाब देंहटाएंमगर हम मेमने थे, हम पे शेरों की दुशालें थीं
ye panktiyaan mujhe prabhavit kar gayee aisi kavitaaein mai baar baar padhne ki ichha rakhta hoon khas kar sahitya shilpipar
तुम्हीं तो थे, जिसे जज़्बों पे मेरे प्यार आता था
जवाब देंहटाएंतुम्हीं ने तो मुझे खत लिख के जोड़ा एक नाता था
जमीन-ओ-आसमा की बात, जन्मों की कहानी थी
मेरे कदमों तले तुमको कोई दुनिया बसानी थी
मगर जब नौकरी पाने में मेरी डिगरियाँ हारीं
किसी इंजीनियर से हो गयी थी फिर तेरी यारी
सभी बातें कहानी थीं, तुम्हारी बात पानी थी
किताबों में पुरानी भी लिखा, जो सच है माया है
हवा का डाकिया इस वक़्त, तेरी याद लाया है...
waah bahut dino baad aapko padha. ati sundar
कमाल है भाई. लाजवाब कर दिया है आप ने. मैं बस महसूस कर सकता हूँ .... कुछ कहने का सामर्थ्य नहीं ...
जवाब देंहटाएंयह गजल है या कविता? इसकी थीम क्या है? प्रेम-कविता है क्या? मै तो कई बार पढ़ गया पर मेरे पल्ले नहीं पड़ा। शायद इस तरह की कविता पढ़ने-करने की आदत नहीं पर जो हो कविता पढकर मै उलझ गया हूँ। अब सत्ताईस टिप्पणियाँ आयीं हैं तो बात कुछ न कुछ जरूर होगी। बुरा मत मानना भाई। होता है, होता है।कभी कभी बात ऐसे फिसलती है कि पकड़े नही पकड़ में आती।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमै कितनी भी कोशिश कर लूं ,मै न तो प्रेम- कविता कभी लिख पाऊंगा न गजल। ये अपनी कमजोरियाँ हैं बंधुवर, कहियेगा नहीं किसी से! अन्दर की बात है!अब पूरे तीस कमेन्ट हो गये।
जवाब देंहटाएंमुझे आपकी यह कविता सबसे अच्छी कविताओं में एक लगती है।
जवाब देंहटाएंओ रंजन आपके इस पद्य में, सब कुछ समाया है हवा का डाकिया इस वक़्त, तेरी याद लाया है
जवाब देंहटाएंक्या ख़ूब बात कह गए राजीव भाई आप क्या कहना !
गिनना मकसद नहीं भई,इकत्तीस हुई हैं अभी।एक भी न होती, तब भी यह ज़रूर कहता कि राजीव जी!जो सुलगता है , भीतर ही भीतर, सुलगने दो।
जवाब देंहटाएंहवा मैं भी दे रहा हूं।
प्रवीण पंडित
मुझे आ कर मिले, आदर्श ने भोजन दिया जिसको
जवाब देंहटाएंभजन तब है, अगर रोटी तुम्हारे पेट से बोले
जहाँ टाटा को, अंबानी को, सुनने भीड़ लगती हो
वहाँ ये डायरी ले कर कहाँ निकले कवि भोले
कोई भी साथ आ जाये, नहीं ये दौर है ऐसा
तुम्हारी चुप खरीदेगा, यहाँ बोलेगा बस पैसा
वो कितना कुछ था करने को, न कर पाया, न हो पाया
लपट है वक़्त की जिसपर, जवानी होम कर दी है
बहुत अच्छी कविता है, बधाई।
क्षितिज दुनिया का हर कोना, जमीनों में उगा सोना
जवाब देंहटाएंनहीं बरगद, न ही सरहद, न ये होना, न वो रोना
हमारे मन के हाथों में, लपट उँची, मशालें थीं
मगर हम मेमने थे, हम पे शेरों की दुशालें थीं !
....वाह....! निःशब्द कर दिया आपने......आपकी लेखनी को शत शत नमन.. अतिसुन्दर अद्वितीय कविता !
उन्हीं पुराने तेवर के साथ.....
जवाब देंहटाएंगेय शैली में.....आपका गीत पढना
बहुत अच्छा लगा.......
बहुत सुंदर भाव...और भाषा...
आभार....
स-स्नेह
गीता पंडित
राजीव जी,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना लगी...ओरों की तो में कह नही सकता मगर जो मुझे समझ आया वो एक प्रेमी को प्रेम के बदले तिरिस्कार मिलने पर समाज और व्यवस्था से शिकायत है.. जिसे आपने शब्दों के माध्यम से बखूभी निभाया है.
rajiv ji ,
जवाब देंहटाएंmaine aapko kaha hai ki kal raat 3 baje maine ise padha, dophar men copy karke rakh diya tha ...
मैं आशा की किसी लौ को ही जलता देख तो पाता
तुम्हीं ने तो पलक मूंदी, हरेक दीपक बुझाया है
हवा का डाकिया इस वक़्त, तेरी याद लाया है...
these lines are ultimate ..
वो झूठे ख्वाब थे, कैसी नशीली थी बहुत दुनिया
तुम्हारा साथ हो तो दो जहाँ को हमने पाया है
हवा का डाकिया इस वक़्त, तेरी याद लाया है...
bhai , aapki kavita men jo josh hai , wo hamen kuch sochne par mazboor kar raha hai ..
bhai bahut jordaar kavita hai
aapko bahut badhai ..
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
कविता में प्रेम का खालीपन उभर कर आया हैं
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.