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अपनापन [कविता] - श्यामल सुमन

कैसे गीत खुशी के गाऊँ?
सच्चा मीत कहाँ से लाऊँ?
रिश्ता दुनियाँ में जैसे व्यापार हो गया।
बीते कल का ये मानो अखबार हो गया।।

जीने की खातिर दुनियाँ में रिश्तों का दस्तूर।
भाव नहीं दिखता रिश्तों मे जीने को मजबूर।।
फिर भी जीना भला क्यों स्वीकार हो गया।
बीते कल का ये मानो अखबार हो गया।।

अपनापन दिखलाता जो भी क्या अपना होता है
सच्चे अर्थों में अपनापन तो सपना होता है।।
कैसे कहते हैं अपना परिवार हो गया।
बीते कल का ये मानो अखबार हो गया।।

रंगमंच गर है जीवन तो हम अभिनय करते हैं।
दिखलाना हो सुमन को सचमुच बहुत प्रणय करते हैं।
वह पल लगता है अपना संसार हो गया।
बीते कल का ये मानो अखबार हो गया।।

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10 टिप्पणियाँ

  1. सुन्दर गीत है |

    बधाई |

    अवनीश तिवारी

    जवाब देंहटाएं
  2. रंगमंच गर है जीवन तो हम अभिनय करते हैं।
    दिखलाना हो सुमन को सचमुच बहुत प्रणय करते हैं।
    वह पल लगता है अपना संसार हो गया।
    बीते कल का ये मानो अखबार हो गया।।

    बहुत अच्छी रचना।

    जवाब देंहटाएं
  3. गीत के बहाने मन की भावनाएं उडेल कर रख दी हैं आपने। बधाई।

    SBAI TSALIIM

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण गीत....कभी सुनूंगी आपके स्वर में.... दुगुना आनंद मिलेगा ,यह तय है...

    जवाब देंहटाएं
  5. टिप्पणीकारों के प्रति सादर-

    मिला समर्थन आपका हृदय से है आभार।
    लेखक लेखन में हुआ नव उर्जा संसार।।

    सम्पादक जी के प्रति सादर-

    रचना संग परिचय छपे यह शिल्पी की रीत।
    नहीं छपा परिचय मेरा लेकिन छपा है गीत।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

    जवाब देंहटाएं
  6. अच्छी भावपूर्ण रचना...........कई बार पढ़ी हर बार और अच्छी लगी।

    जवाब देंहटाएं
  7. मन के कोमल भावों को समेटे एक सुन्दर गीत

    जवाब देंहटाएं

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