
10 जनवरी 1960 को चैनपुर (जिला सहरसा, बिहार) में जन्मे श्यामल सुमन में लिखने की ललक छात्र जीवन से ही रही है। स्थानीय समाचार पत्रों सहित देश की कई पत्रिकाओं में इनकी अनेक रचनायें प्रकाशित हुई हैं। स्थानीय टी.वी. चैनल एवं रेडियो स्टेशन में भी इनके गीत, ग़ज़ल का प्रसारण हुआ है।
अंतरजाल पत्रिका साहित्य कुंज, अनुभूति, हिन्दी नेस्ट, कृत्या आदि में भी इनकी अनेक रचनाएँ प्रकाशित हैं।
इनका एक गीत ग़ज़ल संकलन शीघ्र प्रकाश्य है।
मेरे मालिक तू बता दे क्यों बना ऐसा जहाँ।
सच को लाओ सामने तो दुश्मनी होती यहाँ।।
ख्वाब बचपन में जो देखा वो अधूरा रह गया।
अनवरत जीने की खातिर दे रहा हूँ इम्तहाँ।।
मुतमइन कैसे रहूँ जब घर पड़ोसी का जले।
है फ़रिश्ता दूर में अब आदमी मिलता कहाँ।।
हर कोई बेताब अपनी बात कहने के लिए।
सोच की धरती अलग पर सब दिखाता आसमाँ।।
ग़म नहीं इस बात का कि लोग भटके राह में।
हो अगर एहसास ज़िन्दा छोड़ जायेगा निशां।।
मुश्किलों से भागने की अपनी फ़ितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमाँ।।
मिलती है खुशबू सुमन को रोज अब ख़ैरात में।
जो फ़कीरी में लुटाते अब यहाँ फिर कल वहाँ।।
3 टिप्पणियाँ
वाह !
जवाब देंहटाएंतबीयत ख़ुश कर दी आपने............
बहुत उम्दा ग़ज़ल !
हर कोई बेताब अपनी बात कहने के लिए।
जवाब देंहटाएंसोच की धरती अलग पर सब दिखाता आसमाँ।।
वाह...!
ग़म नहीं इस बात का कि लोग भटके राह में।
हो अगर एहसास ज़िन्दा छोड़ जायेगा निशां।।
मुश्किलों से भागने की अपनी फ़ितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमाँ।।
मिलती है खुशबू सुमन को रोज अब ख़ैरात में।
जो फ़कीरी में लुटाते अब यहाँ फिर कल वहाँ।।
वाह बहुत खूब!
ग़ज़ल बहुत पसंद आई !!
मुश्किलों से भागने की अपनी फ़ितरत है नहीं।
जवाब देंहटाएंकोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमाँ।।
बेहद उम्दा ग़ज़ल सुंदर भावों से साकार प्रेरणा देती हुई पंक्तियाँ..ग़ज़ल बहुत ही बढ़िया लगी..श्यामल जी बहुत बहुत आभार
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