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विनोक्ति अलंकार [काव्य का रचना शास्त्र: ४३] - आचार्य संजीव वर्मा "सलिल"


Kaavya ka RachnaShashtra by Sanjeev Verma 'Salil'रचनाकार परिचय:-

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' नें नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा, बी.ई., एम.आई.ई., अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र में एम.ए., एल.एल.बी., विशारद, पत्रकारिता में डिप्लोमा, कंप्युटर ऍप्लिकेशन में डिप्लोमा किया है।
आपकी प्रथम प्रकाशित कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है। 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं। आपकी चौथी प्रकाशित कृति है 'भूकंप के साथ जीना सीखें'। आपनें निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों के साथ साथ अनेक पत्रिकाओं व स्मारिकाओं का भी संपादन किया है।
आपको देश-विदेश में १२ राज्यों की ५० सस्थाओं ने ७० सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं : आचार्य, २०वीन शताब्दी रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञानं रत्न, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, काव्य श्री, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, आदि।
वर्तमान में आप अनुविभागीय अधिकारी मध्य प्रदेश लोक निर्माण विभाग के रूप में कार्यरत हैं।
बिना वस्तु उपमेय को, जहाँ दिखाएँ हीन .
अलंकार है 'विनोक्ति', मानें 'सलिल' प्रवीण..

जहाँ पर उपमेय या प्रस्तुत को किसी वस्तु के बिना हीन या रम्य वर्णित किया जाता है वहाँ विनोक्ति अलंकार होता है.

१.
देखि जिन्हें हँसि धावत हैं
लरिकापन धूर के बीच बकैयां.
लै जिन्हें संग चरावत हैं
रघुनाथ सयाने भए चहुँ बैयां.
कीन्हें बली बहुभाँतिन ते
जिनको नित दूध पियाय कै मैया.
पैयाँ परों इतनी कहियो
ते दुखी हैं गोपाल तुम्हें बिन गैयां.

२.
है कै महाराज हय हाथी पै चढे तो कहा
जो पै बाहुबल निज प्रजनि रखायो ना.
पढि-पढि पंडित प्रवीणहु भयो तो कहा
विनय-विवेक युक्त जो पै ज्ञान गायो ना.
अम्बुज कहत धन धनिक भये तो कहा
दान करि हाथ निज जाको यश छायो ना.
गरजि-गरजि घन घोरनि कियो तो कहा
चातक के चोंच में जो रंच नीर नायो ना.

३.
घन आये घनघोर पर, 'सलिल' न लाये नीर.
जनप्रतिनिधि हरते नहीं, ज्यों जनगण की पीर..


आत्मीयों!

वन्दे मातरम.

महाकाल के काल-ग्रन्थ के नए पृष्ठ पर अपने हस्ताक्षर अंकित करती यह लेखमाला और इसका प्रस्तुतकर्ता आप सबको नव वर्ष की हार्दिक बधाई देते हुए यह कामना करता है कि आप सब हिंदी गीति काव्य के इस अनूठे आलंकारिक वैभव के वारिस बनकर इसे अपनी रचनाओं के माध्यम से सकल जगत को देकर अखंड यश के भागी हों.

नव वर्ष पर नवगीत

महाकाल के महाग्रंथ का
नया पृष्ठ फिर आज खुल रहा....
*
वह काटोगे,
जो बोया है.
वह पाओगे,
जो खोया है.

सत्य-असत, शुभ-अशुभ तुला पर
कर्म-मर्म सब आज तुल रहा....
*
खुद अपना
मूल्यांकन कर लो.
निज मन का
छायांकन कर लो.

तम-उजास को जोड़ सके जो
कहीं बनाया कोई पुल रहा?...
*
तुमने कितने
बाग़ लगाये?
श्रम-सीकर
कब-कहाँ बहाए?

स्नेह-सलिल कब सींचा?
बगिया में आभारी कौन गुल रहा?...
*
स्नेह-साधना करी
'सलिल' कब.
दीन-हीन में
दिखे कभी रब?

चित्रगुप्त की कर्म-तुला पर
खरा कौन सा कर्म तुल रहा?...
*
खाली हाथ?
न रो-पछताओ.
कंकर से
शंकर बन जाओ.

ज़हर पियो, हँस अमृत बाँटो.
देखोगे मन मलिन धुल रहा...
.

********************

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11 टिप्पणियाँ

  1. नव वर्ष के स्वागत में नवगीत अच्छा लगा। आपको भी शुभकामनाये।

    जवाब देंहटाएं
  2. विनोक्ति पर संक्षिप्त किंतु दुर्लभ जानकारी के लिये आभार। आपको भी नव वर्ष की शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं
  3. Thanks sir & Happy New Year- 10

    Alok Kataria

    जवाब देंहटाएं
  4. वस्तु उपमेय को, जहाँ दिखाएँ हीन .
    अलंकार है 'विनोक्ति', मानें 'सलिल' प्रवीण..

    आभार।

    जवाब देंहटाएं
  5. jaankari bahut jnaynvardhak hai aaj bade hi sundar dhang se udaharan sahit aapki prstuti bahut behtareen...dhanywaad salil ji

    जवाब देंहटाएं
  6. तम-उजास को जोड़ सके जो
    कहीं बनाया कोई पुल रहा ?

    बहुत सुन्दर भाव हैं । यदि सभी प्रेरित होकर इस अभियान में जुट जायें तो अंधकार का नामोनिशान ही मिट जायेगा । सुन्दर और सारगर्भित रचना के लिये अभार और बधाई । नव वर्ष की शुभकामनायें ।

    जवाब देंहटाएं
  7. ज़हर पियो, हँस अमृत बाँटो.
    देखोगे मन मलिन धुल रहा..

    नव वर्ष आको व आपके परिवार को मंगलमय हो।

    जवाब देंहटाएं
  8. आदरणीय संजीव सलिल जी,
    आपका आलेख सर्वदा अतुलनीय रहा है। नव वर्ष की शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं
  9. सागर का अभिषेक कर, शिल्पी रच साहित्य.
    हो अनिरुद्ध न साधना, वैद बने आदित्य..

    सुषमा लख आलोक की, करे अनिल आमोद.
    रंजन कर राजीव का, मिले प्रसाद विनोद..

    शब्द अर्चना अनन्या, रच दे नंदन सृष्टि.
    स्नेह-साधना सलिल को. दे नित अभिनव दृष्टि..

    जीवन एक सितार है, खींच न ज्यादा तार.
    और न ढीला छोड़ना, वर्ना हो बेकार..

    श्वास-आस का संतुलन, ही जीवन का खेल.
    सफल वही होता रखे, जो दोनों में मेल..

    इस असार संसार का सार, 'सलिल' विश्वास.
    जीवन में विश्वास ही, लाता हर्ष-हुलास..

    नए साल में ताल लय, रस हों सबके मीत.
    छंद रचें आनंद पा, गाएँ जीवन-गीत..

    जवाब देंहटाएं
  10. सभी को नव वर्ष शुभकामनाएं |
    एक नए अलंकार से परिचय के लिए धन्यवाद |

    अवनीश तिवारी

    जवाब देंहटाएं

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